बिहार में 100 साल बाद फिर से अकाल की आहट, पानी के लिए तरस रहे हैं लोग

PATNA : दरभंगा को तलाबों का शहर कहा जाता है। संभवत: यही कारण है की मिथिला क्षेत्र में एक कहावत काफी प्रसिद्ध है-पग पग पोखर माछ मखान…अर्थात यहां हरेक कदम पर तलाब मिल जाएंगे जिसमे मछली और मखाने का दर्शन संभव है। इन दिनों मिथिला क्षेत्र के लोग पानी की किल्लत से रूबरू हो रहे हैं। पोखर तालाब पर भूमाफियाओं ने कब्जा कर रखा है। आइए जानते हैं की क्यों मर रहे हैं तालाब….

मिथिला में 100 साल बाद एक बार फिर अकाल की आहट है। तालाब मर रहे हैं, एक दो नहीं सैकडों तालाब गायब हो चुके हैं। लोग तालाब बचाने की बात कर रहे हैं, लेकिन..बीमारी कहां है, ये बिना जाने हो हो हो रहा है। समस्‍या सब को मालूम है..निराकरण कैसे होगा..इस पर सब खामोश..कोई यह जानने समझने को तैयार नहीं है कि आखिर ये सब कैसे हो गया। पानी के लिए समस्‍या की जड खोदनी होगी।

मिथिला में हमेशा तालाब को खासमहाल श्रेणी में रखा गया था, ताकि पानी सबके लिए उपलब्‍ध हो। भोजपुर या चंपारण में ऐसा नहीं था। यह प्रावधान केवल तिरहुत की जमींदारी में था कि तालाब खुदाने पर खासमहाल होने के बावजूद तलाब की जमीन पर मालिकाना हक बरकरार रहेगा। जब तक उस जमीन पर तालाब रहेगा वो जमीन कर मुक्‍त रहेगी।

बिहारी होने के चक्‍कर में हम भूल जाते हैं कि चंपारण या भोजपुर की तरह तालाब और नहर पर तिरहुत में कोई लगान नहीं था। लोग लगान बचाने के लिए भी तालाब खुदबाते थे। उसकी देखरेख का जिम्‍मा समाज के ऊपर होता था। इसलिए जमींदार को उसपर कोई खर्च भी नहीं उठाना था। भोजपुर या चंपारण में नहर या पाईन की देखभाल जमींदार करते थे। इसलिए वहां जलकर था।

जमींदारी जाने के बाद सरकार ने तिरहुत के इस विशेष प्रावधान को नजर अंदाज किया गया। चंपारण और भोजपुर की तरह ही तिरहुत के तालाब की जमीन को भी सार्वजनिक घोषित हो गयी, क्‍योंकि खासमहाल की जमीन सार्वजनिक जमीन है। जलकर और तालाबों की बंदोबस्‍ती शुरु हो गयी। बंदोबस्‍ती के बाद समाज ने तालाब को छोड दिया। अनाथ तालाब धीरे-धीरे बीमार हो गया और दम तोड दिया।

अब तालाब का मालिक क्‍या करेगा, अब वो खासमहाल की जमीन हो गयी। अपनी जमीन सरकार को दे दे। अब सोच रहे हैं क्‍यों खुदवाया तालाब। जमींदारी के दौरान अपनी जमीन पर तालाब खुदवाया, उसका दंड अब तालाब मालिक भोग रहे हैं। समस्‍या की जड यही है, कोई तालाब के रूप में सरकार को अपनी जमीन क्‍यों देगा..तालाब की मौत तो उसी दिन तय हो गयी जिस दिन सरकार जलकर वसूलना शुरु किया और तालाब की बंदोबस्‍ती शुरु हुई..ये दोनों कानून जमींदारी के समय नहीं था।
लेखक : आशीष झा, पत्रकार, पटना

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