कभी पानी पूरी बेचने वाले इस 18 वर्षीय खिलाड़ी ने अपने पहले आईपीएल मैच में धोनी को सामने पाते ही हांथ जोड़ लिया

हम और आप अपने-अपने घर-दफ़्तर में बैठकर खींसे काढ़ते हुए कितनी भी बकचोदी कर सकते हैं. लेकिन हमारे हर क्रान्ति से सने सोशल मीडिया पोस्ट के बावजूद सच यही रहेगा कि महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट में एक बहुत बड़ा नाम है. मुझे ये नाम कई मौकों पर सचिन-सौरव-राहुल से बड़ा दिखाई देता है. सचिन बंबई से आये, राहुल कर्नाटका से. दोनों ही लम्बे समय तक भारतीय क्रिकेट की फ़ैक्ट्री रहीं. सौरव कलकत्ता से आये जहां से कोई भी नहीं आया था लेकिन कलकत्ता में खेल का अपना एक कल्चर था, सौरव बहुत बड़े परिवार से आते थे. इसके साथ ही इस बात की बात भी होती थी कि आखिर कोई भी उस ओर से आ क्यूं नहीं रहा है. मगर धोनी से पहले किसी ने भी ये बात नहीं की थी कि आखिर बिहार वगैरह से इतने लोग क्यूं नहीं आ रहे हैं. वगैरह में बहुत कुछ शामिल है, इस बात को अपने दिमाग से निकलने न दीजियेगा.

इस फोटो में आप जो भी देख रहे हैं वो मेरे जैसे कितने ही लोगों के कितने ही क्रांतिकारी विचारों की चिता को आग दिखा रहा है. लेकिन इस वक़्त मुझसे ज़्यादा ख़ुश शायद ही कोई होगा. इस पूरे सीक्वेंस को मैं अगले कितने ही दिन सुबह उठते ही सबसे पहले देखना पसंद करूंगा. इससे बेहतर दिन की शुरुआत कोई भी नहीं दे सकेगा.

एक लड़का धोनी के पास जाता है, फ़िस्ट पम्प करता है (क्यूंकी कोरोना के चलते अब लोग हाथ नहीं मिला रहे) और फिर आदतन धोनी को नमस्ते करता है. फ़िस्ट पम्प – एक बेहद वेस्टर्न हरकत जो इंसान को यकायक कूलत्व की प्राप्ति करवा देती है. लेकिन वो लड़का उस फ़िस्ट पम्प के बाद धोनी को नमस्ते करना नहीं भूलता है. और आप देख कर बता सकते हैं कि इस नमस्ते में उसने एक पैसे का एफ़र्ट नहीं मारा था. ये तो बस हो गया था. जैसे हम भयानक भीड़ के बीच रेलवे स्टेशन पर पापा को देख लेते हैं तो वहीं से हमारी पीठ थोड़ी झुक जाती है.

यशस्वी जायसवाल. उत्तर प्रदेश के भदोही का लड़का. भयानक गरीब परिवार. इतना गरीब कि जब यशस्वी ने कहा कि वो क्रिकेट खेलना चाहता है और उसके लिए बंबई जाएगा तो उसके परिवारवालों ने उसे रोका नहीं. क्यूंकि उनके लिए खाना खाने को आतुर एक मुंह कम होने वाला था. 4 फ़रवरी 2020 को यशस्वी जायसवाल के बारे में पूरा देश बात कर रहा था. उसने अंडर-19 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ 113 गेंद में 105 रन मारे थे. ये सब कुछ उस मौके पर हुआ जब टीम कुल 173 रनों का पीछा कर रही थी.

यही वो मौका था जब सभी को यशस्वी की कहानी मालूम चली. भदोही के महागरीब घर से आने वाला लड़का जो मुंबई आकर आज़ाद मैदान के मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के वर्कर्स के टेंट में रहा. वो उस टेंट में इसलिए रहा क्यूंकि उसके मामा, जो वर्ली में रहते थे, के घर में इतनी जगह नहीं थी कि एक शख्स और रह सके. यशस्वी ने पहले तो एक डेरी में बात की. वहां वो किराया देकर रहने लगा. लेकिन 11 साल का लड़का, दिन भर खेलने के बाद थक कर चूर हो जाता था और डेरी आते ही सो जाता था. सीएसटी के नज़दीक कालबादेवी की उस डेरी से यशस्वी को इसलिए भगा दिया गया क्यूंकि वो आते ही सो जाता था और वहां मौजूद लोगों का किसी काम में हाथ नहीं बंटाता था. उसके मामा ने मुस्लिम यूनाइटेड क्लब में बात की और उसे टेंट में रहने को मिल गया.

यशस्वी सुबह उठता और नाश्ते के जुगाड़ में लग जाता. वो खुद बताता है कि कई मौकों पर वो पूरी बेशर्मी से दोस्तों से कहता, “पैसा नहीं है लेकिन भूख है.” उसे कभी नाश्ता मिलता और कभी बेइज़्ज़ती. जब लोग उसपे हंसते तो उसे बुरा नहीं लगता था. वो कहता कि ‘इन्हें मालूम नहीं है एक टेंट में रहने पर क्या-क्या झेलना पड़ता है. ये हंस रहे हैं क्यूंकि अनजान हैं.’ दशहरा का वक़्त यशस्वी के लिए सबसे कमाल का वक़्त होता था. ये वो टाइम था जब वो मेले में पानीपूरी खिलाने का काम करता. इस वक़्त उसकी ठीक-ठाक कमाई हो जाती थी. लेकिन वो डरता था कि कहीं साथ खेलने वाला कोई लड़का उससे पानीपूरी खाने न आ जाये. अक्सर साथ के लड़के आते भी थे. झेंपते हुए वो उन्हें पानीपूरी खिलाता. लेकिन ये सारी बातें उसने अपने घर भदोही नहीं पहुंचने दीं. वो नहीं चाहता था कि उसके घरवालों को मालूम पड़े कि एक रोज़ जब टेंट में भाप बना देने वाली गर्मी उससे सही नहीं गयी तो वो खुले में सो गया और एक कीड़े ने उसकी आंख पर काट लिया. इससे उसकी आंख सूज गयी और वो हफ़्ते भर क्रिकेट नहीं खेल पाया. यहां ख़तरा आंख का नहीं था. ख़तरा इस बात का था कि वो क्रिकेट नहीं खेलेगा तो उसे भगा दिया जायेगा. फिर वो करेगा क्या?

यशस्वी ने जब इंडिया अंडर-19 में कदम रखा तो एक जर्नलिस्ट ने उससे सवाल किया कि बड़े लेवल का क्रिकेट खेलने के बारे में कोई प्रेशर महसूस होता है. यशस्वी जायसवाल ने उससे कहा, “आप क्रिकेट में मेंटल प्रेशर की बात कर रहे हैं? मैंने ये सब सालों-साल झेला है. रन बनाना बहुत बड़ी बात नहीं है. मुझे मालूम है कि मैं रन बना सकता हूं और बनाऊंगा. विकेट्स ले सकता हूं. मेरे लिए जो ज़्यादा बड़ी बात है वो ये है कि मैं शाम को खाना खा पाऊंगा या नहीं.”

यशस्वी जायसवाल, जिसे टेंट में रहना इसलिए पसंद नहीं था क्यूंकि वहां बहुत गर्मी थी या बाहर सोने पर उसे आंख पर कोई कीड़ा काट सकता था. असल में उस टेंट के आस-पास, पूरे मैदान में कोई भी टॉयलेट नहीं था. सबसे नज़दीक टॉयलेट फ़ैशन स्ट्रीट पर था और रात को उसपर भी ताला लग जाता था. वो यशस्वी जायसवाल जब धोनी के पास जाकर नर्वसनेस से भरी मुस्कान में रिफ़्लेक्स ऐक्शन के तहत हाथ जोड़ लेता है तो हमारे जैसे लोग मुस्कुराने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते.

केतन मिश्रा (फ़ेसबुक से साभार)

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