EXCLUSIVE : जंगल राज की और लौट रहा बिहार, मधुबनी और नवादा कांड ने CM नीतीश को किया शर्मसार

SANTOSH SINGH, EDITOR, KASISH NEWS : किसी भी देश में या फिर समाज में अपराध को रोकना नामुमकिन है, लेकिन अपराध में शामिल अपराधियों पर कार्रवाई ना हो तो वही से शुरू होता है जंगल राज । बिहार इन दिनों इसी दौर से गुजर रहा है जहां अपराधियों में एक बार फिर से यह भय खत्म हो गया है कि अपराध करने पर उसे कुछ होने वाला नहीं है और यही वजह है कि राज्य में आपराधिक घटनाएं थम नहीं रही है ,वही नवादा जहरीली शराब कांड और मधुबनी नरसंहार कांड ने तो बिहार पुलिस की पोल खोल करके ही रख दी कि राज्य 1995 के दौर में पहुंच गया है। जहां जिस मामले में मीडिया उछल कूद कर रहा है तो उसे देख लो बाकी सब भगवान भरोसे छोड़ दो । राज्य में इन दिनों औसतन रोजाना 15 से 20 हत्या ,लूट और रंगदारी जैसी गंभीर अपराध घटित हो रही है ।

कुछ मामले को छोड़ दे तो अधिकांश मामले में कार्रवाई तो दूर समय पर केस दर्ज नहीं हो रहा है बड़ी मुश्किल से केस दर्ज हो गया ना तो उद्भेदन पर काम हो रहा है और ना ही सुपरभिजन हो रहा है।हाल ये हैं कि जितने मुकदमे कोर्ट में लंबित है उससे कुछ ही कम मामले थाने में गिरफ्तारी और अनुसंधान को लेकर लंबित है राजधानी पटना की तो बात ही जुदा है हजारों मामले हैं जिनका सुपरभिजन तक नहीं हो पाया है पीड़ित थाना, डीएसपी और एसपी के ऑफिस में दौड़ते दौड़ते परेशान है कोई सुनने वाला नहीं है राज्य के राजधानी का यह हाल तो समझ सकते हैं जिलों का क्या हाल होगा ।

1–स्पीडी ट्रायल और आर्म्स एक्ट में सजा बीते दिनों की बात हो गयी
2005 में जब नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने थे तो सबसे बड़ी चुनौती राज्य में कानून का राज स्थापित करना था और इसके लिए 2006 में पुलिस मुख्यालय के स्तर पर दो बड़ी कार्रवाई की शुरुआत हुई थी एक आर्म्स के साथ पकड़े गये तो तुरंत सजा हो इसके लिए पुलिस मुख्यालय में एक अलग सेल बनाया गया जिसकी जिम्मेदारी थी कि आर्म्स के साथ जहां किसी जिले में अपराधी पकड़ा गये उस अपराधी को तुरंत सजा मिले इसके लिए मुख्यालय स्तर से मॉनिटरिंग शुरू हो जाती थी क्यों आर्म्स एक्ट मामले में सारे गवाह सरकारी मुलाजिम ही होते हैं इसलिए एक सप्ताह के अंदर बरामद आर्म्स क्रियाशील है कि नहीं इसकी रिपोर्ट मेजर केस के अनुसंधानकर्ता को मुहैया करा दे रिपोर्ट मिलते ही दस दिनों के अंदर पुलिस कोर्ट में चार्जशीट फाइल कर दे इस कार्रवाई का इतना बड़ा प्रभाव पड़ा कि बिहार के बड़े से बड़े बाहुबली अवैध हथियार लेकर निकलना बंद कर दिया लेकिन अभी क्या स्थिति है वर्षो से मेजर साहब बरामद आर्म्स का रिपोर्ट नहीं दे रहे हैं रिपोर्ट देने में मेजर अपराधियों से पैसे लेने से भी नहीं डर रहा है और कई मामले तो ऐसे भी सामने आया जिसमें मेजर पैसे लेकर आर्म्स को अनइफेक्टिभ रिपोर्ट दे दिया है जबकि उस आर्म्स से घटना स्थल पर अपराधियों ने गोली चलाया था ।

यही हाल स्पीडी ट्रायल का है 2006 में स्पीडी ट्रायल शुरू हुआ था पहले वर्ष 6,839 अपराधियों को सजा मिली और यह बढ़कर 2010 में 14,311 और 2020 भी घटकर पांच हजार के करीब आ गया है इतना ही नहीं पुलिस मुख्यालय और डीजीपी को आपराधिक मामले में स्वतंत्र निर्णय लेने से कोई रोक नहीं था

1–डीजीपी के फोन पर एसपी स्तर का तबादला होता था
राज्य में वैसे ही कानून का राज और सुशासन स्थापित नहीं हुआ था सूबे के मुखिया नीतीश कुमार डीजीपी को अपराध रोकने में बाधा डालने वालों के खिलाफ किसी भी स्तर पर कार्रवाई करने की छूट दे रखी थी लेकिन आज स्थिति पूरी तौर पर बदली हुई है एक दौरा ऐसा भी आया जब डीजीपी स्तर से मालदार थाना में,जीटी रोड वाले थाने में थानेदार की पोस्टिंग डीजीपी कार्यालय से होने लगी और देखते देखते डीजीपी कार्यालय अपराध रोकने के बजाय वसूली का केंद्र बन गया और सारा सिस्टम टूट गया और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ सरकार जिम्मेदार क्यों कि अब इनके एजेंडे कानून का राज है ही नहीं ।

वो भी दौर था सुबह के करीब छह बज रहे होंगे अचानक मोबाइल की घंटी बजी मोबाइल उठाये तो देखते हैं डीजीपी बिहार का फोन है मैं घबरा गया इतनी सुबह सुबह क्या हो गया ।संतोष जी सो रहे हैं यंग है सुबह सुबह उठा कीजिए जी सर, ऐसा है संतोष जी आपके जिले का एसपी पता चला है गाय का खाना भी थाना प्रभारी से लेता है सर थाना तो बेच रहा है लेकिन गाय का खाना भी थाना प्रभारी से ही लेता है ये पता नहीं है।वैसे सर एसपी कितना गाय पाले हुए है कि गाय का खाना भी थाना प्रभारी से लेता है, इसलिए तो आपको फोन किए हैं दरभंगा से लौट रहे हैं रास्ते में हैं आप अच्छे तरीके से पता करके बताइए ऐसा भी होता ऐसे में थाना वाला तो जनता को ही लूटेगा ना ,जी सर पता करके बताते हैं ।

इतनी सुबह सुबह किसको फोन करे पांच मिनट सोचने के बाद मैं अपने थाने से ही पूछना शुरू किये पता चला एसपी साहब के गाय का खाना सभी थाने से जाता है और कुछ खाना छोड़कर बाकी का खाना को बेचने की जिम्मेदारी नगर थाना को है जो उस खाने को बेचकर पैसा मेम साहब को भेज दिया जाता है ।

हालांकि पिछले क्राइम मीटिंग से जिले के सारे थानेदार ने तय किया है कि नगर थाना को पैसा भेजेंगे नगर थाना अध्यक्ष गाय का खाना और मेम साहब का हिसाब करते रहेंगे फिर मैंने पूछा इतना ही से काम चल जाता है कि एसपी साहब भी मासिक लेते है क्या कहते हैं संतोष जी गाय वाले को कोई लेखा जोखा नहीं है उपर से भी मोटा चाहिए ठीक है फिर दो तीन और थाना प्रभारी से पता किया सब रो रहा था ।

एसपी साहब को आये कुछ ही माह हुआ था इसलिए मुझे भी ये जानकारी नहीं थी खैर थोड़ी देर बाद डीजीपी साहब को फोन लगाएं राधे राधे कहिए संतोष जी सर एसपी सही में गाय का खाना जिला के सभी थानेदार से लेता है और इसके अलावा मासिक अलग से इसलिए तो आपको फोन किये थे किसी से बात हो रही थी तो बोला संतोष जी से बात करिए उन्ही का जिला भी है और पुलिस का सारा जानकारी उनको रहता है खैर अगले दिन ही उस एसपी का तबादला हो गया ।

इसी तरह एक डीजीपी साहब बिहार के एक जिले के एसपी को रात एक बजे फोन किए तुम्हारे यहां शहर के एक बड़े डाँ के घर डकैती हुई है जा कर देखिए क्या हुआ है ।एसपी साहब को हनक था की सरकार हमारी है मेरा कौन क्या बिगाड़ लेगा उन्होंने डीजीपी साहब को बोला सर सुबह देख लेंगे डीजीपी साहब ने कहा सुबह तुम जिला में रहोगे तब ना देखोगे और अगले दिन सुबह दस बजे उस एसपी का तबादला हो गया था।

और आज कई ऐसे एसपी है जो डीजीपी का फोन एक रिंग में नहीं उठाते हैं, बिहार के सबसे अधिक अपराध होने वाले एक जिले का एसपी ऐसा है जो दिन में तीन घंटा सोता है इस दौरान डीजीपी की कौन कहे सीएम का भी फोन आ जाये फोन उसका बॉडीगार्ड ही उठाता है इतना ही नहीं राज्य में कई ऐसे थानेदार हैं जिसको हटाने में एसपी साहब का पैर फूलने लगता है ।

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