साउथ कोरिया अप्रैल में इलेक्शन करवा सकता है तो हम अक्तूबर में बिहार चुनाव क्यों नहीं करवा सकते

Pushya Mitra

PATNA : हमारे डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने पिछले दिनों सोशल मीडिया पर बड़ा तड़कता भड़कता बयान दे डाला। उन्होंने कहा कि इस बार का विधानसभा चुनाव बिल्कुल नये रंग रूप में होगा। रैली और चुनावी सभा तो नहीं ही होंगे। हो सकता है, वोटरों को बूथ पर भी जाना न पड़े। चुनाव आयोग इस विकल्प पर भी काम कर रही है। मतलब यह था कि घर बैठे वोटर किसी मोबाइल ऐप से वोट डाल सकते हैं।

सुशील मोदी के इस बयान पर पहले से ही ईवीएम को लेकर सशंकित और उग्र विपक्षी दलों के कान खड़े हो गये। उन्होंने इस आइडिया का विरोध करना शुरू कर दिया। हालांकि जैसा कि हम सब सुशील मोदी जी का कैरेक्टर जानते हैं, उन्होंने महज शिगूफेबाजी की थी। क्योंकि मैंने अगले ही दिन बिहार के राज्य चुनाव आयुक्त एसआर श्रीनिवास से यह सवाल पूछ लिया और उन्होंने कहा कि ऐसी कोई बात है ही नहीं।

इस बीच कोरोना संक्रमण, लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के इस दौर में इस बात को लेकर हर कोई चिंतित है कि बिहार में चुनाव होंगे या नहीं। अब चुनाव का होना न होना सत्ताधारी दल के मूड पर निर्भर है। उनके पास चुनाव कराने के भी सौ बहाने हैं, न कराने के भी सौ बहाने हैं और मोबाइल एप से चुनाव कराने के भी बहाने वे ढूंढ ही लेंगे। हम सब जानते हैं कि वे फैसले अपने मन से करते हैं और इस बात का विचार बिल्कुल नहीं करते कि उनके फैसले से लोगों पर क्या फर्क पड़ेगा। नोटबंदी और घरबंदी के नमूने सामने हैं।

मगर इस बात में मुझे कोई दुविधा नहीं है कि बिहार में अक्तूबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव बिल्कुल सामान्य तरीके से कराये जा सकते हैं। जब साउथ कोरिया जैसे मुल्क ने कोरोना के कहर के बीच में 20 अप्रैल के आसपास सामान्य तरीके से चुनाव कराकर दुनिया को दिखा दिया और वहां हुए चुनावों से कोरोना के संक्रमण पर कोई असर नहीं पड़ा तो हमारे चुनाव तो अक्तूबर में होने हैं।

हम अगर कोरोना के दौर में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए राशन बंटवा सकते हैं, लाखों मजदूरों की थर्मल स्क्रीनिंग कर उन्हें क्वारंटीन कर सकते हैं, रेल और हवाई जहाज चला सकते हैं, मॉल को खोल सकते हैं तो वोटिंग में ऐसा क्या है जिसे करवाने में सरकार को या चुनाव आयोग को दिक्कत होगी।

एक पोलिंग बूथ पर हजार बारह सौ वोटर होते हैं, 60 से 80 फीसदी तक मतदान होता है। करना सिर्फ इतना है कि हर बूथ को दो हिस्से में बांट देना है। दो ईवीएम लगवा देना है। हर पचास वोटरों के लिए घंटे का स्लॉट तय कर देना है। सारा काम आसानी से हो जायेगा।

अब सवाल रहा, प्रचार प्रसार का। तो रैलियां न करें, जन सभाएं न आयोजित करायें। नेताजी के रिकार्डेड भाषण हर जगह सुनाये जायें। सोशल मीडिया का सहारा लेकर प्रचार प्रसार करें। आज के दौर में यह कोई असंभव काम तो नहीं है।

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