आरा-मुंडेश्वरी रेल लाइन को मिला मात्र 1000 रुपये, बिहार के लोगों के साथ मोदी सरकार का गंदा मजाक

1000 रुपये में पूरी होगी आरा-मुंडेश्वरी रेल लाइन, वाह रे विकास : आरा-मुंडेश्वरी रेल लाइन के साथ इससे घटिया मजाक क्या हो सकता है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में इस बहुप्रतीक्षित परियोजना के लिए रेल बजट में महज 1000 रुपये मिले हैं। बजट संसद में पेश होते ही स्थानीय अखबारों के पेजों पर खूब लीपा पोता गया और कहा गया कि इस परियोजना के लिए 2296 करोड़ रुपये बजट में स्वीकृत हुए हैं।

खबरों की सत्यता पर संदेह होते ही मैंने तत्काल इस परियोजना से सम्बंधित अहम जानकारी के लिए आरटीआई मांगी, जिसमें 3 सवाल पूछे गए थे– 2008 में शिलान्यास के बाद अब तक हरेक वित्तीय वर्ष में कुल कितनी राशि खर्च हुई, वर्तमान वित्तीय वर्ष में कुल कितनी राशि स्वीकृत हुई, परियोजना की कुल लम्बाई क्या है और अब तक भूमि अधिग्रहण की क्या स्थिति है? जवाब आया- वर्ष 2008 में 750465, 2009 में 1475682 और 2011 में 1104660 यानी तीन वित्तीय वर्षों में केवल 3300807 रुपये खर्च हुए। 2011 के बाद केवल शून्य दिखता है।

इस साल के रेल बजट में परियोजना को पूरी करने के लिए केवल 1000 रुपये स्वीकृत हैं। 31 अक्टूबर, 2008 यानी कि शिलान्यास वर्ष में जिला भू अर्जन पदाधिकारी के पास 7 गाँव की भूमि अधिगृहित करने के लिए फ़ाइल गई थी जो आज तक लंबित है यानी 1 इंच भी भूमि आज तक अधिगृहित नहीं हो पाई। वीर कुंवर सिंह की जन्मभूमि जगदीशपुर और विश्व के सबसे पुराने हिंदू मंदिर माँ मुंडेश्वरी धाम को जोड़ने वाली 137 किमी लंबी इस परियोजना पर संसद में लगातार सवाल उठे हैं।

शिलान्यास के अगले वर्ष जगदानन्द सिंह के सवाल के जवाब में मंत्रालय ने बताया कि 450 करोड़ रुपये की योजना बढ़कर 550 करोड़ हो गई है और कार्य कब शुरू होगा यह बताने में मंत्रालय असमर्थ है। 2017 में रंजीता रंजन के सवाल के जवाब में बताया गया कि परियोजना की लागत बढ़कर 1931 करोड़ और 2018 में मनोज तिवारी के सवाल उठाने पर यह जवाब मिला कि मंत्रालय इस परियोजना के पूरे होने के बारे में कुछ नहीं बता सकता। ममता बनर्जी के मंत्रित्व के काल में तो इस परियोजना को फायदेमन्द ना समझते हुए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मोड में डाल दिया गया। इसके बाद कि कई रेल परियोजनाएं स्वीकृत होकर पूरी हो गयी या काम चल रहा है।

शाहाबाद की एक अन्य रेल परियोजना डिहरी-बंजारी-अकबरपुर का कमोबेश यही हाल है। इस साल पूर्वमध्यरेल के दस्तावेजों में इस परियोजना की लागत 2296 करोड़ हो गयी है जिसे अखबारों ने स्वीकृत राशि समझकर छाप दिया था।


ताजा विवाद इसलिए है कि हाल ही में रेलवे की लोकसभावार उपलब्धि पुस्तिका में इस रेल लाइन का नाम सूची से हटाकर इसकी जगह दिलदारनगर-मुंडेश्वरी नए प्रोजेक्ट का नाम डाला गया है। हालांकि, मनोज सिन्हा के रेल राज्य मंत्रित्व काल में भी यह अफवाह फैली थी कि मनोज तिवारी ने दिलदारनगर परियोजना शुरू करने के लिए उनसे बात की है।

अगस्त,2018 में तत्कालीन रेलमंत्री पीयूष गोयल के आरा दौरे पर 2 सांसदों छेदी पासवान और अश्विनी चौबे ने मंच से आरा-मुंडेश्वरी और डिहरी-बंजारी का मामला उठाया था तो रेलमंत्री का आश्वासन भी मिला पर नतीजा आज तक केवल 1000 रुपये में दिखता है। शाहाबाद की जनता को यह डर सता रहा है कि आरा-मुंडेश्वरी प्रोजेक्ट जिसका लालू यादव ने रेलमंत्री रहते हुए २००८ में शिलान्यास किया था 12 सालों में एक इंच भी नहीं बढ़ पाई कहीं ठंडे बस्ते में न चली जाए। हाल ही में धरने, प्रदर्शन के सिलसिले शुरू हो गए हैं। कुछ अखबारों में कुछ समय पहले एक फोटो छपी थी कि प्रोजेक्ट आफिस जो भभुआ रोड स्टेशन पर है वहां अब गोबर थापा जा रहा है और मवेशी बांधे जाता है, वहां जाने पर ही इस बात की सत्यता पता चलेगी।


अब अखबारों की बानगी देखिए पहले 2296 करोड़ मिलने की खबर, फिर मेरे आरटीआई और अन्य सम्बंधित दस्तावेज देने पर तकनीकी जानकारियों सम्बंधित एक खबर केवल ‘हिंदुस्तान’ में परसों आई उसमें भी यह जानकारी सिरे से गायब कर दी गयी कि इस बजट में केवल 1000 रुपये ही आवंटित हैं। ‘दैनिक भास्कर’ के रिपोर्टर काफी पहले मुझसे मिले और खबर छापने की बजाय मेरे आरटीआई के जवाब की लीगल सत्यता जांचने लगे और कहा कि बिना वकील से राय लिए यह न्यूज़ नहीं छाप सकते। कल ‘प्रभात खबर’ के रिपोर्टर को न्यूज़ और डॉक्यूमेंट भेजे जाने पर उन्होंने कहा कि बिना पढ़े न्यूज़ नहीं छपेगी, आज अखबार में कोई चर्चा नहीं है। इस खबर और सम्बंधित दस्तावेजों को कोई भी पत्रकार या सामाजिक कार्यकर्ता छापने या आगे की कार्रवाई के लिए उपयोग में ला सकता है।

रवि प्रकाश

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