पिता बेचते थे सुधा दूध, बिहार का ये लाल मेहनत कर बना IAS, कहानी देगी प्रेरणा

पिता बेचते थे सुधा दूध, बिहार का ये लाल मेहनत कर बना IAS, कहानी देगी प्रेरणा

बिहार को ऐसे ही मेहनतकशों की धरती नहीं कहा गया है। लॉकडाउन में जब पूरे देश से बिहारी मजदूरों का जत्था जानलेवा समस्याएं झेल अपने घर को लौट रहा था तो हर बिहारी का मन खून के आंसू रो रहा था। बुद्ध, अशोक की धरती वह बिहार ही है जिसके कलाकार हाथों ने बड़े बड़े महानगरों को संवारा है। लेकिन एक बिहारी को इन महानगरों में पीड़ा आसानी से मिलती है, सफलताएं मुश्किल से। इसके बावजूद बिहार के लाल हैं जो हौसला नहीं हारते और आखिरी दम तक सफलता के लिए संघर्ष करते हैं। बिहार एक्सप्रेस की पॉजिटिव खबरों की इसी कड़ी में हम आपको बिहार के युवाओं की ऐसी ही कहानियों से रुबरू करा रहे हैं।

ये कहानियां आपको कठिन से कठिन परिस्थिति में लड़ने और सफलता हासिल करने का हौसला देंगी। आज हम आपको मधुबनी के लाल मुकुंद की कहानी बताते हैं। मुकुंद ने इस बार सिविल सेवा परीक्षा परिणाम जारी होने के बाद बिहार के मस्तक पर फिर एक बार गौरव वाला टीका टांका है। मुकुंद एक आम घर से निकली सफलता की खास कहानी है। ऐसी कहानी जिसपर हर बिहारी को गर्व है और ऐसी कहानियां ही बिहार की असली थाती हैं। इन कहानियों से हमें कुछ कर गुजरने की प्रेरणा तो मिलती ही है, एक आत्मबल भी मिलता है कि देखो हमारे जैसे परिवार से ही निकला लड़का जब इतना आगे जा सकता है तो हम क्यों नहीं।

एक आम बिहारी पिता की क्या ख्वाहिश होती है? वही जो सारे पिताओं की होती है कि उसके बच्चे सही रास्ते लग जाएं। इसी को लेकर वह हाड़तोड़ मेहनत करता है। मधुबनी के बरुआर निवासी मनोज कुमार भी एक ऐसे ही पिता हैं। सुधा दूध का काउंटर चलाने वाले मनोज कुमार की आंखें उस वक्त देखने लायक थीं जब सिविल का रिजल्ट आया और उसमें मुकुंद की 54वीं रैंक की सूचना मिली। आज भी उस खुशी के दिन को याद करते हुए मनोज कुमार का गला रुंध जाता है। तब उनके मुंह से अनयास ही निकला था कि बेटे ने तो जिंदगी सफल कर दी। मनोज बताते हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि जीवन में इतनी भी खुशियां मिलेंगी। जब बेटा लायक निकलता है तो एक पिता को कितनी खुशी मिलती है इसे मनोज कुमार को देखकर समझा जा सकता है।

सिविल सेवा में 54वीं रैंक पाने वाले मुकुंद बचपन से ही काबिलियत के रास्ते पर निकल पड़े थे। 2008 में उनका चयन सैनिक स्कूल में हो गया था। फिर वह पढ़ाई करने असम के गोलपारा स्थित सैनिक स्कूल चले गए। 2015 में उन्होंने 12वीं परीक्षा पास की। तब वो नेवी में जाना चाहते थे लेकिन बाद में रास्ता सिविल सेवा की ओर मुड़ गया। 2018 में उन्होंने डीयू से इंग्लिश में ग्रेजुएशन किया। उनकी सिविल की तैयारी शुरू हो चुकी थी। उन्होंने सिविल के लिए इंग्लिश के साथ पॉलिटिकल साइंस को रखा और आखिरकार देश की इस सर्वाधिक प्रतिष्ठित परीक्षा में बाजी मार ही दी। मुकुंद बताते हैं कि आर्थिक तंगहाली एक समस्या तो है लेकिन लक्ष्य सही हो तो इसे पाते देर नहीं लगती।

उनकी सफलता का मंत्र पूछे जाने पर मुकुंद कहते हैं कि वह पिछले डेढ़ सालों से रोजाना 6-8 घंटे पढ़ाई कर रहे हैं। मुकुंद अपनी सफलता पूरा श्रेय अपने परिजनों और गुरुजनों को देते हैं। जबतक इनका साथ नहीं मिलता, कोई शख्स सफल भी नहीं हो पाता। मुकुंद के पिता कोई बड़े अफसर नहीं थे, न ही ऐसे कोई ब़ड़े कारोबारी। लेकिन उनकी परवरिश ऐसी थी कि मुकुंद अपने लक्ष्य को लेकर डंटे रहे। अगर आप भी एक सामान्य घर से निकले युवा हैं तो आपको कभी अपने संसाधनों की कमी को लेकर रोना नहीं चाहिए। मुकुंद जैसे युवाओं की कहानी अंधेरे रास्तों पर रोशनी की तरह है। इन कहानियों को दिमाग में बिठाएं, रास्ते का अंधेरा खुद ब खुद छंटता जाएगा और एक दिन आप भी अपनी मंजिल पर पहुंच अपने परिवार, समाज, प्रदेश और देश के लिए गौरव का विषय बन जाएंगे।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *