राम मंदिर पर कांग्रेस नेता शकील अहमद का बिगड़े बोल, कहा-80 हिंदुओं ने जबरन मुसलमानों का हक छीना

शकील को बिहार का ‘ओवैसी’ बनने का नया शौक कहीं ‘शोक’ में ना बदल जाए

अवसरवादिता का दूसरा नाम ही राजनीति है। राजनीति के जो विशेषज्ञ होते हैं वे अवसर देखकर अपने विचार और बयान आम लोगों के सामने प्रस्तुत करते हैं। अगर आप किसी नेता को उनका पुराना बयान याद दिला दें तो वे कहेंगे कि वह उस समय की परिस्थिति को देखते हुए बयान दिया था या पलटकर ये भी कह सकते हैं कि आप क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं। बिहार की राजनीति में शकील अहमद एक बड़ा नाम हैं। कई बार विधायक औऱ सांसद रहने के बाद वे मनमोहन सिंह की सरकार में संचार और टेलकम राज्य मंत्री के अलावा गृह राज्यमंत्री भी रह चुके हैं।

एक समय में शकील अहमद का कांग्रेस में बहुत भौकाल रहता था औऱ वे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता भी रह चुके हैं। लेकिन इश बार के लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसा माहौल बना की उनकी परंपरागत सीट मधुबनी से महागठबंधन ने टिकट ही नहीं दिया। फिर क्या था, चुनाव लड़ने पर उतारू शकील अहमद ने किसी की नहीं सुनी और मैदान में निर्दलीय ही कूद पड़े। इस चुनाव में कांग्रेस के कैडर कार्यकर्ताओं ने भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शकील अहमद का साथ दिया।

हालांकि शकील अहमद इस चुनाव में बुरी तरह से हार गए लेकिन 1 लाख से कुछ ज्यादा वोट पाकर उन्होंने ये तो साबित कर ही दिया कि उनका जनाधार मधुबनी में निश्चित रूप से है। अब अचानक से शकील अहमद ने सोशल साइट ट्विटर पर ऐसा कुछ ट्वीट कर दिया है कि उनके अपने कार्यकर्ता भी इस बात से खफा हो गए हैं।

5 अगस्त को जबकि देश भर में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के भूमिपूजन का जश्न मनाया जा रहा था तो पूर्व कांग्रेसी नेता शकील अहमद ने ताबड़तोड़ ट्वीट दागना शुरू कर दिया। शकील अहमद ने सबसे पहला ट्वीट किया कि हमारे समाज के 80 प्रतिशत आबादी वाले जब 15 प्रतिशत वालों के धरोहरों को इस तर्क के साथ क़ब्ज़ा करने लगें कि तुम्हारे पूर्वजों ने इसे हमारे पूर्वजों से सैकड़ों वर्ष पहले छीन लिया था, तो 15 प्रतिशत वालों को अपनी अगली पीढ़ियों के भविष्य के बारे मे अवश्य चिंतित होना चाहिये।

इस ट्वीट के साथ शकील अहमद ने बाबरी मस्जिद के ढांचे औऱ प्रस्तावित राम मंदिर के डिजाइन की तस्वीर भी साझा किया।फिर इसके बाद भी शकील अहमद ने एक औऱ ट्वीट करते हुए लिखा है कि बाबर पहली बार 1526 मे राणा सांगा की मदद से भारत आया।फिर 1 साल मे ही इतना मज़बूत कैसे हो गया कि भगवान राम के जन्मस्थान के मंदिर को तोड़ कर 1527-28 मे मस्जिद बना दिया और हमारे पूर्वज ख़ामोश रहे? पूर्वज का मतलब हिन्दू मुस्लिम दोनो से है। भारत मे मुस्लिम 24% ही थे। बाबर तो बाहरी था।

ओवैसी ने कल एक राष्ट्रीय चैनल पर डिबेट के दौरान कहा है कि संविधान उनसे (प्रधानमंत्री मोदी) से डिमांड करता है कि वो किसी एक मज़हब के ना हो जाएं…आज प्रधानमंत्री ने वहां जा कर पूरे देश को ये बता दिया कि वो सिर्फ एक मज़हब के हैं!” अब सवाल ये है क्या अपने देश के प्रधानमंत्री क्या पहली बार किसी धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे हैं? क्या ओवैसी ये नहीं जानते हैं कि पूर्व के कई प्रधानमंत्रियों ने भी अलग-अलग धर्मों के धार्मिक स्थलों का दौरा कर चुके हैं।

मस्जिद या मजार, गुरुद्वारे, बौद्ध मठों में अगर प्रधानमंत्री जाएं तो कोई बात नहीं लेकिन किसी मंदिर के निर्माण हेतु भूमिपूजन में प्रधानमंत्री मोदी शामिल हो जाएं तो ओवैसी जैसे नेताओं को समस्या हो जाती है। ओवैसी और शकील अहमद जैसे नेताओं को क्या माननीय सुप्रीम कोर्ट पर भी भरोसा नहीं है क्या? क्या ओवैसी और शकील अहमद जैसे नेताओं को ये जानकारी भी नहीं है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण करने का रास्ता माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही शुरू किया गया है?

सिर्फ क्षणिक फायदे के लिए किसी धर्म विशेष के लोगों की भावनाओं को भड़काकर आखिर शकील अहमद और ओवैसी जैसे नेता क्या साबित करना चाहते हैं? ओवैसी की भाषा में ट्वीट दागने वाले यही शकील अहमद अपने चुनावी कार्यक्रमों के लिए रामकथा सुनने के लिए भी चले जाते हैं औऱ इनको रामनाम का चादर ओढ़ने से या तिलक लगाने से भी परहेज नहीं होता है। तब ये धर्म निरपेक्ष हो जाते हैं

लेकिन जब इनको लगने लगता है कि धर्म निरपेक्षता की दुकानदारी अब मार्केट से आउटडेटेड हो गई है तब ये फिर से धार्मिक कट्टरता का शॉपिंग मॉल चलाने लगते हैं। शकील अहमद के इस बयान के सामने आने के बाद उनके ही क्षेत्र के कई लोगों ने सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना भी की। शकील अहमद के ही समर्थक अब उनके इस बयान से किनारा कर रहे हैं।

बेनीपट्टी में कांग्रेस की विधायक भावना झा जो कि शकील अहमद की बहुत बड़ी समर्थक हैं उन्होंने भी शकील के इस ट्वीट को लाइक या शेयर तक नहीं किया उल्टे भावना झा ने राम जन्मभूमि पर बनने जा रहे मंदिर के समर्थन में पोस्ट किया। शकील अहमद जो कि पहले सर्व समाज के नेता माने जाते रहे हैं, अपने इस ट्वीट से उन्होंने खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारते हुए अपने दायरे को संकीर्ण बना लिया है जो कि उनके आने वाले राजनीतिक सफर के लिए कहीं से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

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