पैसे के अभाव में PVT स्कूल से बच्चों का नाम कटा रहे हैं लोग, सरकारी विद्यालय में करवाया एडमिशन

कोरोना काल में प्राइवेट स्कूलों में 30%बच्चे घटे, सरकारी में 10 फीसदी बढ़ गए, 25000 निजी स्कूलों में से 500 की हालत ही ठीक, बड़ी संख्या में बंद हो गए : कोरोना महामारी का असर साल 2020 और 2021 में हर क्षेत्र में देखा गया। लेकिन, शिक्षा जगत पर इसका इफेक्ट कुछ ज्यादा ही देखने को मिला। जो बच्चे प्ले स्कूल में थे, वह घर बैठे-बैठे ही आज क्लास वन में पहुंच गए हैं। जो आठवीं में थे वो 10वीं में स्कूल जा पा रहे हैं।

इस दौरान बड़ी संख्या में प्राइवेट स्कूल बंद भी हो गए। बड़ी संख्या में छात्रों ने स्कूल बदल लिए। बिहार पब्लिक स्कूल एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन के मुताबिक, प्राइवेट स्कूलों में 30 से 35 प्रतिशत बच्चे घटे हैं। लेकिन, इस अविधि में सरकारी स्कूलों में 10 फीसदी बच्चे बढ़े हैं। इसकी प्रमुख वजह महामारी के दौरान लोगों का पलायन, अभिभावकों की नौकरी-रोजगार जाना व उनकी आय में कमी है। प्राइवेट स्कूलों में भी मीडियम और छोटे स्कूलों पर अधिक असर पड़ा है।

अभिभावकों का दर्द
{बिजनेस करने वाले अभिभावक दिनेश पाण्डेय ने बताया कि उन्हें भी अपने बेटे का नामांकन सरकारी स्कूल में कराना पड़ा। कोरोना के कारण मैं और मेरी पत्नी तीन महीने बीमार रहे। इससे आर्थिक तंगी ने परेशान कर दिया। बेटे का नाम डॉन बॉस्को से कटवाकर सरकारी में करा दिया। पहले के स्कूल से बहुत निवेदन किया लेकिन उन्होंने फीस भरने की मोहलत नहीं दी।

कई निजी स्कूलों से 50% बच्चों ने नाम कटवाया
गांवों की ओर लागों का पलायन और बेरोजागारी के कारण प्राइवेट स्कूलों के बच्चे सरकारी स्कूलों में गए हैं। करीब 30% बच्चे प्राइवेट स्कूलों से इस साल घट गए हैं। 2020 में क्योंकि केवल दो महीने के लिए ही स्कूल खुले थे इसकी वजह से कई प्राइवेट स्कूलों से 50 प्रतिशत बच्चों ने नाम कटवा लिया। फीस नहीं दिए। हजारों स्कूलों को बंद भी करना पड़ा। – डॉ. एसएम सोहेल, बिहार पब्लिक स्कूल एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन

मीडियम-छोटे स्कूलों में 80% तक बच्चे कम हुए
बड़े प्राइवेट स्कूलों की बात करें तो 90% विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। लेकिन, मीडियम स्कूलों में बच्चों की संख्या 70 से 80% और छोटे में 50% ही रह गई है। एसोसिएशन से जुड़े 25 हजार स्कूलों में 500 सीबीएसई व आईसीएसई एफिलिएटेड स्कूलों की स्थिति बेहतर है। कोरोना महामारी, पलायन व और बेरोजगारी सरकारी स्कूलों में जाने के मुख्य कारण है। -शमायल अहमद, राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन

पटना के 5 स्कूलों के आंकड़े
{राजेंद्रनगर के रहने वाले दीपक कुमार ने बताया कि कोरोना में नौकरी चली गई तो तीन बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना बहुत मुश्किल हो गया। प्राइवेट स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई भी नहीं होती थी। और स्कूल फीस मांगते थे। ऐसे में दो बच्चों का नामांकन सरकारी स्कूलों में कराना पड़ा। पढ़ाई से बच्चे संतुष्ट तो नहीं है। इसलिए अलग से
सभी आंकड़े डीईओ कार्यालय व स्कूल एसो. के हैं।
पटना के जिला शिक्षा पदाधिकारी अमित कुमार ने बताया कि हमारे यहां पिछले दो साल से नामांकन बढ़े हैं। करीब हर सरकारी स्कूल में 8 से 10 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट स्कूलों के आए हैं। ये बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसका कारण कई प्राइवेट स्कूलों का बंद होना और अभिभावकों का रोजगार जाना था। हम स्कूल में पढ़ाई का माहौल सुधारने के लिए हर प्रयास कर रहे हैं। ताकि बच्चे दोबारा प्राइवेट स्कूल का रुख न करें।

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