PATNA (arvind-kejriwal-ka-ahankar) : दिल्ली विधान सभा चुनाव, अरविंद केजरीवाल के अहंकार ने किया विपक्ष का बंटाधार । दिल्ली विधान सभा चुनाव का का परिणाम आ चुका है इस चुनाव परिणाम की समीक्षा भी राजनीतिक पंडितों द्वारा की जा चुकी है और की जा रही है ।जहां एक ओर राजनीतिक पंडित मान रहे है कि अन्ना आंदोलन के गर्भ से निकले अरविंद केजरीवाल खुद भ्रष्टाचार में इतना लीन हो गए कि जेल जाने के बाद भी उन्होंने सीएम की कुर्सी नहीं छोड़ी ।शायद देश की यह पहली घटना है ।दूसरी ओर जिस कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने सत्ता की कुर्सी पाई जेल जाने पर उसी कांग्रेस से संसद में समर्थन मांगा ।फिर गिरगिट की तरह पाला बदलकर हरियाणा में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा और लोक सभा में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया ।यानि केजरीवाल क्या चीज है उन्हें खुद भी नहीं पता ।90 के दशक के पहले जब समूचे देश में कांग्रेस की तूती बोलती थी उस समय चुनाव में उसे पराजित करने के लिए समाजवादी या यों कहे कि विपक्षी पार्टियां एक जुट होती और सत्ता में आने के बाद फिर आपस में ही भिड़ जाती।1967,1977,1990 इसके उदाहरण है।कमोबेश बिहार में भी यही हाल रहा है ।
लेकिन अरविंद केजरीवाल देश के शायद पहले नेता है जिन्होंने पार्टी बनाई और पहली बार उनकी पार्टी चुनाव मैदान में उतरी और जिस पार्टी को सत्ता से बेदखल किया फिर उसी के समर्थन से सीएम बने ।इतना ही नहीं कांग्रेस के खिलाफ उन्होंने पंजाब , गुजरात ,हरियाणा गोवा जैसे राज्यों में अपना उम्मीदवार उतारा ।यानि विपक्षी एकता को तार तार ही नहीं किया कांग्रेस को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।दिल्ली विधान सभा चुनाव में तो उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ ऐसे बयान दिए जैसे कि लगता था की केंद्र की सत्ता में कांग्रेस ही हो ।परिणाम सामने है ।भले ही कांग्रेस की दिल्ली में जमानत जब्त हो गई हो लेकिन करीब डेढ़ दर्जन सीटों खासकर 15 सीटों पर तो कांग्रेस उम्मीदवार की वजह से आप के उम्मीदवारों को शिकस्त खानी पड़ी ।अगर आप और कांग्रेस के वोट को जोड़ लें तो यह 50 प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है ।यानि अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से पंगा लेकर अपनी नैया डूबो दी ।
इसमें कोई शक नहीं कि बीजेपी की चुनावी रणनीति मोदी और शाह की जोड़ी के शाम दाम दंड भेद के समक्ष केजरीवाल और कांग्रेस कहीं नहीं टिक पाई लेकिन इतना तो तय है कि अगर आप और कांग्रेस साथ होती तो बीजेपी को इतना प्रचंड बहुमत नहीं मिलता और दिल्ली में एक मजबूत विपक्ष विधान सभा में बीजेपी की सरकार के समक्ष होती ।लेकिन अब पछतायत होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ।अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से विपक्षी एकता को तार तार किया है इसका असर आने वाले दिनों में दिखेगा ।शायद वह दिन भी दूर नहीं जब कभी राष्ट्रीय पार्टी का सपना देखने वाले केजरीवाल की राजनीति की पारी अब समाप्त होने के कगार पर हो।फिलहाल कह सकते है देश की राजनीति में जिस आंधी की तरह केजरीवाल आए थे तूफान की तरह उनकी विदाई होगी शायद उन्होंने भी सपने में नहीं सोचा था ।
लेखक : अशोक कुमार मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार