लाकडाउन में आप बिहार में हैं तो यह आपका बहुत बड़ा दुर्भाग्य है, सरकार की गलती से म’र रहे लोग

चाइना वायरस का असली कहर पूरे भारत में दिखना अभी बाकी है। अब हम ऐसी स्थिति में आ चुके हैं कि लॉकडाउन भी दिखावटी कर सकते हैं। अर्थव्यवस्था की स्थिति अभी जितनी पतली चल रही है, ऐसा न कभी हुआ था और न किसी ने इसकी कल्पना की थी। मतलब स्पष्ट है कि पूर्ण लॉकडाउन, जैसा कि मार्च में किया गया था, अब संभव नहीं है। अब वैसी पाबंदियों के लिये न तो सरकारें तैयार हो सकेंगी और यदि हिम्मत करके कोई सरकार कर भी दे तो जनता तमाम पाबंदियों की अर्थी निकाल देगी।

अब भारत के अंदर राज्यों के हिसाब से बातें करें तो महान (वर्तमान के हिसाब से कथित) बिहार नीचे से नंबर वन है। जिस तरह की कुव्यवस्था है, यदि जनता समझदार होती तो समझ लेती कि फिलहाल बिहार में सरकार जैसी कोई चीज रह नहीं गयी है। पटना एम्स के बाहर सड़क पर तड़पते एक व्यक्ति का वीडियो का मिलता है। वह व्यक्ति बिहार सरकार के मंत्रालय में सचिव स्तर का अधिकारी रह चुका है। अंतत: जब वह व्यक्ति किसी तरह से एडमिट हो भी जाता है, मर जाता है। एनएमसीएच का एक वीडियो मिलता है, एक बच्चे ने हर प्रयास करके हार जाने के बाद बनाया है। उक्त बच्चे का खानदान ही फौजी है, बावजूद उसके मरीज को चिकित्सा नहीं मिल पाती है। एनएमसीएच का एक और वीडियो मिलता है, उसमें एक बेड पर दो दिन से लाश पड़ी है, बगल के बेड पर चाइना वायरस का एक मरीज मौत से जूझ रहा है।

अब अभी के ताजा कुछ प्रकरणों से प्राप्त अनुभव बताता हूं। एक डॉक्टर हैं। जबसे चाइना वायरस का कहर शुरू हुआ है, तबसे इसके मरीजों का इलाज कर रहे हैं। शुरू में कई सप्ताह तक सरकार की तरफ से मास्क तक नहीं मिला था, व्यक्तिगत सुरक्षा परिधान (पीपीई) तो भूल ही जाइये। ऐसे में डॉक्टरों को अपने से सही वाला मास्क और सही वाला पीपीई खरीदना पड़ा। बाद में जब सरकारी पीपीई मिला भी तो वह सस्ते रेनकोट से रत्ती भर भी बेहतर नहीं था। अब उन डॉक्टर साहब के अस्पताल में ही दो डॉक्टर संक्रमित निकल गये हैं।

ऐसे में सामान्य प्रोटोकॉल कहता है कि साथ में काम कर रहे सभी डॉक्टरों, सभी अन्य कर्मचारियों और संपर्क में आये सभी लोगों का परीक्षण किया जाये। यही राष्ट्रीय प्रोटोकॉल भी है, लेकिन बिहार में ऐसा नहीं होता है। अब यदि बाकी डॉक्टर परीक्षण कराना चाहें तो उनको डीएम से मंजूरी चाहिये होगा। बाकी राज्यों में आप निजी लैब में जा सकते हैं, बिहार में इसका भी हिसाब मस्त है। पूरे बिहार में सिर्फ एक निजी लैब को चाइना वायरस टेस्ट की मंजूरी है और राज्य सरकार ने उसके ऊपर एक दिन में अधिकतम 25 परीक्षण का कैप लगाया हुआ है। अब करवा लीजिये टेस्ट।

राज्य में ढंग के जो कुछ अस्पताल हैं, जैसे पटना एम्स, आईजीआईएमएस, पीएमसीएच, एनएमसीएच और एक हमारे पावापुरी वाला वर्धमान महावीर आदि, वहीं चाइना वायरस के मरीजों का इलाज भी हो पा रहा है ठीक से। बाकी जगहों पर इलाज की बुनियादी संरचना ही नहीं है, तो इलाज के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति चल रही है। जिन पांच अस्पतालों का नाम मैंने लिया है, वहां भी तभी जाना बेहतर जबकि संक्रमण गंभीर हो गया हो। यदि एसिम्पटोमेटिक या मोडरेट वाला मामला है, बेहतर है कि घर में रहकर स्वास्थ्यलाभ करिये। ये बड़े अस्पताल भी आपको ऐसे मामलों में वही सुविधा दे पायेंगे, जो आप किसी परिचित चिकित्सक से फोन पर पा सकेंगे। कोविड को छोड़ दीजिये, कोई अन्य भी परेशानी हो गयी तो आपको अस्पताल पाने में जान हलक तक लानी पड़ जायेगी।

एक संबंधी को हर्ट अटैक का केस आया हाल ही में। पटना में एक बड़े भैया हैं, चिकित्सा के क्षेत्र में उनकी बहुत शानदार पैठ है, उनसे संपर्क किये और उनके जैसे व्यक्ति के एड़ी-चोटी लगा देने पर भी किसी ढंग के निजी अस्पताल तक ने भर्ती नहीं लिया। निजी अस्पतालों के मामले में आसन बाबू से बढ़िया हिसाब तो ललुए के टाइम था। कम से कम डर का तो कारोबार चल रहा था। अभी तो लगता है कि जैसे बिहार की सरकार निजी अस्पताल ही चला रहे हैं। पूरे भारत में निजी अस्पतालों को इस वायरस का इलाज करने के लिये कह दिया गया है, निजी लैब्स को परीक्षण के लिये कह दिया गया है, लेकिन बिहार में ऐसा कुछ नहीं है।

बिहार में यदि सही से टेस्टिंग हो, तो हमारा महान राज्य किसी और चीज में ऊपर से नंबर रहे या नहीं, इस वायरस के मरीजों के मामले में अन्य राज्यों से कम-से-कम पचास प्रतिशत का फासला लेकर शिखर पर रहेगा।

चिकित्सा की बुनियादी संरचनाओं की बात करें, तो पटना शहर इस मामले में बहुत शानदार स्थिति में है। इस मामले में पटना के टक्कर में सिर्फ महानगर ही आ सकेंगे। लेकिन इसमें एक शर्त है, और वह कि सरकारी को कंसीडर नहीं किया जाये। अब जब आपके पास निजी क्षेत्र का ही सही लेकिन इंफ्रा है, इस आपद काल में भी उसका प्रयोग नहीं करोगे, फिर उसका कौन सा अचार डालोगे?

साला हालात इतने खराब होते जा रहे हैं, और ऐसे में एक और खबर मजेदार आती है कि बाढ़ के पानी से दो दिन के जमा किये सैंपल बह जाते हैं, फिर उन्हें संपिंग मशीन से नाले से निकाला जाता है और आइसबॉक्स में रखा जाता है। अब मुझे कोई बताये कि स्वैब सैंपल पानी में बह जाये, कई घंटे डूबा रह जाये, फिर उसको आइसबॉक्स में डालकर भी क्या उखाड़ लिया जा सकता है?

लेकिन नहीं, हम तो महान बिहार हैं न! हमने दुनिया को लोकतंत्र दिया है न! हमने दुनिया को उसके इतिहास का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय दिया है न! हमने भारत को मौजूदा क्षेत्रफल से भी बड़ा साम्राज्य दिया है न! हमने चाणक्य, बुद्ध, महावीर दिया न! हमने मौर्य साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य दिया न! इसलिये यदि हमारी कमियां गिनाओगे तो हम यह सब गिनाने लग जायेंगे। भले ही हम बीमारू राज्यों में सबसे ऊपर आते हैं, भले ही पूरे भारत में मजदूर हमारे होते हैं, भले ही ‘बिहारी’ संबोधन तक भारत में गाली हो गया है…हमको इससे क्या! हमको तो अभी तो बस चुनाव की पड़ी है। हम मुख्यमंत्री हैं। भतीजी बीमार पड़ जायेगी तो बिहार के नौ सबसे शानदार डॉक्टरों को सीएम आवास में ही ड्यूटी पर लगा दिया जायेगा। पूरे बिहार में भले ही सौ वेंटिलेंटर नहीं हो, लेकिन एक मरीज के लिये चार तो मेरे आवास में रहने ही चाहिये

-सुभाष सिंह सुमन

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