100 birth anniversary of Bhojpuri writer Moti B.A.: आज हम बात करेंगे भोजपुरी और हिंदी के ऐसे सच्चे सपूत की, जिनकी कलम से निकले शब्द सीधे दिल में उतरते थे। उनका नाम था मोती बी०ए०। 1 अगस्त 1919 को जन्मे मोती बी०ए० का 100वाँ जन्मदिन 1 अगस्त 2019 को आया। इस मौके पर हम उनके जीवन, संघर्ष और योगदान को एक सीधी-सपाट, गाँव की बोली में समझेंगे – ताकि हर आदमी उनके बारे में जान सके।
मोती बी०ए० की ज़िंदगी से जुड़ी मुख्य जानकारी:
जानकारी | विवरण |
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पूरा नाम | मोतीलाल उपाध्याय |
जन्मतिथि | 1 अगस्त 1919 |
जन्म स्थान | बरेजी गाँव, देवरिया, उत्तर प्रदेश |
100वाँ जन्मदिन | 1 अगस्त 2019 |
प्रमुख भाषा | भोजपुरी, हिंदी |
प्रमुख रचनाएँ | सेमर के फूल, तुलसी रसायन, मेघदूत (भोजपुरी अनुवाद) |
फिल्मी योगदान | पहला भोजपुरी फिल्मी गीत – “नदिया के पार” (1948) |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी भाषा सम्मान (2001), आदर्श अध्यापक पुरस्कार (1978) |
मृत्यु | 18 जनवरी 2009 |
मोती बी०ए० कौन थे और उनका नाम ‘बी०ए०’ क्यों पड़ा?

उनका असली नाम था मोतीलाल उपाध्याय। उन्होंने 1938 में बनारस से बी०ए० की पढ़ाई की थी। तब पढ़ाई बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। बी०ए० पास करने के बाद लोग उन्हें “मोती बी०ए०” कहने लगे – और वही नाम हमेशा के लिए उनका बन गया।
उनका जन्म कहाँ हुआ?
उनका जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरेजी गाँव में हुआ था। ये गाँव बरहज कस्बे के पास है। एकदम साधारण परिवार से आए थे, लेकिन उनके हौसले बड़े थे।
उनकी पढ़ाई-लिखाई कैसी रही?
उन्होंने हाईस्कूल 1934 में, इंटर 1936 में और फिर बी०ए० 1938 में किया। बाद में एम०ए०, बी०टी० और साहित्यरत्न भी किए। पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें कविता लिखने का बहुत शौक था।
भोजपुरी और हिंदी साहित्य में क्या योगदान रहा?

मोती बी०ए० ने भोजपुरी कविता को ऊँचाई तक पहुँचाया। जब लोग भोजपुरी को सिर्फ आम बोलचाल की भाषा मानते थे, तब मोती जी ने बताया कि इसमें भी साहित्य लिखा जा सकता है।
उनकी रचनाएँ जैसे – ‘सेमर के फूल’, ‘तुलसी रसायन’, ‘भोजपुरी सानेट’, ‘मेघदूत (भोजपुरी अनुवाद)’ बहुत मशहूर हुईं।
फिल्मों में भी गीत लिखे थे?
हाँ, मोती बी०ए० ने बॉलीवुड में पहला भोजपुरी गीत लिखा था। फिल्म थी नदिया के पार (1948) और गीत था “कठवा के नइया बनइहे रे मलहवा”। यह भोजपुरी में लिखा पहला फिल्मी गाना था – जिससे भोजपुरी का नाम बॉलीवुड में हुआ।
अध्यापक और स्वतंत्रता सेनानी भी थे
मोती बी०ए० सिर्फ लेखक ही नहीं, बल्कि एक अध्यापक और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। 1942 के आंदोलन में जेल गए। बाद में बरहज के श्रीकृष्ण इंटर कॉलेज में अध्यापक बने और 1978 में उन्हें ‘आदर्श अध्यापक पुरस्कार’ मिला।
सम्मान और पुरस्कार
उनके साहित्यिक योगदान को देखते हुए उन्हें साल 2001 में ‘साहित्य अकादमी भाषा सम्मान’ से नवाजा गया। यह भोजपुरी के लिए बहुत बड़ा सम्मान था।
उनकी रचनाएँ और गीत
उनकी रचनाओं में भोजपुरी, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी – चारों भाषाओं की झलक मिलती है। उन्होंने शेक्सपीयर के 109 सॉनेट्स, कोलरिज की कविता, रॉजेटी की कविता का भी हिंदी और भोजपुरी में अनुवाद किया। यह दिखाता है कि उनकी समझ बहुत गहरी थी।
निष्कर्ष – मोती बी०ए० को याद क्यों करना चाहिए?
आज के समय में जब लोग अपनी भाषा और जड़ों को भूलते जा रहे हैं, मोती बी०ए० जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि भोजपुरी सिर्फ बोली नहीं, बल्कि एक समृद्ध संस्कृति है। उन्होंने दिखाया कि गाँव की भाषा में भी वो ताकत है जो लोगों का दिल छू ले।
उनका 100वाँ जन्मदिन 1 अगस्त 2019 को था, लेकिन हर साल यह तारीख हमें बताती है कि भोजपुरी का असली सपूत कौन था। हमें चाहिए कि हम उनके लिखे गीत, कविताएँ और विचार आगे की पीढ़ियों तक पहुँचाएँ। हमसे जुडने के लिए धन्यवाद!