बिहार के 50 लाख मजदूरों की नौकरी पर खतरा, बिहार की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा छंटनी का असर

वर्तमान में चल रही आर्थिक मंदी बिहार के प्रवासी 50 लाख मजदूरों के लिए खतरा बन गयी है. इसका सीधा असर बिहार की रेमिटेंस इकोनॉमी (बाहर के नौकरी पेशा लोगों के द्वारा भेजे गये पैसे) पर पड़ेगा. राज्य सरकार के वर्ष 2015 में जारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार की अर्थव्यवस्था में 5 फीसदी योगदान कुशल व अकुशल श्रमिकों की तरफ से बिहार के बाहर से कमा कर भेजी गयी राशि का है.

सकल राज्य घरेलू उत्पाद (मौजूदा मूल्यों पर) करीब 5,15,634 करोड़ रुपये है. जाहिर है कि इसका 25781 करोड़ की राशि प्रवासी मजदूर बिहार भेजते हैं. अगर यह मंदी जल्दी ही दूर नहीं हुई तो भेजी जाने वाली यह राशि घट सकती है. देश की टेक्सटाइल, विनिर्माण व माइंस इंडस्ट्रीज में मंदी का असर दिखने लगा है. यह वे क्षेत्र हैं, जहां प्रवासी मजदूर के रूप में एक बड़ी आबादी बिहार की काम कर रही है. इसकी आहट सुनाई देनी लगी है.

छंटनी का असर बिहार की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा : रीजनल डायरेक्टर परमिंदर जीत कौर ने बताया कि प्रारंभिक आकलन आर्थिक मंदी की वजह से मजदूरों की छंटनी की पुष्टि कर रहा है. चूंकि, देश में काम के सिलसिले में घर से बाहर निकले मजदूरों में हर तीसरा मानव श्रम बिहार का है. जाहिर है कि छंटनी का असर बिहार की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. ऐसोचैम का मानना है कि अभी छंटनी की रफ्तार धीमी है. गुजरात का टेक्सटाइल व दिल्ली का विनिर्माण, टेक्सटाइल व इंजीनियरिंग वर्क्स अभी डटे हुए हैं. जैसे ही ये प्रभावित होंगे, बेरोजगारी तेजी से बढ़ जायेगी.

ऐसोचैम की पूर्वी भारत की रीजनल डायरेक्टर परमजीत कौर के मुताबिक खाने वाले सभी तरह के तेल और कच्चे उत्पाद इन दिनों पूर्वी एशिया व बांग्लादेश से मंगाये जा रहे हैं. इसका सीधा असर स्थानीय ऑयल इंडस्ट्रीज पर पड़ा है. जाहिर है कि किसानों के तेलहन को बाजार में अच्छा मूल्य भी नहीं मिल रहा. आगे चलकर वह घाटे की खेती बंद कर देंगे.

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *