BJP-JDU को बहुमत दिलाने में NOTA का भी बड़ा रोल, 56% प्रत्याशी को नोटा ने पछाड़ा

BJP-JDU को बहुमत दिलाने में NOTA का भी बड़ा रोल, 56% प्रत्याशी को नोटा ने पछाड़ा

बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ने बहुमत हासिल किया है। NDA को बहुमत दिलाने में NOTA का भी बड़ा रोल रहा है। यह बात इसलिए क्योंकि 56 फीसदी प्रत्याशियों को नोटा ने पछाड़ा है और अगर नोटा के ये वोट विरोधियों को पड़ते तो आज चुनावी नतीजे कुछ औऱ होते। नतीजे कैसे बदल जाते और कैसे नोटा ने एनडीए की जीत में बड़ी भूमिका निभाई यह हम आपको आगे बताएंगे लेकिन उससे पहले जान लीजिए कि नोटा क्या होता है?

हर EVM मशीन में नोटा: दरअसल चुनाव आयोग वोटरों को ईवीएम मशीन में नोटा का ऑप्शन भी देता है। नोटा एक ऐसा विकल्प होता है जिसमें वोटर इलाके के प्रत्याशियों को लेकर अपनी नापसंदगी के बारे में मत डालते हैं। जाहिर है हर चुनाव में नोटा को भी वोट मिलते हैं। एक खास बात यह भी है कि चुनाव आयोग नोटा को निर्दलीय के तौर पर काउंट करता है।

यूं बदल जाते नतीजे:  बिहार में भोरे और सरायरंजन यह दो ऐसे विधानसभा क्षेत्र रहे जहां अगर नोटा को मिले वोट किसी प्रतिद्ंदी प्रत्याशी को मिल जाते तो चुनाव के नतीजे ही पलट जाते। यह दोनों ही सीटें जनता दल यूनाइटेड के प्रत्याशियों ने जीती थीं और अगर नोटा को पड़े वोट जदयू के विरोधियों को मिल जाते तो नतीजा कुछ और ही होता। इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों के अलावा रामगढ़, हिलसा, बरबीधा जैसी कुछ अन्य सीटों पर भी इस बार मुकाबला बेहद कांटे का रहा है और अगर नापसंदगी का यह वोट जदयू कैंडिडेट के विरोध में जाता को बिहार के राजनीतिक समीकरण आज कुछ औऱ होते।

13 सीटों पर नोटा तीसरे नंबर पर: अब जरा यह समझिए कि कैसे नोटा के वोट अगर प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों को मिलते तो नतीजे बदल सकते थे। कुल 243 विधानसभा सीटों में से 13 ऐसी सीटें हैं जहां नोटा तीसरे नबंर पर रहा। इन सभी सीटों पर नोटा को 4 प्रतिशत तक वोट मिले हैं। जबकि इन 13 सीटों में से 4-4 सीट जदयू और भाजपा ने जीते तथा राजद ने 3 और सीपीआईएम और कांग्रेस को 1-1 सीट पर जीत मिली है। इन 13 सीटों में से कुछ सीटों पर जीत का अंतर 462 से लेकर 18 हजार तक रहा है।

हालांकि इस बार नोटा को मिले वोट साल 2015 में मिले वोटों से कम थे। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार 0.80% कम लोगों ने नोटा का बटन दबाया है। फिर भी इस चुनाव में 56 फीसदी प्रत्याशी नोटा से पिछड़ गए और इसमें ज्यादातर निर्दलीय शामिल थे। इस बार कुल 3733 दलीय या निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में ताल ठोक रहे हैं।

इतना ही नहीं इस चुनाव में 4 राजनीतिक पार्टियों- AIMIM, बसपा, भाकपा और माकपा से ज्यादा वोट नोटा को मिले हैं। बिहार विधानसभा चुनाव की एक खास बात यह भी थी कि ऐसी कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं थी जिसने हर विधानसभा क्षेत्र में अपने प्रत्याशी उतारे हों, हालांकि हर विधानसभा क्षेत्र में नोटा का विकल्प जरुर मौजूद था।

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