जगन्नाथ मिश्रा के कारण हॉट रूम बन गया था टीएनबी कॉलेज, भागलपुर का कमरा नंबर 63-64

विमलेन्दु सिंह(patna) ; टीएनबी कॉलेज, भागलपुर में तब सहरसा, मधेपुरा, सुपौल कोशी बेल्ट से काफी स्टूडेंट एडमिशन लेते थे। डॉ. जीडी झा तब प्रिंसिपल हुआ करते थे। खांटी मैथिल। उनसे पहले डॉ. एसएन झा भी। टीएनबी कॉलेज का अघोषित तौर पर कैम्पस लैंगुएज भी मैथिली ही था। अंगिका तो खैर स्थानीय बोली ही थी।

जगन्नाथ मिश्रा उस समय बिहार के सीएम हुआ करते थे। वह भी टीएनबी के स्टूडेंट रहे थे। पता चला वेस्ट ब्लॉक हॉस्टल में ही रहा करते थे। कमरा नम्बर शायद 63 या 64 था। संयोगवश मैं भी उस हॉस्टल में रहा।

मेरे मैथिल मित्रों में उस कमरे के प्रति जबरदस्त क्रेज था। इन सारे मित्रों में एक बात कॉमन थी। सभी किसी न किसी तरह जगन्नाथ मिश्र के रिश्तेदार हुआ करते थे।

” हे यौ! आहाँ के कोना समझाबूं! हमर पिसियौत भाय के जीजा के अप्पन भातीज के जे फूफा होल्थिन्ह उनकर बहिन के बियाह मिसिर जी के मामू के अप्पन चचेरा भाय सङ्ग। बुझियौ केतबा नजदीक के रिश्ता भेलय।”

अद्भुत बात यह थी कि जगन्नाथ मिश्र जिन सबके सो कॉल्ड रिश्तेदार हुआ करते थे उनका आपस में कोई रिश्ता नहीं जुड़ पाता था। तब कई मित्र अलग ही शान में रहा करते थे- ” हे यौ! हमरा टॉप करअ से के रोकतय? जगन्नाथ मिश्र एगो चिट्ठी पठा देथिन समझू रिकॉर्ड ब्रेक। (उस समय मोबाइल फोन नहीं आया था और लैंड लाइन भी गिने चुने ही थे) ई हमरा लेल कोन पैघ काज? जखैन चाहबै तखैन काज होले समझू। आहाँ न पढू रगैड़ के। हम्मर त सादा कॉपी भी रहतै त घर पर आएन के कॉपी भैर देबै।”

आज जगन्नाथ मिश्र नहीं रहे। जब यह खबर सुनी तो उनसे जुड़ी कई स्मृतियां आज ताजी हो गईं। एक बार उनका इंटरव्यू करने का मौका मिला। राजीव गांधी से जुड़ी यादों को ताजा करने के संदर्भ में। तब उन्होंने कई चौंका देने वाली बातें खुलासा की थी। ज्ञानी जैल सिंह भी उसके केंद्र में थे। राजीव गांधी को अपदस्थ करने की साजिश चल रही थी। जगन्नाथ मिश्र सत्ता से बेदखल किये जा चुके थे बिहार में। फिर भी ये साजिश से दूर रहे और कैसे राजीव गांधी के मन में इनके प्रति बैठी गलत धारणा दूर हो पाई। यह कहानी फिर कभी।
आज तो श्रद्धांजलि! नमन!

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