बिहार विधानसभा चुनाव में दलित वर्ग के सहारे नए समीकरण साधने में लगे लालू, NDA में भी कम नहीं बेताबी

Patna: RJD प्रमुख लालू यादव को देश भर में मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण के लिए जाना जाता है। इस बार चुपके से उन्होंने अपने कुनबे के विस्तार की कोशिश की है। अनुसूचित जातियों (SC) के प्रमुख नेताओं को आरजेडी में इकट्ठा किया है। चुनावी माहौल में जरूरी भी है और मजबूरी भी, क्योंकि बिहार में हफ्ते भर से वंचित तबके के नेताओं की राजनीति शिखर पर है।

जातीय क्षत्रपों को तोड़-जोड़कर उनके समुदाय के मतदाताओं में पैठ-पहुंच बनाने की कोशिश कह कोशिश राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में भी जारी है। जनता दल यूनाइटेड (JDU) से टूटकर श्याम रजक (Shyam Rajak) का आरजेडी में लौटना, महागठबंधन से हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा (HAM) प्रमुख जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) की पलटी एवं लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) प्रमुख चिराग पासवान (Chirag Paswan) की जल्दी से जल्दी शीर्ष पर पहुंच जाने की व्यग्रता के बीच बिहार की अनुसूचित जाति की राजनीति (SC Politics) कुलांचे मार रही है।

आरजेडी के साथ वंचित वर्ग के चार बड़े नेता

बिहार में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की आबादी करीब 25 फीसद है। इसलिए आरजेडी ने अपने सामाजिक समीकरण में विस्तार के लिए इस तबके के नेताओं पर फोकस किया है। शिवचंद्र राम पहले से ही आरजेडी में वंचित वर्ग के बड़ा चेहरा हैं, किंतु उनका आधार अपनी जाति तक ही सीमित है। लोकसभा चुनाव से पहले ही जेडीयू से टूटकर पूर्व मंत्री रमई राम और विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी भी आरजेडी में शामिल हो चुके थे। अब लालू के कुनबे में पुराने नवरत्नों में से एक श्याम रजक भी जुड़ गए हैं। चारों नेताओं के शामिल होने के बाद आरेजडी का अनुसूचित जाति वाला आधार भरा-पूरा लगने लगा है।

मतदाताओं की गोलबंदी में लगे तेजस्वी

हालांकि, कभी न कभी ये सारे नेता लालू के कृपा पात्र रहे हैं। आरजेडी से निकलकर इधर-उधर खुद का विस्तार किया। अपने प्रोफाइल में भी इजाफा किया और लौटकर लालू के सामाजिक समीकरण को डेढ़ दशक पहले जैसा मजबूत करने की कोशिश में हैं। माना जा रहा है कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अब इन नेताओं के सहारे अपनी पार्टी के पक्ष में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की गोलबंदी कराने की कोशिश कर सकते हैं। पहल भी कर दी है।

दूसरी तरफ भी समानांतर प्रयास जारी

ऐसा नहीं कि दूसरा पक्ष आरजेडी की कोशिशों से अनजान है। समानांतर उपक्रम उधर भी किया जा रहा है। श्याम रजक के जाने से जेडीयू में जो वंचित वर्ग वालों की रिक्तता आई है, उसे भरने का प्रयास पहले से ही जारी है। श्याम रजक की मनोदशा से लगता है नीतीश पहले से वाकिफ थे। इसीलिए उन्होंने कांग्रेस छोड़कर जेडीयू में आए अशोक चौधरी को मंत्रिमंडल में सम्मानजनक जगह भी दी। अशोक चौधरी नए जमाने के अनुरूप चलने वाले तेज-तर्रार और सुलझे हुए नेता माने जाते हैं। श्याम रजक के जाने से पहले ही नीतीश ने नुकसान की भरपाई कर ली थी।

अब मांझी को कुनबे से जोड़ने की कोशिश

अब दूसरा प्रयास महागठबंधन से ऊबे हुए ‘हम’ के मुखिया जीतनराम मांझी को अपने कुनबे से जोड़ने का है। कभी नीतीश की कृपा पर ही मांझी ने बिहार की सत्ता का शिखर तय किया था। उनके अस्थिर मन से नीतीश पूरी तरह वाकिफ भी हैं। फिर भी इंतजार है तो इसका मतलब यह कि अनुसूचित जाति की राजनीति को साधने की बेताबी जितनी लालू को है, उससे कम नीतीश को भी नहीं है।

अनुसूचित जाति के विधायक, दलीय स्थिति

आरजेडी: 14

जेडीयू: 12

कांग्रेस: 6

बीजेपी: 5

अन्य: 3

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