नीतीश के लिए विश्वसनीय नहीं है मांझी-सहनी, कभी भी धोखा देकर जा सकते हैं तेजस्वी के पास

क्या मानसून सत्र में मुकेश सहनी और जीतनराम मांझी की नाराजगी नीतीश सरकार पर भारी पड़ सकती है?. आरजेडी जिस विधेयक को बिहार की जनता के अनुकूल नहीं समझेगी, उसके ख़िलाफ़ सदन में वोटिंग की मांग करेगी और हमारा मानना है कि सदन में ऐसे बहुत लोग हैं जो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन वोट करेंगे.

ऐसे में अगर में सरकार गिरने की नौबत आती है तो इससे बेहतर क्या हो सकता है? मौनसुन सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चल रहे आपसी खींचतान के बीच आरजेडी के वरिष्ठ विधायक भाई वीरेंद्र ने NEWS 18 से बातचीत करते हुए ये बातें कहीं. आरजेडी विधायक का बयान ऐसे समय में आया है जब एनडीए के प्रमुख सहयोगी मुकेश सहनी (Mukesh Sahni), उतर प्रदेश की योगी सरकार से नाराज़ हैं. अपनी नाराज़गी एनडीए के बैठक में शामिल नही होकर जता भी चुके हैं. लगे हाथों महागठबंधन की तरफ़ से न्योता भी मिलने लगा है.

मानसून सत्र में सात विधेयक आने वाले हैं और कई बार सदन में किसी विधेयक को लेकर विरोधी पार्टियां अड़ जाती हैं. कई बार विधेयक को पारित करवाने के लिए मतदान की नौबत आ जाती है और इस बार भी जब एनडीए बहुत मामूली बहुमत से चल रही है, ऐसे में अगर मुकेश सहनी और जीतनराम मांझी के तेवर ख़तरे का सबब ना बन जाएं. मुकेश सहनी ने ये बयान देकर बिहार की राजनीति और गरमी दी है कि लगता ही नहीं कि प्रदेश में एनडीए की सरकार चल रही है, यह तो जेडीयू और भाजपा की सरकार ही लग रही है.

हालांकि, एनडीए के नेता फ़िलहाल ऐसे किसी भी आशंका से इनकार करते हैं. डिप्टी सीम तारकिशोर प्रसाद कहते हैं कि मुकेश सहनी ने हम लोगों से कोई शिकायत नहीं की है. उनकी नाराजगी बिहार के संदर्भ में नहीं है और NDA पूरी तरह से एकजुट है. वहीं JDU के MLC नीरज कुमार कहते हैं कि हर पार्टी की अपनी अपनी अलग राजनीति होती है. मुकेश सहनी की भी अपनी राजनीति है लेकिन वो नीतीश सरकार में मंत्री हैं और सरकार के मुख्य अंग है और NDA के साथ मज़बूती से हैं.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे बताते हैं कि बिहार विधानसभा में अभी जो दल गत स्थिति है, वो NDA के लिए बहुत आरामदायक नहीं है. अभी बहुमत के लिए 122 विधायक चाहिए और NDA के पास 127 विधायकों का बहुमत है. अगर मुकेश सहनी और मांझी नाराज़ हो जाते हैं तो खेल कुछ भी हो सकता है.

मानसूत्र सत्र में सात विधेयक पारित होने वाले हैं जिसमे तीन धन विधेयक हैं. बिहार खेल विश्वविद्यालय विधेयक, बिहार अभियंत्रण विश्व विद्यालय जैसे विधेयक हैं जिनके पारित होने पर सरकार के ख़ज़ाने पर बोझ पड़ेगा और अगर इसमें किसी में भी पारित होने में वोटिंग की नौबत आती है तो NDA के लिए थोड़ी मुश्किल आ सकती है. ऐसे में एनडीए सरकार ने भी पूरी तरह से कमर कसनी होगी. हालांकि सच यह भी है कि बिहार में कभी ऐसी नौबत अभी तक नहीं आई.

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