रणथंभौर, राजस्थान —रणथंभौर के जंगलों की शान, टाइग्रेस T-84, जिसे प्यार से “Arrowhead” कहा जाता था, अब इस दुनिया में नहीं रही। लम्बी बीमारी और दिमागी ट्यूमर से जूझने के बाद एरोहेड ने हमेशा के लिए जंगल को अलविदा कह दिया।
यह खबर सुनकर वन्यजीव प्रेमियों और रणथंभौर से जुड़े लोगों के दिलों में गहरी उदासी छा गई है। एरोहेड वही शेरनी थी जो मशहूर टाइग्रेस “मछली” की बेटी थी – मछली को भारत की सबसे फोटोजेनिक शेरनी माना जाता था, और उसकी बहादुरी की कहानियां आज भी जंगल में गूंजती हैं। एरोहेड ने भी अपनी मां की विरासत को बखूबी आगे बढ़ाया।
जंगल की नायिका, जिसने सभी का दिल जीता
रणथंभौर नेशनल पार्क के ज़ोन 2 में रहने वाली एरोहेड अपने शानदार रूप, ताकत और तेज दहाड़ के लिए जानी जाती थी। जब वह जंगल में चलती थी तो मानो पूरी प्रकृति उसे सलाम करती थी। उसकी मौजूदगी से झीलें, पेड़ और रास्ते सब जीवित लगते थे।
पिछले कुछ समय से एरोहेड एक गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। जांच में पता चला कि उसके दिमाग में ट्यूमर था। वन विभाग की टीम और डॉक्टरों ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन इस बहादुर शेरनी का सफर आखिरकार थम गया।
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एरोहेड ने जंगल को सिर्फ अपनी मौजूदगी से नहीं, बल्कि अपने तीन बच्चों के रूप में एक मजबूत अगली पीढ़ी भी दी है। उसकी संतानों में भी वही साहस और शान दिखाई देती है। अब ये बच्चे ही रणथंभौर की विरासत को आगे बढ़ाएंगे।
अब जब भी रणथंभौर की हवाओं में दहाड़ सुनाई देगी, लोगों को एरोहेड की याद आएगी। वह अब जंगल की आत्मा का हिस्सा बन चुकी है – एक ऐसी आत्मा जो कभी मरती नहीं।
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वन विभाग का बया
रणथंभौर टाइगर रिज़र्व के अधिकारियों ने भी एरोहेड की मृत्यु की पुष्टि करते हुए गहरा शोक जताया है। उनके अनुसार, यह सिर्फ एक शेरनी की नहीं, बल्कि एक युग की विदाई है।
गांवों और शहरों से आने वाले हजारों लोग रणथंभौर में एरोहेड को देखने आते थे। उनके लिए यह सिर्फ एक जानवर नहीं, बल्कि जंगल की रानी थी। उसकी कहानी हमें ये सिखाती है कि चाहे जीवन में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, हिम्मत और गरिमा से जिया जाए।
तुमने जंगल को जो सौंदर्य, ताकत और मातृत्व दिया, वो हमेशा याद रखा जाएगा।