रघुवंश बाबू को लालू ने नहीं बनने दिया उपराष्ट्रपति, कहा-एगो ठाकुर हटेगा तो दूसरा ठाकुरे बनेगा़ इ बात ठीक नहीं

जब लालू ने रोका रघुवंश प्रसाद के उपराष्ट्रपति बनने का रास्ता, बोले रघुवंश बाबू- हम अभी लड़ने भिड़ने वाले नेता…

पटना: जुलाई, 2007 की बात है. देश के तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत के कार्यकाल समाप्ति की ओर था. देश की सत्ता चला रही कांग्रेस की हुकूमत नये उपराष्ट्रपति की बेसब्री से तलाश कर रही थी. उस समय भाकपा के एबी वर्द्धन जीवित थे. उन लोगों ने इस मसले को लेकर एक गुप्त बैठक की. वर्द्धन का सुझाव था कि राजद के नेता रघुवंश प्रसाद सिंह उप राष्ट्रपति पद के सही उम्मीदवार साबित होंगे. यूपीए 1 की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में श्री सिंह की पहचान पूरे देश में एक इमानदार और समाजवादी चेहरा वाले नेता के रूप में बन रही थी. कांग्रेस का एक तबका श्री सिंह को मौका देने के पक्ष में था.

लालू ने कहा एगो ठाकुर हटेगा तो दूसरा ठाकुरे बनेगा़ इ बात ठीक नहीं : बात राजद मुखिया लालू प्रसाद के पास पहुंचायी गयी. खुद एबी वर्द्धन ने लालू प्रसाद से बातचीत की. बकौल रघुवंश बाबू, लालू ने कहा एगो ठाकुर हटेगा तो दूसरा ठाकुरे बनेगा़ इ बात ठीक नहीं है. मतलब भैरो सिंह शेखावत ठाकुर थे, उनके कार्यकाल के बाद फिर किसी दूसरे ठाकुर नेता को इस जगह पर बिठाना ठीक नहीं होगा. रघुवंश प्रसाद सिंह भी राजपूत यानि ठाकुर बिरादरी से आते थे.

हम अभी ल/ड़ने भिड़ने वाले नेता,अभी उस पद पर जाने लायक नहीं…जब कांग्रेस और वामपंथी नेताओं ने श्री सिंह को इस बात की जानकारी दी तो रघुवंश बाबू ने लालू प्रसाद और राजद का बचाव करते हुए कहा कि वो ठीक ही तो कह रहे हैं. हम अभी ल/ड़ने भिड़ने वाले नेता हैं. अभी उस पद पर जाने लायक नहीं हैं.

रघुवंश समर्थकों को सदा से रहा यह मलाल…रघुवंश प्रसाद सिंह पिछले महीने कोरोना महामारी की जंग जीत कर अपने गांव वैशाली में आराम कर रहे थे. इस दौरान जब उनकी महफिल जमती तो ऐसे पुराने किस्से उन्हें बरबस याद आ जाते थे. पटना एम्स से इलाज के बाद स्वस्थ्य होकर घर लौटे तो राजद के मुख्यमंत्री पद के चेहरा कहे जाने वाले तेजस्वी यादव ने उनसे मिलने की इच्छा जतायी थी. रघुवंश बाबू ने गांव के लोगों को बताया, हम कह देली, अभी तो डाकटर मना किया है, अभी ना आउ़ लालू प्रसाद और रघुवंश प्रसाद सिंह के बीच चालीस से अधिक सालों दोस्ती कभी खट्ठी तो कभी मीठी रही. पर रघुवंश समर्थकों को यह सदा से मलाल रहा कि जिस मुकाम के वो हकदार थे उन्हें, नहीं मिला.

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