अपनी पत्नी से बेहद प्यार करते थे दशरथ मांझी, पहाड़ काटकर बना दिया था रास्ता

इस अनूठी प्रेम कहानी के नायक के सम्मान में CM नीतीश ने छोड़ दी थी अपनी कुर्सी

गया. जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर मोहड़ा प्रखंड के एक छोटे से गांव गहलौर घाटी के रहने वाले दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) अपनी पत्नी फाल्गुनी देवी (Falguni Devi) के प्रेम में पहाड़ का सीना चीर कर रख दिया था. इस प्रेम कहानी की दूसरी मिसाल कहीं और देखने को नहीं मिलती. दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की याद में 22 वर्षों तक छेनी-हथौड़ी से पहाड़ काटकर जो सुगम रास्ता बनाया था वह आज अनूठे प्रेम के प्रतीक के तौर पर मौजूद है और आज के युवाओं को प्रेरणा दे रहा है.

भले ही दशरथ मांझी आज इस दुनिया में नहीं हैं मगर इस सुगम रास्ते पर चलने वाले लोग उन्हें आज याद भी करते हैं. आज यह जगह ‘प्रेम पथ’ के नाम से जाना जाता है और हर आने जाने वाले लोग वहां रुक कर बाबा के बनाये गए स्थल पर सेल्फी लेते हैं.

दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी कहते हैं कि मेरे बाबा दशरथ मांझी जगंलों और पहाड़ों से लकड़ी काटकर बाजार में बेचते थे तो हमलोगों का पेट भरता था. मेरी मां फाल्गुनी देवी पिता के लिए पहाड़ पर खाना पहुंचाती थी.एक दिन खाना ले जाते वक्त उसे पत्थर से ठोकर लग गई और वो गिर गईं. खाना बर्बाद हो गया और तब से वो बीमार रहने लगीं. इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई तो पिता जी ने प्रण लिया कि जब तक पहाड़ का तोड़ कर रास्ता नहीं बना देंगे तब तक चैन से नही बैठेगें.

उन्होंने पहाड़ तोड़ना शुरू किया तो उन्हें घर के लोग और ग्रामीण पागल कहने लगे. लेकिन, सालों तक पहाड़ काटकर रास्ता का रूप दे दिया तो लोग देखते रह गए. जाहिर है आज वे हम सबके लिए मिसाल बन गए हैं. आज यहां प्रतिदिन सैकड़ों लोग आते हैं और फ़ोटो खिंचते हैं.

वहीं दशरथ मांझी के जानने वाले ग्रामीण अभिनव और गोविंद बताते हैं कि वो उस समय विख्यात हो गए जब दशरथ मांझी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने पटना चले गए. जब मुख्यमंत्री को बाबा के बारे में जानकारी मिली तो उन्हें बुलाकर सम्मान में अपनी कुर्सी छोड़कर बाबा दशरथ मांझी को बैठा दिया. ये अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बनीं और आज तक इसपर चर्चा होती है.बता दें कि साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था कि पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. 22 साल तक जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया.

दशरथ मांझी अब प्रेम के प्रतीक हैं और युवाओं के लिए प्रेरणा का काम कर रहे हैं. लोग इनसे जुड़ी यादों को अपने मोबाइल फोन में कैद करना नहीं भूलते. दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 40 किलोमीटर से घटकर 10 किलोमीटर रह गया. फिल्माकार केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया. साल 2007 में जब 73 बरस की उम्र में वो जब दुनिया छोड़ गए तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी.

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *