आज़ादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि ‘भारत का विचार’ ‘पाकिस्तान’ से हार गया.

आज का दिन सच में ऐतिहासिक है. आज़ादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि ‘भारत का विचार’ ‘पाकिस्तान के विचार’ से हार गया. आज संकीर्णता ने उदारता को पटकनी दे डाली और हमारे लोकतंत्र की पीठ ज़मीन से जा लगी. आप अगर इस हार से शर्मिंदा नहीं तो बेशर्मी से कह सकते हैं कि ‘टांग तो अब भी मेरी ही ऊपर है.’

देश को मजहब के नाम पर बांटने वाले बिल को लोकसभा के बाद राज्य सभा ने भी मंजूरी दे दी। मगर इस पूरे प्रकरण में मुझे सांसद मनोज झा की बात सबसे पसंद आई। उन्होंने आज कहा-

आज आप सत्ता में हैं तो कुछ भी कर सकते हैं, मगर याद रखिये कि कई दफा आठ-दस साल की सरकार इतिहास की किताब में एक से दो पंक्तियों में सिमट जाती है। कई बार फुटनोट बन कर रह जाती है।

आने वाले वक्त में भी हम मनोज झा के इसी लाइन को याद रखेंगे, इन कट्टरपंथियों को नहीं। जो लोग इतिहास को वाट्सएप यूनिवर्सिटी से समझते हैं, उन्हें भी याद रखना चाहिए कि इस देश में जिस पार्टी की सरकार ने पहली और अब तक की इकलौती इमेरजेंसी लगाई और पूरी दबंगई से लगाई, उनकी पार्टी आज इमेरजेंसी को सेलिब्रेट क्या याद भी नहीं करना चाहती।

लोग संजय गांधी को उतना याद नहीं करते जितना जेपी और जार्ज को याद करते हैं। देवकांत बरुआ जैसे दलालों को तो बिल्कुल याद नहीं करते। जबकि उस जमाने में दो पॉवर इन दोनों के पास थी, इनकी जो दबंगई थी, उसके सामने अमित शाह पासंग भी नहीं हैं।

जो लोग आज देश के ताने बाने के बिखरने को लेकर परेशाँ हैं उन्हें भी याद रखना चाहिए कि इमेरजेंसी के बाद देश खत्म नहीं हुआ, बल्कि और मजबूत ही हुआ। इस देश का इम्यूनिटी लेवल इतना कमजोर नहीं है।

-Pushya mitra

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