अभी-अभी : सुप्रीम कोर्ट ने अर्णब गोस्वामी को दी जमानत, कहा – ‘मुंबई पुलिस तुरंत माने आदेश’

सुप्रीम कोर्ट ने अर्णब गोस्वामी को बेल दे दिया है। जमानत आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने के लिए मुंबई पुलिस को निर्देशित किया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- “हम मानते हैं कि जमानत नहीं देने में हाईकोर्ट गलत था।” इसके साथ ही अर्नब गोस्वामी और दो अन्य आरोपितों को 50,000 रुपए के बांड पर अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया। पुलिस आयुक्त को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाता है कि आदेश का तुरंत पालन किया जाए।

अर्णब गोस्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर हम आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करते हैं तो बर्बादी की राह पर बढ़ जाएँगे। उन्होंने कहा कि किसी की विचारधारा अलग हो सकती है और वो चैनल नहीं देखे, लेकिन संवैधानिक अदालतें अगर ऐसी आज़ादी की सुरक्षा नहीं करती हैं तो वो बर्बादी की राह पर बढ़ रही है

उन्होंने याद दिलाया कि कैसे पश्चिम बंगाल में एक महिला को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया था, क्योंकि उसने लॉकडाउन को लेकर सरकार की आलोचना की थी। उन्होंने पूछा कि क्या ये सही था? महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें लगता है कि जस्टिस चंद्रचूड़ के पास इस मामले में ‘स्ट्रॉन्ग फीलिंग्स’ हैं, जिसके जवाब में उन्होंने अर्णब गोस्वामी को कुछ देर के लिए भूल जाने की बात करते हुए कहा कि हम एक संवैधानिक अदालत हैं।

उन्होंने कहा कि एक संवैधानिक अदालत अगर लिबर्टी की सुरक्षा नहीं करे तो फिर और कौन करेगा? उन्होंने कहा कि पीड़ित को पूरा अधिकार है कि उसे निष्पक्ष जाँच का अधिकार मिले लेकिन आपको अगर चैनल नहीं देखना है तो मत देखिए। मजिस्ट्रेट के सामने याचिका डाल कर वापस लेने से विरोधी तर्क पर उन्होंने कहा कि किसी की लिबर्टी के अधिकार को छीनने के लिए और जमानत न देने के लिए ये कोई तर्क नहीं हो सकता। जस्टिस चंद्रचूड़ ने ये प्रमुख बातें कहीं:

“हम बर्बादी के राह पर चल पड़ेंगे, अगर आज इस न्यायालय ने हस्तक्षेप नहीं किया। उसकी विचारधारा जो भी हो, मैं तो उसका चैनल भी नहीं देखता लेकिन ‘इस’ मुद्दे पर अगर संवैधानिक न्यायालयों ने आज हस्तक्षेप नहीं किया, हम बिलकुल ही बर्बादी की राह पर चल पड़ेंगे। आज हम सभी हाई कोर्ट को भी एक संदेश देना चाहते हैं: अपने न्यायाधिकार का प्रयोग वैयक्तिक स्वतंत्रता के बचाव में कीजिए। एक के बाद एक केस में हाई कोर्टों ने निजी स्वतंत्रता को नकारा है। क्या कोई आर्थिक चिंता से घिरा हुआ है और आत्महत्या कर लेता है तो हम उसे आत्महत्या के लिए उकसाना मान लें? आत्महत्या के लिए उकसाने और सीधे प्रेरित करने के साक्ष्य होने चाहिए।”

बता दें कि हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने सोमवार (नवंबर 9, 2020) को 2018 की आत्महत्या के मामले में अर्णब की अंतरिम जमानत याचिका खारिज करने के बाद उन्हें सेशन कोर्ट भेज दिया था। वहीं अर्णब के वकीलों ने आज सुप्रीम कोर्ट में भी जमानत याचिका दायर की। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की पीठ के समक्ष बुधवार को इसकी सुनवाई हुई। इससे पहले न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक की पीठ ने अर्णब गोस्वामी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *