BPSC को केके पाठक का जवाब, स्वतंत्रता के नाम पर मनमानी करने नहीं दे सकते हैं, ठीक से काम करो

शिक्षा विभाग का बीपीएससी को दो टूक- स्वायत्तता का अर्थ अराजकता नहीं :

स्वायत्तता के नाम पर विवेकहीन और मूर्खतापूर्ण निर्णय नहीं ले सकता बिहार लोक सेवा आयोग

● स्पष्ट किया-बीपीएससी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर रहा विभाग

● नसीहत- स्थापित परंपराओं से हटकर कोई कार्य करने पर पहले करें चर्चा

शिक्षा विभाग ने बिहार लोक सेवा आयोग से दो टूक कहा है कि स्वायत्तता का अर्थ अराजकता नहीं होता। आयोग अपनी स्वायत्तता के नाम पर विवेकहीन व मूर्खतापूर्ण निर्णय नहीं ले सकता है, जिससे शिक्षक नियुक्ति को लेकर सरकार के सामने वैधानिक अड़चन आए। स्वायत्तता का अर्थ यह नहीं है कि वह स्थापित परंपराओं से इतर जाए। विभाग ने इसको लेकर आयोग को आगाह भी किया। साथ ही आयोग को उसका मूल पत्र भी लौटा दिया है। शिक्षा विभाग ने बीपीएससी से यह भी पूछा है कि आयोग यह भी स्पष्ट करे कि लिखित परीक्षा का परिणाम निकले बगैर प्रमाण पत्रों का सत्यापन पहले से किन-किन मामलों में किया गया है?

शनिवार को शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के.के. पाठक के निर्देश पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक कन्हैया प्रसाद श्रीवास्तव ने बीपीएससी के सचिव के पत्र का जवाब दिया। इसमें उन्होंने कड़ी आपत्ति प्रकट की है। उन्होंने सचिव के पत्र को अनावश्यक व बचकानी हरकत भी बताया और ऐसा न करने की नसीहत दी।

माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने बीपीएससी से स्पष्ट कहा कि वह उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर रहा। नियमावली के तहत आयोग अपनी कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है। ऐसे में विभाग पर हस्तक्षेप करने और दबाव बनाने का आरोप अनुचित और अस्वीकार्य है। लेकिन, शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध में प्रशासी विभाग तो शिक्षा विभाग है और संबंधित नियमावली में कई जगह लिखा है कि परीक्षा की विभिन्न पहलुओं पर प्रशासी विभाग से चर्चा कर ही कार्य किया जाए।

आयोग के स्तर पर औपचारिक बैठक होनी चाहिए निदेशक

निदेशक ने कहा कि शिक्षक नियुक्ति में आयोग को जब भी स्थापित परंपराओं से हटकर कोई कार्य करना है तो पहले एक औपचारिक बैठक आयोग के स्तर पर होनी चाहिए। इसमें शिक्षा विभाग, विधि विभाग और सामान्य प्रशासन विभाग से चर्चा होनी चाहिए।

शिक्षा विभाग ने बीपीएससी का पत्र भी उसे लौटाया

निदेशक ने सचिव से कहा कि शिक्षक नियमावली में प्रावधानों का अनुपालन जरूरी है। ताकि समय पर नियुक्ति की प्रक्रिया पूर्ण हो सके। आपने अनावश्यक रूप से अनर्गल शब्दों का प्रयोग करते हुए पत्राचार में जो ऊर्जा व्यय किया है वह अनुचित है। इसकी बजाय नियमावली के तहत ससमय कार्रवाई सुनिश्चित करें, ताकि नियुक्ति प्रक्रिया को कोर्ट केसों के बोझ से बचाया जा सके। निदेशक ने कहा कि मुख्य सचिव ने 6 सितंबर को ही सारी स्थिति स्पष्ट कर दी तो फिर आयोग को इस तरह के पत्र लिखने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसके साथ ही शिक्षा विभाग ने बिहार लोक सेवा आयोग के मूल पत्र को उन्हें वापस भी कर दिया।

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