आ’पराधिक रिकॉर्ड वालों के चुनाव लड़ने पर लगाएं पाबंदी, चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह आपराधिक रिकार्ड वाले लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने को सुविचारित आदेश पारित करे, ताकि तीन महीने के अंदर राजनीतिक दलों को आपराधिक रिकार्ड वाले लोगों को टिकट देने से रोका जा सके। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने सोमवार को भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर विचार करने से इन्कार करते हुए यह आदेश दिया।

उपाध्याय ने याचिका में चुनाव आयोग को ऐसी व्यवस्था करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था, जिससे राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाए जाने से रोका जा सके। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हम चुनाव आयोग को निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता (उपाध्याय) के 22 जनवरी, 2019 की याचिका पर तीन महीने में विचार करें और इस संबंध में विस्तृत आदेश पारित करें।’

शीर्ष अदालत ने इसी तरह की एक अन्य जनहित याचिका का 21 जनवरी को निस्तारण करते हुए याचिकाकर्ता को चुनाव आयोग के समक्ष याचिका दायर करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने आयोग से भी कहा था कि इस बारे में उचित कदम उठाने के लिए याचिका को ही प्रतिवेदन माना जाए। उपाध्याय का आरोप था कि चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की और इसी वजह से उन्हें नई याचिका दायर करनी पड़ी।

उपाध्याय ने याचिका में चुनाव आयोग को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया था कि वह राजनीतिक दलों को गंभीर अपराधों में संलिप्त लोगों को उम्मीदवार बनाने से रोकें। याचिका में कहा गया था कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स की ओर से प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार भारत में राजनीति के अपराधीकरण में वृद्धि हुई है और 24 फीसद सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।

याचिका के अनुसार लोकसभा के 2009 के चुनावों में 7,810 प्रत्याशियों का विश्लेषण करने पर पता चला कि इनमें से 1,158 या 15 फीसद ने आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी। इन प्रत्याशियों में से 610 या आठ फीसद के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले दर्ज थे। इसी तरह, 2014 में 8,163 प्रत्याशियों में से 1398 ने आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी और इसमें से 889 के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले लंबित थे।

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