नीतीश सरकार ने बिहार में स्कूल व्यवस्था को किया चौपट, मात्र 20 परसेंट बच्चे पढ़ने आते हैं

पटना 4 अगस्त 2023 : बिहार में कभी नारा दिया जाता था कि बिहार में बहार है नीतीश कुमार है…. लेकिन शिक्षा विभाग पर की गई एक रिपोर्ट को देखकर लगता है कि नीतीश सरकार ने बिहार की शिक्षा में गुणवत्ता लाने के बदले उसे चौपट कर दिया है. सुनने में भले आपको आश्चर्य लगे लेकिन यह 16 आना सच है. जन जागरण शक्ति संगठन द्वारा एक रिपोर्ट जारी किया गया है जिस रिपोर्ट का नाम है… बच्चे कहां है, सरकारी स्कूलों का अजीब मामला... रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि प्राथमिक विद्यालयों में मात्र 20 परसेंट बच्चे स्कूल पढ़ने आते हैं. रजिस्टर पर नामांकन अगर हजार बच्चों का है तो उनमें से डेढ़ सौ या 200 भी बच्चे मुश्किल से पढ़ने आते हैं. कहीं कहीं पर तो शिक्षक गायब रहते हैं. शौचालय का घोर अभाव है. खेलने के लिए खेल मैदान तक नसीब नहीं है. रिपोर्ट में क्या सब है हम पूरी डिटेल में आपको बताने जा रहे हैं…

रिपोर्ट का कहना है कि यह रिपोर्ट जन जागरण शक्ति संगठन द्वारा 2023 की शुरुआत में बिहार के अररिया और कटिहार जिलों में 81 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक सरकारी स्कूलों में सर्वेक्षण के दौरान किया गया है. रिपोर्ट यह भी बताती है कि कोरोना लॉकडाउन के बाद से बच्चों का आना पहले से काफी कम हो गया है. जो बच्चे लॉकडाउन में स्कूल नहीं जा पाए हुए पढ़ना तक भूल चुके हैं. नामांकित बच्चों में से मुश्किल से मात्र 20 परसेंट बच्चे सर्वेक्षण के दिन उपस्थित थे. अधिकार अधिनियम 2009 का घोर अभाव दिखा. कहीं पर इस नियम का पालन नहीं हो रहा था..

नीतीश सरकार ने बिहार में स्कूल व्यवस्था को किया चौपट, मात्र 20 परसेंट बच्चे पढ़ने आते हैं

रिपोर्ट के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान महान अर्थशास्त्री ज्‍यां द्रेज बताया कि झारखंड के बाद बिहार में भी इस विषय को लेकर सर्वेक्षण करवाया गया जिसमें काफी निराशाजनक परिणाम आए हैं. झारखंड में यह सर्वे करवाया था तो पाया था कि वहां 40 से 45 परसेंट बच्चे स्कूल आते हैं. बिहार की रिपोर्ट देखकर हम लोग हैरान हैं कि यहां मात्र 20 परसेंट बच्चे स्कूल पढ़ने आ रहे हैं.

क्या है सर्वेक्षण की मुख्य बातें

रिपोर्ट का कहना है कि बिहार में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की घोर कमी है. विद्यालयों में छात्र शिक्षक अनुपात 30 से ऊपर है. जबकि नियम के अनुसार 30 बच्चों पर कम से कम 1 शिक्षक होना चाहिए.

विद्यार्थियों की उपस्थिति निराशाजनक है. प्राथमिक विद्यालय में नामांकित बच्चों में से केवल 23 परसेंट बच्चे सर्वेक्षण के समय उपस्थित थे. वहीं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की उपस्थिति उससे भी कम अर्थात 20 परसेंट थी.

आरोप लगाया है कि शिक्षक नियमित रूप से स्कूल रजिस्ट्रो में उपस्थिति के आंकड़े बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं. बढ़ाए गए आंकड़ों पर भी विश्वास करें तो यह क्रमश: 44 से 40 परसेंट है.

बुनियादी ढांचे की अगर बात करें तो इसमें भी निराशाजनक परिणाम है खासकर प्राथमिक स्तर पर अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में 90% स्कूलों में चहारदीवारी नहीं है. खेल का मैदान और पुस्तकालय कहीं भी नहीं है.

स्कूलों में सर्वेक्षण किया गया उनमें से 9 परसेंट के पास अपना भवन तक नहीं है.

20 परसेंट स्कूलों ने बताया कि MDM के तहत जो बजट दिया जाता है वह बच्चों को स्वास्थ्य भोजन खिलाने के लिए अपर्याप्त है. नियम के अनुसार बच्चों को अंडा देना है लेकिन उन्हें अंडा खाने से मना किया जाता है.

पुस्तक और पोशाक की राशि डीबीटी से करने के कारण शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई है बच्चों के पास किताब तक उपलब्ध नहीं है और ना ही उनके पास प्रॉपर ड्रेस है.

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