चुनाव में BJP के लिए अब NRC मुद्दा नहीं, PM मोदी और अमित शाह ने साधी चुप्पी

असम विधानसभा चुनाव में तीन महीने बचे हैं। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सरकारी कार्यक्रम में यहां पहुंचे और उसके अगले दिन गृहमंत्री अमित शाह ने एक रैली में हिस्सा लिया। लेकिन दोनों ने ही एनआरसी का जिक्र तक नहीं किया। लिहाजा एनआरसी और अवैध घुसपैठ को लेकर नवगठित क्षेत्रीय दल असम जातीय परिषद समेत कई संगठन भाजपा सरकार पर सवाल उठा रहे हंै। असम जातीय परिषद के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई कहते हंै,

‘यह सरकार एनआरसी को लेकर गंभीर नहीं है। उन्हें अहसास नहीं है कि त्रुटि-रहित, विदेशी-मुक्त एनआरसी बनाना उनकी जिम्मेदारी थी। भाजपा ने अवैध विदेशियों को बाहर निकालने का वादा किया था।’ सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में भारतीय नागरिकों की इस सूची को तैयार करने में 10 साल का समय लगा था और 1220 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। प्रदेश में जब एनआरसी का काम हो रहा था उस दौरान कई लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। प्रदेश के हजारों लोगों को एनआरसी की बेहद जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा था। लेकिन असम सरकार की कैबिनेट ने अबतक इसे अपनी मंजूरी नहीं दी है।

असम चुनाव में …एनआरसी की फाइनल लिस्ट से बाहर हुए 19,06,657 लोगों को कानूनी तौर पर अपनी नागरिकता साबित करने का मौका तब मिलेगा जब सरकार इन लोगों को नोटिस जारी करेगी। एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी करने के बाद सरकार ने अपील दायर करने की समय सीमा 120 दिन तय की थी। लेकिन अब तक एक नोटिस जारी नहीं हुआ। असम के भाजपा उपाध्यक्ष विजय कुमार कहते है, एनआरसी से चुनाव का कोई लेना-देना नहीं है। घुसपैठियों की शिनाख्त के लिए एनआरसी का काम हुआ था।

लेकिन इसमें बहुत त्रुटियां रह गई हैं। कई भारतीयों के नाम लिस्ट में नहीं आए और काफी संख्या में अवैध बांग्लादेशी शामिल हो गए। एनआरसी में सैकड़ों हिंदू बंगाली लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए हैं, क्या इसी वजह से भाजपा अब इस मुद्दे को आगे नहीं बढ़ा रही है? इस पर वे कहते है, ‘कोविड के कारण सरकारी कामकाज ठप पड़ गए थे। हमारी प्राथमिकता लोगों को इस महामारी से बचाना है। देशभर में टीकाकरण का काम शुरू हुआ है और जैसे ही स्थिति सामान्य होगी फिर से एनआरसी को लेकर अपना पक्ष लोगों के समक्ष रखेंगे। हमारी पार्टी एनआरसी चाहती है।’कई रिपोर्टों की माने तो असम में बनाई गई एनआरसी में करीब 12 लाख बंगाली हिंदुओं के नाम शामिल नहीं हुए हैं।

लिहाजा एनआरसी को लेकर बंगाली समुदाय के लोगों में भारी नाराजगी है। असम के वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी इन दो राज्यों में भाजपा की बदलती चुनावी रणनीति पर कहते हंै, ‘भाजपा इस समय एनआरसी के मुद्दे को छेड़कर अपना नुकसान नहीं करना चाहती। क्योंकि असम में बनाई गई एनआरसी में 12 लाख हिंदू बंगाली लोगों के नाम शामिल नहीं हुए हैं और इस बात को लेकर असम से बंगाल तक पार्टी को कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है। भाजपा की पूरी राजनीति हिंदुत्व पर टिकी है। इसलिए पार्टी ने फिलहाल एनआरसी को अपनी प्राथमिकता सूची से बाहर रखा है और सीएए के प्रावधानों को लागू करने पर ज्यादा जोर दे रही है। सीएए के नियमों को लागू करने से खासकर पड़ोसी देशों से आए हिंदुओं को यहां की नागरिकता मिल जाएगी।’ऑल असम बंगाली यूथ स्टूडेंट्स फेडरेशन के अध्यक्ष दीपक डे एनआरसी पर कहते हंै,

‘एनआरसी से यहां के बंगाली हिंदुओं को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। बीते पांच सालों में भाजपा के शासन में अगर सबसे ज्यादा किसी का नुकसान हुआ है तो वे हिंदू बंगाली है। जो हिंदू बंगाली एनआरसी में आवेदन करने के लिए 24 मार्च 1971 के पहले के कागजात दाखिल किए थे वे फिर सीएए के लिए क्यों खुद को विदेशी बनाएंगे। इस तरह की बातों से हिंदू बंगालियों के मन में न केवल डर है, बल्कि बेहद नाराजगी भी हंै।’ एनआरसी की इन उलझनों के बीच असम में चुनाव अधिकारियों ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि जिन 19 लाख लोगों का नाम एनआरसी में शामिल नहीं किया गया है वे 2021 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में वोट डाल सकेंगे।

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