बकरीद पर ईदी देना क्यों भूल गए PM मोदी?

साहब आज आप फिर चूक गए : साहब आज ईद थी मैं सोच रहा था कि आप भारतवासियों को बकरीद पर बधाई के साथ एक सरप्राइज ईदी भी देंगे लेकिन आप फिर चूक गए है .. मुझे पता है आप शाकाहारी है पशु हत्या का विरोध करते है मैं भी आपसे सहमत हूँ कि किसी भी प्रकार ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए कुर्बानी या बली के नाम पर पशु हत्या नही करना चाहिए लेकिन इस मुबारक मौके का इस्तेमाल आप एक सरप्राइज के रूप में कर सकते थे.

अगर आप सच्चे स्टेट्समेन होते तो आज ईद के मुबारक मौके पर पूरे देश कु मस्जिदों औऱ ईदगाह को खोल देते और 5 अगस्त को राम मंदिर भूमि पूजन के दिन देश के सारे मंदिर खोल देते इससे एक बेहतरीन संदेश जाता कि इस देश का राजा अपनी प्रजा में कोई अंतर नही रखता है और वो अपनी प्रजा का सदा भला चाहता है आप सब सोच रहे होंगे कि मंदिर मस्जिद खोलने से इस कोरोना काल मैं जनता का कैसे भला होगा तो आगे की पोस्ट पढिये.

सतयुग से लेकर त्रेतायुग जब जब आसुरि शक्तियां ताकतवर होती है तो देवालयों में पूजा पाठ और यज्ञ होते है ताकि दैवी शक्तिया ताकतवर हो जाये जब मस्जिदों में अजान होती है मंदिरों में श्लोकों की गूंज होती है तो इन प्रार्थनाओं मैं इतना आध्यात्मिक असर होता है कि इनसे सारी नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और सकारत्मक ऊर्जा पैदा होती है.

विज्ञान मैं साउंड वेव का सिद्धांत है जो कहता है सबकुछ ख़त्म हो सकता है लेकिन आवाज रूपी तरंग कभी खत्म नही होती है मेरा खुद का अनुभव है कि सुबह सुबह किसी गुरुद्वारे से निकली गुरवाणी मैं इतनी ताकत होती है कि वो किसी भी नकरात्मक मस्तिष्क को ऊर्जा से सकारात्मक ऊर्जा से लबालब कर सकती है किसी चर्च से निकली शांति प्रार्थनाएं किसी भी शेतानी ताकत को हरा सकती है.

जब सुप्रीम कोर्ट स्वयं मंदिर खोलने का सोच रहा है तो आपको आगे बढ़कर एक जननेता की तरह सबका साथ और सबका विश्वास हासिल करने के लिए यह कदम उठाना था आप 135 करोड़ जनता के नेता है एक लीडर निडर होता है वो परिस्थितियों का अच्छा रीडर होता है यह एक ऐसा मास्टरस्ट्रोक होता जिससे कोरोना के डर के साथ साथ आपके बहुत से आलोचकों का भी मुँह बंद कर देता.

मैं हमेशा कहता हूँ और आज भी कहता हूँ कि इस देश गाँधी जी जैसा नेता औऱ कम्युनिकेटर कोई नही हुआ है आज बापू होते तो इस आपदा को भी अवसर मैं बदल देते और ऐसा इतिहास लिखते जिसे सदियों तक देश के विद्यालयों में पढ़ाया जाता.

अंतिम श्वासों में बापू के मुख से हे राम! शब्द निकला था सायंकाल की प्रार्थनासभा में जब उनकी आंख मुंदीं होती हैं तो वे महादेव समान अपने इष्ट राम का ही ध्यान करते थे और कहते थे कि इस देश को एक ही मंत्र बचाएगा ईश्वर अल्लाह तेरो नाम संबको सन्मति दे भगवान.

-अपूर्व भारद्वाज

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