बिहार पुलिस का रायफल जगन्नाथ मिश्रा को सलामी देने से इनकार कर गया…

क्या सुशासन में बंदूक ‘गांधीवादी’ हो गई है? अब फायरिंग से बंदूक राइफल को भी परहेज होने लगा है क्या? खबर है कि स्व. जगन्नाथ मिश्र की अंत्येष्टि के दौरान सम्मानपूर्वक उन्हें राइफल से सलामी दी जानी थी। बिहार पुलिस के जवानों ने राइफल का ट्रिगर दबाया लेकिन गोली ने राइफल का साथ छोड़ने से मनाकर दिया। बलुआ ग्रामे, कोशी क्षेत्रे, बिहार प्रान्ते, भारत खण्डे, जम्बू द्वीपे और सीएम सम्मुखे ही राइफल का यह हृदय परिवर्तन हुआ। शायद गोली ने यह सोचा हो कि मेरे चलाने वाले सिपाहियों ने शराब को हाथ लगाने से तौबा कर लिया तो हम क्यों गोलीबारी जैसी हिंसक कामों को अंजाम दें। तो फायरिंग बन्द। वैसे यूपी पुलिस से बिहार पुलिस अगर कुछ सीख पाती तो मुँह से ही ‘ठांय-ठांय’ कह ‘इजहारे ग़म’ कर लेती।

खैर छोड़िए एक किस्सा सुनाते हैं। संगत से गुण होत है संगत से गुण जात। आपने सुना होगा। मेरे एक परिचित एक गर्ल्स स्कूल में टीचर थे। एक दिन स्कूल में सांप निकल आया। सभी शिक्षिकाएं चिल्ला पड़ीं कि किसी मर्द को बुलाओ। मेरे जो परिचित शिक्षक थे, वह भी चिल्ला पड़े कि जल्दी से किसी मर्द को बुलाओ। उन्हें यह अहसास ही नहीं रहा कि वे मर्द ही हैं।

थोड़ा कहना ज्यादा समझना। खैर रहने दीजिए। अब अपराधियों से कैसे निपटेंगे इस बात पर दिमाग को न खपाइये। हम अपराधियों का हृदय परिवर्तन कराने में यकीन करते हैं। फिलहाल तो राइफल को हृदय परिवर्तन के लिए अपनी शुभकामनाएं दीजिए। तो बोलो गानहीं महात्मा की जय।
लेखक : विमलेंदु सिंह, पटना

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