एक रेल लाइन जो कभी पूरी न हो सकी, उद्धारक का बाट जोह रहा सिमरी बख्तियारपुर-बिहारीगंज रेलखंड

PATNA : यूँ तो कहने को आज़ाद भारत में सबसे ज्यादा रेल मंत्री बिहार ने ही दिए लेकिन गर रेलवे के पिछड़ेपन की बात करें तो हम अभी भी बहुत पीछे हैं । बात 1973 की है, भारत सरकार के रेल मंत्री थे ललित नारायण मिश्रा । उन्होंने एक सपना देखा था, बिहार का हरेक कस्बा रेल लाइन से जुड़ा हो। इसी क्रम में उन्होंने सिमरी बख्तियारपुर से बिहारीगंज के लिए एक 50 किलोमीटर नई मीटर गेज़ रेल लाइन का प्रस्ताव रखा जो सोनबरसा राज से होकर गुजरती । इसके लिए रेलवे ने बाकायदा 23-03-74 से 04-10-74 तक सर्वे किया और अपनी रिपोर्ट लेटर नम्बर 73/W4/Con/Ne/9 के द्वारा रेलवे को सौंप दिया । योजना आगे बढ़ पाती की 3 जनवरी 1974 को तत्कालीन रेल मंत्री की हत्या हो गई और उसके बाद यह रिपोर्ट ठंढे बस्ते में चली गई ।

पुनः एक बार जब 1996 में राम बिलास पासवान मंत्री बने तो यह सुगबुगाहट हुई कि उस रेल लाइन के लिए जो सर्वे हुआ था उसपर काम शुरू हो । लेकिन तब तक मीटर गेज़ का जमाना जा चुका था, ब्रॉड गेज़ के लिए एक बार फिर रेलवे ने अपने पत्र संख्या 96/W1/NE/LCT/11 dated 30-09-1996 को ब्रॉड गेज़ के लिए सर्वेक्षण का आदेश पारित किया । नार्थ ईस्टर्न रेलवे ने 19-08-1998 को अपने पत्र संख्या W/CON/348/130 के द्वारा इस प्रोजेक्ट की डिटेल रिपोर्ट रेल मंत्रालय को सौंपी। सर्वे में कहा गया कि 54.50km वाली इस रेल लाइन में 139.37 करोड़ का खर्चा आएगा और ROR (-) 5.78% होगा । रेलवे ने यह भी लिखा कि लगभग 50 किलोमीटर की इस परियोजना में 30 रेलवे क्रॉसिंग का निर्माण करना पड़ेगा जोकि सरासर गलत और बेबुनियाद था । और इसी वजह से इसे बज़ट से बाहर और आधारहीन बताते हुए इसे ठंढे बस्ते में डाल दिया गया ।

जब नीतीश कुमार दुबारा से 2001 में रेल मंत्री बने तो उन्होंने पुनः इस मुद्दे को नौंवी पंचवर्षीय योजना में उठाया, फिर से एक बार ट्रैफिक सर्वे कराया गया । लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात, कागज़ पर योजना बनी और पुनः यह कहकर इस योजना को ठंढे बस्ते में डाल दिया गया की यह फायदेमंद नही होगा ।

एक बार फिर रेलवे बोर्ड के सदस्यों ने इंजीनियरिंग कम ट्रैफिक सर्वे रिपोर्ट के लिए एक टेंडर सीरियल नम्बर 1 ब्लू बुक, ईयर 2019-20 के लिए निकाला है । अब कोई एजेंसी इस काम करेगी और फायदेमंद बताएगी तभी इस लाइन का कुछ हो सकता है ।

एजेंसी अगर सर्वे करने से पहले ये देख ले कि पूरे बिहार में पलायन के लिए प्रसिद्ध सहरसा जिले में अगर यह रेल लाइन मूर्त रूप ले लेती है तो स्टेशन का बोझ कुछ कम हो सकता है । मक्के के लिए रैक के इंतजार में व्यापारियों को महीने महीने भर नही भटकना पड़ेगा । और भुखमरी के दंश को झेल रहा ग्रामीण इलाका रोजगार के नए दरवाजे खोल पाएगा ।

यहाँ ज्ञात हो कि आजादी के बाद बिहार ने 8 रेलमंत्री दिए हैं। 1962 में बाबू जगजीवन राम, 1969 में राम सुभग सिंग, 1973 में ललित नारायण मिश्रा, 1982 में केदार पांडेय, 1989 में जार्ज फर्नांडिस, 1996 में रामबिलास पासवान, 1998 और 2001 में नीतीश कुमार और 2004 में लालू प्रसाद यादव । नए रेल मंत्री के रूप में पीयूष गोयल ने भी रेलवे में आशातीत बढ़ोतरी की है । उम्मीद है उनके कार्यकाल में इस रेल लाइन को नया जीवन मिल सके
लेखक : सुनील कुमार झा, पत्रकार, ईसमाद

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