अब हमारे जवान भी ‘देशद्रोही’ कहलाएँगे…

Rahul kotiyal

पुलवामा में जो 40 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे उनके नाम पर कितनी राजनीति हुई ये सभी जानते हैं. सुरक्षा व्यवस्था में इतनी भारी चूक के लिए जिस सरकार को शर्मिंदा होना चाहिए था उस सरकार ने पूरी बेशर्मी से इसी घटना के नाम पर वोट माँगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ुद रैलियों में कहा कि फ़र्स्ट टाइम वोटर इन जवानों के नाम पर उन्हें वोट दें.

उन्हें वोट मिले भी और भाजपा भारी बहुमत से दोबारा चुनी गई. लेकिन चुने जाने के बाद इस सरकार ने सीआरपीएफ के साथ क्या किया? उन्हें इतना दुखी कर दिया कि आज उनके कई अफ़सर अपने डेकोरेशन और अवॉर्ड लगाने से इंकार कर रहे हैं. कई अफ़सर तो अपने गैलंट्री मेडल तक वापस करने जा रहे हैं.

इससे पहले कि आप इन जवानों को ‘अवॉर्ड वापसी गैंग’ कहने लगे और इन्हें ही देशद्रोही बता दें, इस पूरे मामले को संक्षेप में जान लीजिए.

सीआरपीएफ जैसे केंद्रीय सुरक्षा बल सीएपीएफ के अंतर्गत आते हैं. सीएपीएफ यानी सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फ़ॉर्सेज़. सीआरपीएफ के साथ ही बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, असम राइफ़ल्ज़, एनएसजी और एसएसबी भी सीएपीएफ के अंतर्गत ही आते हैं.

ये तमाम सुरक्षा बल पिछले कई सालों से अपने अधिकारों की क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. ये लड़ाई है ओजीएएस यानी ‘ऑर्गनायज़्ड ग्रूप ए सर्विसेज़’ की. सुरक्षा बलों की माँग है कि उन्हें ओजीएएस स्टेटस दिया जाए और इसके तहत ‘नॉन फ़ंक्शनल फ़ायनैन्शल अप्ग्रेडेशन’ यानी एनएफएफयू के लाभ दिए जाएँ.

मोटे तौर पर ये समझ लीजिए कि इन तमाम सुरक्षा बलों की लड़ाई एक तो इन्हें मिलने वाली सुविधाओं की भारी कमी के लिए है. दूसरा, इन तमाम सुरक्षा बलों के सर्वोच्च पदों को आईपीएस लॉबी की आरामगाह बना दिया गया है जिसका सुरक्षा बल विरोध कर रहे हैं. उनका तर्क जायज़ ही है कि कश्मीर से लेकर दंतेवाड़ा के जंगलों तक में अपनी जान का जोखिम सीएपीएफ के जवान और अफ़सर उठाते हैं लेकिन सर्वोच्च पदों पर आईपीएस लॉबी पैराशूट से उतर कर क़ब्ज़ा जमा लेती है.

जवानों के नाम पर जमकर वोट माँगने वाली इस सरकार ने तो इन सुरक्षा बलों के लिए कुछ नहीं किया लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इनकी गुहार सुन ली थी. कोर्ट ने ही मोदी सरकार को निर्देश दिए थे कि सितम्बर ख़त्म होने से पहले सीएपीएफ को ये तमाम लाभ दिए जाएँ.

कोर्ट के आदेशों से मजबूर मोदी सरकार इतनी शातिर निकली कि उसने पहले तो इसे अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि बताया, जबकि कोर्ट में वो इसका विरोध कर रही थी, और अंततः इसे लागू करने से भी मुकर गई.

इस सरकार ने जब अपने सौ दिन पूरे किए तो पोस्टर छपवा कर बताया कि हमारी सरकार ने सौ दिन भीतर ही सीएपीएफ को ओजीएएस का दर्जा और एनएफएफयू के लाभ दे दिए हैं. जबकि हक़ीक़त ये है कि ये तमाम लाभ सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय समय के बाद भी जवानों को नहीं मिल रहे. उलटा ये सरकार अब दोबारा सुप्रीम कोर्ट जाकर नौ-नौ प्रकार के बहाने बनाने लगी है.

इसी से नाराज़ सीएपीएफ के कई जवान विरोध स्वरूप अपने अवॉर्ड और डेकोरेशन उतार चुके हैं. कई अफ़सर अपने मेडल लौटाने की बात तक कह चुके हैं.

लेकिन आप चिंता न करें. आप उन्मादी टीवी एंकरों से ‘सब चंगा सी’ सुनते रहें और पड़ोस में रहने वाले जुम्मन की दाढ़ी खींचकर उससे ‘भारत माता की जय’ बुलवाते रहें.

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