कश्मीर से पहले बिहार के इस इलाके से हटना चाहिए था धारा-370

आजादी से पहले पूरनिया और भागलपुर प्रमंडल का यह इलाका इतना पिछडा हुआ नहीं था। इसी इलाके से होकर बख्तियार बंगाल की ओर गया था। इसी इलाके से होकर बल्लाल सेन तिरहुत की ओर आया था। बनैली इस्टेट के कुमार गंगानंद सिंह जब राष्ट्रीय राजर्माग प्राधिकरण के सदस्य बने, तो उन्होंने इस इलाके को प्राथमिकता दी। फिर 1934 का भूकंप और आजादी के बाद कोसी पर तटबंध… इन दो वजहों से यह इलाका न केवल शेष बिहार से कटता गया बल्कि पिछडता भी गया। देखते ही देखते इसका आधा से अधिक हिस्सा बीहड बन चुका है।

पूरे भारत में सबसे अधिक पलायन अगर किसी एक इलाके में हुआ है, तो वह यही इलाका है। समाजवादियों का नेतृत्व इस इलाके को न विकसित कर सका न ही शेष बिहार से जोड पाया। एक ओर बीपी मंडल सेतु के तैयार होने का इंतजार तो दूसरी ओर कोसी नदी पर बने पुल होकर ट्रेन गुजरने की उम्मीद। इस पूरे इलाके में केवल उम्मीद ही बची है, शेष सबकुछ मानो खत्म हो चुका है। खुशी की बात है अब इस इलाके का वो नेतृत्वकर्ता भी खत्म हो चुका है, जो इनका सौदा करता रहा है। जब समाज बिना नेतृत्व का होता है तो उसमें जिम्मेदारी का बोध पैदा होता है। बिना नेतृत्व का समाज खुद सोचने लगता है।

कभी जाति, कभी प्रमंडल तो कभी कुछ और के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेकनेवाले नेता ने इन्हें सपने तो खूब दिखाये, लेकिन हकीकत बस इतना है कि इनके पास न नदी मार्ग बचा है और न सडक मार्ग ही रहा। रेल मार्ग ध्वस्त है और वायु मार्ग तो खैर हवा में ही है।

सवाल ने आजादी के बाद नेतृत्वकर्ता ने इस इलाके को दिया क्या और इस इलाके से उन्हें मिला क्या्-क्या.. अब इसकी समीक्षा हो। जब चंपारण और भोजपुर के लोग गिरमिटिया बन कर विदेश जाने को मजबूर थे, उस वक्त भी यह इलाका अपनी समृद्धि के कारण उस विदेश जानेवाले जहाज पर सवार नहीं हुआ। जो राजाओं, जमींदारों और अंग्रेज जमाने में भूख के कारण घर नहीं छोडा, वो आज बेघर क्यों हैं। फिर आज क्या हो गया कि गांव के गांव खाली हैं। आखिर क्यों बिहार से सबसे अधिक पलायन इस इलाके से होता है। आखिर क्यों बिहार में सबसे खस्ताहाल सडक इस इलाके में है। आखिर क्यों इस इलाके के नेता और मंत्री राष्ट्रीय स्तर के होते हैं, लेकिन यहां के मसले स्थानीय स्तंर पर भी नहीं उठाये जा रहे हैं।

यह भीड, यह कतार, यह जूलूस उसी का उत्तर है। कश्मीर से ही नहीं इस इलाके से भी धारा-370 हटना चाहिए। कश्मीर से कहीं अधिक पिछडा है ये इलाका। पिछले 70 साल में कश्मीर जितना पीछे गया है उस मुकाबले यह इलाका कई गुणा अधिक पीछे धकेला जा चुका है। आखिर एक इलाका कितना पीछे जायेगा और क्‍यों जायेगा। जब पूरा देश विकास की बात कर रहा है, आगे जाने की बात कर रहा है तो उसी देश का यह इलाका तेजी से आगे के बदले पीछे की ओर भागा जा रहा है। प्रकृति ने पहले रेल मार्ग ध्‍वस्त किया, फिर नेताओं ने जल मार्ग खत्म किया। अब सडक मार्ग भी इस इलाके लिए सपना बन चुका है। आखिर किस गुनाह की सजा दे रहे हैं।

क्या आप अब भी चाहते हैं कि संसद और विधानसभा में यहां के नेता इस इलाके के मसलों का सौदा करें, हमें तो यह मंजूर नहीं। नेताओं की संपत्ति बढे इससे ज्यादा जरुर है इलाके में सडक समेत तमाम प्रकार की आधारभूत संरचनाओं का विकास हो। नेतृत्व ने हमेशा मुद्दों का सौदा किया है, नेतृत्व आगे भी ऐसा ही करेगा। मुद्दे को आगे कीजिए और आगे बढिए.. अगर जनता इस कतार में खडी हो जाये तो जदयू को जीताने के लिए नहीं सडक बनाने के लिए भी मुख्यमत्री को पथ निर्माण मंत्री के साथ मधेपुरा में कैंप करना होगा…बहुत हुई लाचारी, अबकी जीत हमारी..

लेखक : कुमुद सिंह, संपादक ई समाद

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