सौ रुपए की दिहाड़ी कमाने वाले मजदूर, कहां से लायेंगे राजधानी के बराबर टिकट के पैसे? सरकार गरीबों के लिए कब सोचेगी?

कोरोना महामारी के कारण देश में घोषित लॉकडाउन की वजह से बंद यात्री ट्रेनें 12 मई से फिर से रफ्तार पकड़ेंगी। इस दौरान दूसरे राज्यों में फंसे लोग और जरूरी काम से दूसरी जगहों पर जाने वाले लोग यात्रा कर सकते हैं।

केवल वैध कंफर्म टिकट वाले यात्रियों को रेलवे स्टेशनों में प्रवेश करने की अनुमति होगी। यात्रियों को प्रवेश के दौरान मास्क अनिवार्य होगा और प्रस्थान के समय स्क्रीनिंग से गुजरना होगा और सिर्फ यात्रियों को ट्रेन में चढ़ने की अनुमति होगी। सिर्फ उन्हीं लोगों को ट्रेन में चढ़ने की अनुमति होगी जिनमें वायरस से संक्रमण के कोई लक्षण नजर नहीं आएंगे।

यहां तक तो बात ठीक थी और जायज भी। लेकिन 12 मई से शुरू हो रही ट्रेनों में केवल एसी कंपार्टमेंट ही शामिल होंगे। जिनमें 1 एसी, 2 एसी और 3 एसी के कोच लगे रहेंगे। इन ट्रेनों में कोई भी स्लीपर या जनरल क्लास की बोगी नहीं होगी। और सबसे जरूरी बात ये कि किराया राजधानी एक्सप्रेस के किराया के बराबर लगेगा।

खैर, मोदी जी ने तो पहले ही हिंट देकर कहा था कि जो सुविधाएं अमीरों को प्राप्त हैं वही सुविधाएं गरीबों को देना उनका सपना है। और वैसे भी मोदी जी ने ऐसा थोड़े ही कहा था कि गरीबों को जब सारी सुविधाएं देंगे तो उसके पैसे नहीं लेंगे

अब आप खुद बताईए कि सरकार के इस फैसले से १०० रुपए रोज की दिहाड़ी कमाने वाला प्रवासी मजदूर राजधानी के लागत वाली मूल्य का टिकट कैसे कटवा पाएगा?

क्या सरकार की सारी सुख सुविधाएं अमीर उद्योगपति और पूंजीपतियों के लिए है या फिर इस देश की गरीब जनता के लिए देश के खजाने में अशरफियां अब भी शेष है?

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