पिता रस्सी, झाड़ू, लालटेन, लैंप और उनके शीशे बेचा करते थे, बेटा IIT से पढ़कर बना इंजीनियर

पिता रस्सी, झाड़ू, लालटेन, लैंप और उनके शीशे बेचा करते थे, बेटा आईआईटी से पढ़कर बना इंजीनियर

झारखण्ड के धनबाद जिले की एक छोटी सी बस्ती में रहता था अतुल गुप्ता। उसके पिता सुरेन्द्र गुप्ता ने अपने घर में ही एक छोटी सी दुकान खोल रखी थी। रस्सी, झाड़ू, लालटेन, लैंप और उनके शीशे बेचा करते थे। पूरी जिंदगी लैंप के शीशों को चमकाने में ही बीत रही थी। लेकिन, उन्हें इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि उनका बेटा ऐसा कुछ कर दिखाएगा जिससे उनकी किस्मत अचानक इतनी तेज़ी से चमकेगी।

अतुल ने सुपर 30 में आकर अपने सपनों को जी भर के जिया। उसने रात-दिन एक करके पढ़ाई की। जब कभी मिलता, बस पढ़ता ही नजर आता था। जब कभी अतुल को लगातार पढ़ते देखता था तब मैं उससे कहा करता था कि अतुल जरा टहल लो, तो वह बड़े विनम्र भाव से जवाब देता था- नहीं सर, पिता जी को पास करके दिखाना है, आईआईटी में जाना है।

अतुल बचपन से ही पढ़ने में होशियार था। खूब मेहनती भी था। लेकिन, उसके पिता की आमदनी इतनी नहीं थी कि अपने बच्चों को आस-पास के किसी बड़े स्कूल में भेज सकें। घर के बगल में एक छोटा सा प्राइवेट स्कूल चलता था। एक बार अतुल को उसके पिता उस स्कूल में ले गए। उन्होंने प्रिंसिपल से निवेदन किया कि एक बार टेस्ट तो लेकर देखें। उन्होंने आगे कहा कि अगर मेरा बच्चा सच में प्रतिभाशाली है, तब उसकी मदद की जाए। और ऐसा हुआ भी।

टेस्ट के बाद स्कूल के सभी शिक्षक अतुल की प्रतिभा से प्रभावित हो गए। अब अतुल उस स्कूल में बिना फीस के पढ़ने लगा। अपने क्लास में वह हमेशा फर्स्ट आता था और सेकंड आने वाला विद्यार्थी उसके आसपास भी नहीं होता था। घर में ही छोटी सी दुकान थी। पिता की कोई खास आमदनी तो थी नहीं। लेकिन उनके सपने बड़े थे। अतुल का स्वभाव इतना अच्छा था कि सीनियर क्लास के बच्चे अपनी पुरानी किताबें अतुल को दे दिया करते थे।

अतुल उन्हीं से काम चला लेता था। अब दसवीं बोर्ड में एक ही साल बचा था। सुरेन्द्र गुप्ता को स्कूल वालों ने बताया कि अब दसवीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अतुल को शहर भेजना होगा। अतुल इंजीनियर बनना चाहता था।

अब उसके पिता के पास इतने पैसे तो थे नहीं कि अतुल को कोटा या दिल्ली भेज सकें। तब उन्होंने दसवीं के बाद अतुल को धनबाद ही भेजने का प्लान किया। लेकिन धनबाद में भी दो साल की पढ़ाई के लिए पैसे चाहिए थे। कुछ लोगों की सलाह पर उन्होंने सबकुछ बेचकर शेयर मार्केट में लगा दिया। इस उम्मीद में कि अगले साल इसका भाव इतना बढ़ जाएगा कि वह अपने बेटे को धनबाद भेज सके। लेकिन जिंदगी भी परीक्षा लेती रहती है। हुआ इसके उलट। शेयर का भाव गिर गया। पैसे डूब गए। लेकिन अतुल और उसके पिता की आस नहीं टूटी। दसवीं का रिजल्ट आ गया था। बहुत ही अच्छे अंकों के साथ अतुल पास कर गया था। उसी दरम्यान मैं अपने भाई प्रणव के साथ सुपर 30 के लिए बच्चों का चयन करने धनबाद गया हुआ था।

अतुल की मां को किसी ने मेरे टेस्ट के बारे में बताया और फिर अतुल मेरे सामने था। अब वह सुपर 30 का हिस्सा बन गया था और पटना में मेरे साथ था। मेरे घर के सभी सदस्य उसके स्वभाव और मेहनत से प्रभावित थे। वह सुपर 30 के स्टूडेंट्स के बीच भी बहुत लोकप्रिय था। एक बार जब कुछ दिनों के लिए उसकी तबियत खराब हो गयी तब सभी बच्चों ने उसका बहुत खयाल रखा। आज भी जब अतुल से बात होती है तब इस घटना की चर्चा करते हुए वह भावुक हो जाता है। समय बीतते देर नहीं लगी और आईआईटी प्रवेश परीक्षा का रिजल्ट आ चुका था।

सफल विद्यार्थियों की सूची में अतुल का नाम देखकर उसके पिता बहुत खुश थे। सुरेन्द्र गुप्ता के सपने भी पूरे हो गए और समाज में उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ गई। 2017 में आईआईटी से पढ़ाई पूरी होने के बाद अतुल की एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लग गई है।

मैं अभी अतुल की दो तस्वीर भी पोस्ट कर रहा हूँ | एक उस समय की जब वह सुपर 30 में अपने साथियों के साथ ईद मना रहा था और एक अभी की |

Anand kumar, super 30

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