अद्भुत है बाबा कुशेश्वरनाथ की महिमा, कोई नहीं लौटता खाली हाथ, रोज आते हैं लाखों श्रद्धालू

PATNA : सावन उत्सव शुरू होते ही लाखों श्रद्धालुओं का जन सैलाब बोल बम, बोल बम करते हुए देवघर स्थित वैद्यनाथ धाम पहुंचता है। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र वैद्यनाथ शिवलिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। इस जगह को लोग बाबा बैजनाथ धाम के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं भोलेनाथ यहां आने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। ‘परंपराओं का सावन’ में पहली बार आपको बताने जा रहा कि देवघर स्थित वैद्यनाथ धाम ही नहीं बल्कि बिहार में कई और हैं ऐसे शिव मंदिर है जहां श्रद्धालुओं का मेला लगता है। आइए आज आपको बताते हैं बाबा कुशेश्वर स्थान के बारे में पढि़ए स्पेशल रिपोर्ट

कुशेश्वर स्थान की चर्चा पुराणों में भी की गयी है । अतः श्रावण महीने में लाखों भक्त यहाँ आते हैं । कुछ लोग कुशेश्वर स्थान को भगवान राम के पुत्र कुश से जोड़ कर देखते हैं तो कुछ लोग राजा कुशध्वज से जोड़ते हैं । कहा जाता है कि मन्दिर का निर्माण राजा कुशध्वज ने करबाया था इसलिए इस मन्दिर का नाम इन्हीं के नाम पर कुशेश्वर स्थान रखा गया। इस महादेव स्थान का नाम कुशेश्वर स्थान क्यों पड़ा इस सम्बन्ध में कई कई कथाएँ प्रचलित हैं । नरक निवारण चतुर्दशी एवं महाशिवरात्रि के अवसर पर कुशेश्वर स्थान के बाबा मन्दिर में विशेष पूजा-अर्चना एवं आयोजन होते हैं ।माघ महीना में भी भक्त यहाँ आकर जलाभिषेक करते हैं ।

मिथिला सदियों से शिव भक्ति का प्रमुख केंद्र रहा है । मिथिलांचल वाशी सम्पूर्ण मनोयोग से भगवान् भोले भंडारी की पूजा अर्चना करते हैं । श्रावण में सभी शिवालयों को विभिन्न रंगों से रंग रोगन कर सजाया जाता है । कुशेश्वर स्थान में तो शिव मन्दिर परिसर के साथ ही शिव गंगा घाट एवं अन्य जगहों को श्रावण के प्रथम सोमवारी के अवसर पर सजाया गया है । बिजली बल्बों से मंदिर को सजाने का कार्य समाप्ति पर है । जगह – जगह ८ सी सी टी वी कैमरे लगाये गए हैं ताकि शरारती लोगों पर नजर रखी जा सके ।

शिव मन्दिर के आसपास बड़े बाहनों के आवाजाही पर रोक लगा दी गयी गई है । श्रावणी मेला में यात्रियों की विश्राम के लिए खगरिया धर्मशाला के साथ ही ३२ कमरों की व्यवस्था स्थानीय न्यास समिति की ओर से की गयी है । शिव गंगा तालाब के भीच भाग में ८ फीट मोटी जाईठ (नदी के बीच में पानी का स्थर मापने को लगाई गयी लकड़ी) का निर्माण कर उसपर १५ फीट ऊँची और ८ फीट चौड़ी भगवान् भोले शंकर की मूर्ति का निर्माण कार्य हो रहा है और इनकी जटा से लगातार जल प्रवाहित होगी जो सारे शिव भक्तों का ध्यान भोले शंकर अपनी ओर आकर्षित करेंगे ।

इस मन्दिर के पुजारी हैं अमरनाथ झा । उनका कहना है कि कुशेश्वर स्थान उपासना के साथ ही साधना का भी बहुत बड़ा केंद्र रहा है । उन्होंने कहा कि यहाँ अंकुरित शिव स्थापित हैं । इस सम्बन्ध में उसने एक कथा भी सुनाई जो कि इस प्रकार है –हजारों साल पहले यहाँ कुश का घना जंगल था । जहां पर बहुत से चरवाहा अपनी अपनी पशुओं को चराने के लिए आया करता था ।एक बार की बात है रामपुर रोता गाँव का एक चरवाहा जिसका नाम खागा हजारी था देखा कि एक स्थान पर बहुत से दुधारू गाय अपनी दूध गिरा रही है ।

यह बात उसने लोगों को जाकर बताई । गाँव के लोग भी आकर यह दृश्य देखे । जिस जगह पर दूध गिर रहा था उस जगह की खुदाई की गयी तो वहां से एक शिव लिंग निकला ।तभी से वहां पर भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाने लगी । और यही वजह है के इन्हें अंकुरित महादेव कहा जाता है । १९०२ ई० में यहाँ फूस का मन्दिर बनाया गया ।फिर १९७० ई० में स्थानीय व्यापारियों ने मिलकर बाबा मन्दिर का निर्माण कराया । कुशेश्वर बाबा की दर्शन के लिए यहाँ सावन सबसे अधिक श्रद्धालु यहाँ आते हैं ।

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