बिहार रेजिमेंटः ‘बजरंग बली की जय’ सुनकर गुम हो जाती है दुश्मनों की हेकड़ी, उपलब्धियों भरा है इतिहास

पटना. बीते 15 और 16 जून को लद्दाख के गलवान घाटी (Galvan Valley) में चीनी सैनिकों के साथ झड़प में भारत के 20 सैनिकों ने अपना बलिदान दे दिया. ये सभी बिहार रेजिमेंट (Bihar Regiment) के सैनिक थे. इसके बाद बिहार रेजिमेंट के जवानों के बलिदान और जंग के मैदान में उनकी वीरता की कहानियां चर्चाओं में है. दरअसल ‘करम ही धरम’ का सूत्र वाक्य और ‘जय बजरंगबली’ का जयघोष करते हुए बिहार रेजिमेंट के सैनिक जब युद्ध के मैदान में उतरते हैं तो दुश्मनों की सारी हेकड़ी गुम हो जाती है. आइए इस रेजिमेंट के उपलब्धियों भरे इतिहास पर डालते हैं एक नजर.

गलवान घाटी में शहीद हुए सैनिकों में 6 बिहार से ताल्लुक रखने वाले थे. बाबू वीर कुंवर सिंह और बिरसा मुंडा की वीरता बिहार रेजिमेंट के सैनिकों की प्रेरणा है. सर्वोच्च बलिदान के लिए अगली पंक्ति में खड़े रहने वालों में बिहार रेजिमेंट के सैनिकों का नाम रहा है. इस सैन्य दल का इतिहास उपलब्धियों से भरा पड़ा है. हाल में हुए पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक में हिस्सा लेने की बात हो या फिर करगिल युद्ध में विजय की कहानी लिखने की, इस रेजिमेंट ने हर जगह अपने अदम्य साहस का परिचय दिया और अपनी शहादत देकर देश का मस्तक झुकने नहीं दिया.

”बिहार रेजिमेंट के हम सैनिक, खेलें बाजी जान की, साक्ष्य हमारा अशोक स्तंभ है भारत के पहचान की. जय बिहार रेजीमेंट, जय सेना हिदुस्तान की…”, रग-रग में जोश भर देने वाले इस गीत को अपना जीवन धर्म समझने वाले सैनिकों ने कई बार दुश्मनों के दांत खट्टे किए हैं. 1941 में बिहार रेजिमेंट का गठन तत्कालीन सैन्य अधिकारी हबीबुल्लाह खान ने किया था. इसके पहले सूबेदार मेजर बिसनदेव सिंह बने. बिहार रेजिमेंट के 79 वर्षों के शानदार सफर का इतिहास, शौर्य गाथाओं से भरा पड़ा है.

सेना के मध्य कमान के मेजर जनरल एसबीएल कपूर ने बिहार रेजिमेंट की 50वीं वर्षगांठ पर 1991 में वीर बिहारियों का इतिहास संग्रह करवाया था. इसके अनुसार गोवा की स्वतंत्रता की लड़ाई बिहार रेजिमेंट ने जीती थी. बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) की आजादी में मुक्ति सेना बनकर वीर बिहारियों ने 1971 में परचम लहराया. श्रीलंका और सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना के रूप में भी इस सैन्य दल ने शौर्य और पराक्रम दिखाया. इसके अलावा नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर में प्रवेश की बारी हो या 1944 में वर्मा की लड़ाई, हर जगह बिहार रेजिमेंट ने युद्ध कौशल और वीरता का प्रदर्शन किया है.

1999 में करगिल की लड़ाई में बिहार रेजिमेंट के करीब 10 हजार सैनिक शामिल हुए थे. 2008 में मुंबई में हमला हुआ था तब एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन टोरनांडो में शहीद हो गए थे. मेजर संदीप बिहार रेजिमेंट के थे. सितंबर 2016 में कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तानी आतंकियों से लोहा लेते हुए रेजिमेंट के 15 सैनिकों ने अपना बलिदान दिया. कश्मीर की हिफाजत में बिहार रेजीमेंट के करीब छह हजार सैनिक और अधिकारी डटे हुए हैं.

परमवीर चक्र सम्मान वाले नायक अलबर्ट एक्का ने बिहार रेजिमेंट से अपना कार्य शुरू किया था. हालांकि बाद में जब 14 गार्ड्स का गठन हुआ, तब अल्बर्ट अपने कुछ साथियों के साथ वहां भेज दिए गए थे. इस पलटन को अब तक तीन अशोक चक्र, सात परम विशिष्ट सेवा मेडल, दो महावीर चक्र, 14 कीर्ति चक्र, आठ अति विशिष्ट सेवा मेडल, 15 वीर चक्र, 41 शौर्य चक्र, पांच युद्ध सेवा मेडल, 153 सेना मेडल, तीन जीवन रक्षा पदक, 31 विशिष्ट सेवा मेडल और 68 मेंशन इन डिस्पैच मेडल मिल चुके हैं.

वर्तमान में बिहार रेजिमेंट अपनी 23 बटालियन (4 राष्ट्रीय राइफल व दो टोरिटोरियल आर्मी बटालियन) के साथ देश की सेवा में लगा है. ऐसा कहा जाता है कि बिहार रेजिमेंट के जवान बहादुर होते हैं और वो किसी भी स्थिति में रह पाने के लायक होते हैं. इस वजह से दुर्गम और जटिल परिस्थितियों में इनको तैनात किया जाता है. इस बटालियन को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ‘हका’ और ‘गंगाव’ के दौरान दो ‘बैटल ऑनर्स’ से सम्मानित किया गया था और बर्मा के ‘थिएटर ऑनर’ से भी सम्मानित किया गया था.

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