बिहार में शुरू हुआ कोरोना से मौ’त का सिलसिला, देश में सबसे कम सैंपल टेस्ट करवा रहें हैं CM नीतीश

देशभर के मुक़ाबले बिहार में सबसे कम टेस्ट हो रहे हैं। सरकार ने 20 हजार रोजाना टेस्ट करने का आदेश दिया है, लेकिन टारगेट पूरा नहीं हो पा रहा है।
बिहार में कोरोना का पहला मामला 22 मार्च को सामने आया था और 25 जुलाई को एक दिन में सबसे ज्यादा 2803 नए कोरोना संक्रमित मरीज मिले हैं। अभी राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़कर 45919 हो गई है। वहीं, राज्य में 14 कोरोना संक्रमित मरीजों की इलाज के दौरान मौ’त हो चुकी हैं। ये स्थिति तब है जब राज्य में देशभर के मुक़ाबले सबसे कम टेस्ट हो रहे हैं।

ख़बर है कि मुख्यमंत्री द्वारा हर रोज बीस हज़ार टेस्ट करने का आदेश देने के बाद भी बिहार की व्यवस्था बहुत ज़ोर लगाने के बाद दस हजार टेस्ट रोज कर पा रही है। इस वजह से अभी भी साफ-साफ पता नहीं चल पा रहा है कि राज्य में कोरोना के कुल कितने मरीज हैं और संकट वाक़ई कितना बड़ा है?

अब एक नजर डाल लीजिए राज्य में उपलब्ध सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर जो पिछले कई सालों से ख़ुद ‘आईसीयू’ में भर्ती है। सबसे बड़ी विडम्बना भी यही है कि इसी बीमार व्यवस्था के सहारे बिहार कोरोना जैसे अनजान और ख़तरनाक वायरस से मुकाबला कर रहा है।

बिहार में परमानेंट डॉक्टर के कुल 6261 पद हैं मगर फ़िलहाल सिर्फ 3821 डॉक्टर बहाल हैं और 2440 पद खाली हैं. बिहार में ठेके पर रखे जाने वाले डॉक्टर के कुल 2314 पद हैं मगर फ़िलहाल महज 531 डॉक्टर बहाल हैं. दोनों के कुल 8575 पदों में 50 प्रतिशत पद खाली हैं. बिहार की हर एक लाख जनसंख्या पर मात्र 4 डॉक्टर और 2 नर्स हैं जो देश में सबसे कम है।

बिहार में स्थाई और ठेके पर रखे जाने वाले नर्सों के कुल मिलाकर 5331 पद हैं जिसमें मात्र 2302 नर्स बहाल हैं और बाकी 3029 पद खाली हैं. लगभग 57 प्रतिशत की वैकेंसी है। ये हालत पिछले 15 सालों से है। 12.5 करोड़ की आबादी वाले बिहार में आज सिर्फ 4352 सरकारी डॉक्टर हैं और यही वजह है कि बिहार में हर साल चमकी बुखार, लू लगने और ठनक गिरने (आकाशीय बिजली) की वजह से ही सौ-दो सौ लोगों की मौ’त हो जाती है।

अब क्या किया जा सकता है?इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमने जॉर्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के साथ बतौर सीनियर रिसर्च फेलो जुड़े और बिहार से वास्ता रखने वाले डॉक्टर विकास केसरी से सम्पर्क किया। बकौल डॉक्टर विकास आज की तारीख में बिहार के पास बहुत सीमित रास्ते हैं।

वो कहते हैं,“साफ दिख रहा है कि जब देश के कई राज्यों में जब कोरोना के मामले कम होंगे, तब बिहार में इस वायरस का प्रकोप चरम पर रहेगा। बिहार पर हर तरफ से संकट है। आर्थिक स्थिति ख़राब है। साक्षरता और जागरूकता का स्तर भी कम है। बाढ़ का संकट अलग है। ये सब मिलकर आने वाले दिन में बिहार के लिए बड़ा संकट पैदा करने वाले हैं।”

डॉक्टर विकास केसरी अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, “बिहार सरकार को मदद मांगनी होगी। जल्दी से जल्दी। वहीं केंद्र सरकार को बिहार में कुछ रेडिकल करना होगा। जैसे, देशभर से एक्सपर्ट वहां भेजे जाएं। राज्य के पांच बड़े अस्पतालों में जल्दी से जल्दी कम से कम दो-तीन सौ फुल ऑक्सीजन वाले बेड तैयार किए जाएं। इसके बाद राज्य का पूरा का पूरा हेल्थ सिस्टम विशेषज्ञ डॉक्टरों के हवाले किया जाए.”

डॉक्टर विकास केसरी इस बातचीत में इतना तक कहते हैं कि अगर वक्त रहते हुए ये सब नहीं किया गया तो आने वाले दिन बिहार के लिए बहुत मुश्किल होने वाले हैं। ऐसा भी नहीं है कि इन बातों की तरफ अकेले डॉक्टर विकास केसरी जैसे विशेषज्ञ इशारा कर रहे हैं।

19 जुलाई को बिहार में बढ़ते कोरोना के मामलों की खोज-ख़बर लेने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक विशेष टीम पहुंची थी। इस टीम ने जो सुझाव दिए हैं, उसमें कहा गया है कि राज्य सरकार को टेस्टिंग का तरीक़ा बदलना होगा। टीम ने कहा कि ट्रैकिंग, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट पर जोर दिया जाना चाहिए। टीम ने 19 जुलाई को वही कहा जो कोरोना फैलने के पहले दिन से कहा जा रहा है।

इतना ही नहीं, इसी बीच बिहार सरकार ने 27 जुलाई को स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को दूसरी बार बदल दिया। सरकार ने कोरोना संकट के बीच, वरिष्ठ आईएएस (IAS) अधिकारी प्रत्यय अमृत को स्वास्थ्य विभाग में प्रधान सचिव की जिम्मेदारी सौंप दी।

आने वाले दिनों में होने वाली मुश्किलों का अंदाज़ा अभी से हो रहा है। पहले से बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था और चरमरा गई है। मुख्यमंत्री के आदेश देने के बाद भी राज्य में रोज़ाना बीस हजार टेस्ट नहीं हो पा रहे हैं। हर दिन राज्य के किसी ना किसी बड़े अस्पताल से अव्यवस्था, संसाधनों की कमी और रोते-बिलखते परिजन के हृदय को दहला देने वाले वीडियो सामने आ रहे हैं।

सवाल उठता है कि ‘बिहार में बहार है…’ का नारा देखकर मुख्यमंत्री का पद पाने वाले नीतीश कुमार, महामारी के वक्त में चुनाव करवाने को आतुर बीजेपी और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी सामने से आती मुश्किल को देखेंगे? समझेंगे और वक्त रहते जरूरी कदम उठाएंगे?

राज्य में भी कोरोना वैसे ही फैला जैसे दुनियाभर में फैला। एक इंसान से दूसरे इंसान में। पहले विदेशों से आए लोग राज्य में कोरोना लेकर आए और फिर लॉकडाउन के दौरान ही जब श्रमिक स्पेशल ट्रेनों, पैदल और साइकल से मरीज राज्य में दाखिल हुए तो कोरोना के मामलों में तेजी दिखी। मार्च और अप्रैल के महीने में राज्य के सरकारी डॉक्टर, नर्स और दूसरे मेडिकल स्टाफ अपनी सुरक्षा के लिए सरकार से पीपीई किट मांग रहे थे। राज्य सरकार केंद्र सरकार से पीपीई किट मांग रही थी।

2 अप्रैल को बिहार के नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार सरकार ने पांच लाख पीपीई किट की मांग की है जबकि उसे मात्र चार हजार किट मुहैया कराई गई हैं। 10 लाख एन-95 मास्क की मांग की गई लेकिन केंद्र ने दिए मात्र 50 हज़ार। दस लाख सी प्लाई मास्क की मांग की गई थी और अभी तक मात्र एक लाख मिले हैं। 10 हज़ार आरएनए एक्सट्रैक्शन किट की मांग की गई और मिले हैं अभी तक मात्र 250।

इसका सीधा मतलब है कि जब राज्य में अलग-अलग वजहों से कोरोना के मरीज बढ़ रहे थे तो राज्य सरकार संसाधनों की कमी से जूझ रही थी और केंद्र सरकार से मदद मांग रही थी। अब कुछ आंकडे देख लीजिए। बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक, 29 अप्रैल तक राज्य में लगभग 70 हज़ार प्रवासी आ चुके थे।

30 अप्रैल से लेकर 3 मई के बीच राज्य में कुल 6,043 टेस्ट हुए। यानी हर दिन लगभग 1500 टेस्ट ही हो पा रहे थे। इतना ही नहीं, 4 मई से लेकर 8 मई के बीच केवल 2,316 सैम्पल की जाँच हुई यानी इन चार दिनों में हर दिन केवल 579 टेस्ट हुए।

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