आपके घर से जब कोई लाश निकलेगी, तो क्या ऐसे ही उत्सव मनायेंगे आप?

मर’ने वाले लोगो की संख्या 100 के पार पहुंच चुकी है, संक्र’मित मरीजों की संख्या 4000 के पार हो गई है, सुरक्षा जैकेट और किट के अभाव में डॉक्टर्स संक्रमित हुए जा रहे है और संक्रमित स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या भी 50 से ऊपर पहुंच गई है, गरीबों के घर में खाने का राशन उपलब्ध नहीं है। छोटे कामगरों और दिहाड़ी मजदूरों के कैश ख़त्म हो चुके है। असंख्य लोग पैदल ही सैंकड़ों किलोमीटर का सफ़र तय कर घर की ओर लौट रहे है, जिसमें से अबतक 30 से भी ज्यादा लोगो को सफ़र की धूप-भूख और प्यास ने मार दिया है। लोगो के लिए बाजार में मास्क उपलब्ध नहीं है। कोरोना संक्रमण की जांच के लिए सरकार के पास पर्याप्त टेस्ट किट नहीं है, अस्पतालों में वेंटिलेटर की कमी है। अनियोजित लॉकडाउन ने लोगो के रोजगार ठप कर दिए है। और हम है कि ऐसी विपरीत परिस्थिति में सरकार से सवाल पूछने वालों को देशद्रोही बताकर अपनी मृत्यु के आने का इंतजार कर रहे है।

अपने घरों में पड़ी हुई लाशों के ढ़ेर पर मोमबत्ती और दिये जलाकर जिस प्रकार से हमने कल कोरोना इवेंट और उत्सव को मनाया है इससे एक सवाल का हल जरूर निकल आया कि 2-4 हज़ार अंग्रेजों ने हम 30 करोड़ हिन्दुस्तानियों को 300 साल तक किन-किन शर्तों पर इतनी आसानी से गुलाम बनाकर रखा था।

अब चुकी मैंने कल 9 बजे 9 मिनट वाले इवेंट को सेलिब्रेट नहीं किया इसीलिए आप तथाकथित फर्जी राष्ट्रप्रेमियों को मेरे अंदर का देश’द्रोही दिखेगा, आप मुझे चाहे जो मन हो कहिए, मेरे ऊपर कोई भी मुहावरे थोप दीजिए, कोई व्यक्तिगत लंक्षण लगा दीजिए लेकिन ये वादा जरूर कीजिए की जब आपके घर से कोई लाश निकलेगी तो आप मुझे बुलायेंगे, मेरे साथ अपने दरवाजे पर दिया और मोमबत्ती जलाएंगे और उसी दीये की चिंगारी से पटाखों में आग लगाते हुए मुझसे ये कहेंगे, ‘दोस्त, मृत्यु तो परम सत्य है’ आओ साथ मिलकर उत्सव मनाते है।

यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो अब भी वक़्त है दूसरों की लाशों पर उत्सव मनाना बंद कर दीजिए।
और इससे पहले कि इतिहास के पन्नों में आपको जाहिल और ख़ुदग़र्ज़ लिख दिया जाए खुद को रोक लीजिए।
खुद को रोक लीजिए क्योंकि आने वाली नस्लें केवल थूकेंगी हमपे!

© प्रियांशु

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