शहाबुद्दीन को सजा और आनंद मोहन को रिहाई ऐसा क्यों, क्या मु’सलमान होना अपराध है

मरहूम मोहम्मद शहाबुद्दीन साहब को क़रीब 12 साल जेल में बिताने के बाद 2016 में पटना हाईकोर्ट से ज़मानत मिल गई थी, बिहार सरकार को ये बात रास नहीं आई और प्रशांत भूषण ने सुप्रीम का दरवाज़ा खटखटा दिया, नतीजतन सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन साहब की ज़मानत रद्द कर दी जिसके बाद सीवान कोर्ट में उन्होंने सरेंडर कर दिया, साल 2021 में शहाबुद्दीन साहब की मौत हो गयी।

आज आनंद मोहन को रिहा कर दिया गया है, आनंद मोहन का बेटा चेतन आनंद राजद से विधायक है और पत्नी राजद की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ी थी। राजद और जदयू एक साथ सरकार चला रही है। एक अबोध बालक भी यह बात समझ सकता है की आनंद मोहन सिंह की रिहाई में अकेले नीतीश कुमार जिम्मेदार नहीं बल्कि राजद भी बराबर की जिम्मेदार है। ठीक उसी तरह शहाबुद्दीन को तिहाड़ भेजने में तेजस्वी यादव का उतना ही योगदान था जितना की नीतीश कुमार का योगदान था।

क्योंकि उस समय भी राजद और जदयू की एक साथ सरकार चल रही थी। कहने का मतलब बस इतना है की बिरयानी में तेजपत्ते का महत्त्व चूल्हे तक ही सीमित है बाकी आप समझदार हैं।

लेखक : अशरफ हुसैन, स्वतंत्र पत्रकार, यह लेखक के निजी विचार है

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