आज है बिहार का अदभुत लोकपर्व सत्तुआनी, 15 को मनेगा बसिया बड़ी-भात खाने का पर्व जूड़ शीतल

वैशाख शुरू होने के साथ ही सत्तुआनी का महापर्व मनाया जाता है. उत्तर भारत में कई जगहों पर इसे मनाने की परंपरा काफी पहले से चली आ रही है. इस दिन लोग अपने पूजा घर में मिट्टी या पीतल के घड़े में आम का पल्लव स्थापित करते हैं. इस दिन दाल से बने सत्तू खाने की परंपरा होती. सत्तुआनी का महापर्व 14 अप्रैल को मनाया जाएगा.सतुआनी के पर्व पर सत्तू, गुड़ और चीनी से पूजा की होती है. इस त्योहर पर दान में सोना और चांदी देने की भी बड़ा महत्व है. पूजा के बाद लोग सत्तू, आम प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है.

इसके एक दिन बाद 15 अप्रैल को जूड़ शीतल का त्योहार मनाया जाएगा. 14 अप्रैल को सूर्य मीन राशि छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करेंगे. इसी के उपलक्ष्य में यह त्योहार मनाया जाता है. इस दिन पेड़ में बासी जल डालने की भी परंपरा है. जुड़ शीतल का त्योहार बिहार में हर्षोलास के साथ मनाया जाता है.

सतुआनी की पूजन विधि
सतुआनी के पर्व से ठीक एक दिन पहले मिट्टी के घड़े में जल को ढंककर रखा जाता है. फिर शीतल के दिन सुबह पूर घर में उसी जल से पवित्र छिड़काव करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस बासी जल के छींटों से पूरा घर और आंगन शुद्ध हो जाता है. इस दिन बासी खाना खाने की भी परंपरा होती है. कहते हैं कि जब सूर्य मीन से मेष राशि में प्रवेश करता है तो उसके पुण्यकाल में सूर्य और चंद्र की रश्मियों से अमृतधारा की वर्षा होती है, जो आरोग्यवर्धक होता है. इसलिए इस दिन लोग बासी खाना भी खाते हैं.

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