लागू होगा ‘एक देश एक कानून’, मोदी सरकार लाने जा रही है कॉमन सिविल कोड, सदन में पास होग बिल

PATNA- पहली बार सरकार ने दी स्पष्ट जानकारी, उत्तराखंड की पहल को शुरुआत माना जा रहा,समान नागरिक संहिता लाने की तैयारी में केंद्र, लगभग 20 फीसदी मुकदमे समाप्त होंगे
एक समान कानून बनने से विभिन्न कानूनों का जाल खत्म होगा और इससे देश में करीब 20 फीसदी दीवानी मुकदमे स्वत:समाप्त हो सकते हैं। क्योंकि सभी नागरिकों पर भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की तरह से यह कानून लागू होगा।

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने देश के नागरिकों के लिए ‘समान नागरिक संहिता’ लाने की तैयारी शुरू कर दी है। इस कानून का केंद्रीय बिल किसी भी समय संसद में पेश किया जा सकता है। परीक्षण के तौर पर उत्तराखंड में कानून बनाने की कवायद शुरू की गई है। वहां एक कमेटी का गठन भी कर दिया है। खास बात, इस कमेटी के लिए ड्राफ्ट निर्देश बिन्दु केंद्रीय कानून मंत्रालय ने ही भेजे हैं। इससे साफ है, कानून का ड्राफ्ट केंद्र सरकार के पास तैयार है।

राज्यों में बने कानून केंद्रीय बिल में समाहित होंगे : केंद्र सरकार के उच्चतर सूत्रों के अनुसार, राज्यों में बने समान नागरिक संहिता कानूनों को बाद में केंद्र सरकार के कानून में समाहित कर दिया जाएगा। क्योंकि एक समानता लाने के लिए कानून का केंद्रीय होना जरूरी है। राज्यों में इस कानून को परीक्षण के तौर पर बनवाया जा रहा है। यह पहला मौका है जब सरकार ने इस कानून के लाने के बारे में इतनी स्पष्टता से जानकारी साझा की है। मामले से जुड़े आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि यह समान नागरिक संहिता कानून अवश्य आएगा लेकिन कब और किस समय, यही सवाल है।

विधि आयोग की तरह राज्य स्तर पर कमेटियां बनाई जा रहीं: केंद्र सरकार का इरादा था कि समान नागरिक संहिता पर राष्ट्रीय विधि आयोग से रिपोर्ट ले ली जाए लेकिन विधि आयोग के 2020 में पुनर्गठन होने के बावजूद कार्यशील नहीं होने के कारण राज्य स्तर पर कमेटियां बनाई जा रही हैं। कमेटी का फॉर्मेट विधि आयोग की तरह ही है।

सरकार की ओर से बनाई गई कमेटी में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना देसाई, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज प्रमोद कोहली, पूर्व आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह और दून विवि की वीसी सुरेखा डंगवाल शामिल हैं। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि यह कमेटी अन्य राज्यों मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश में भी बनाई जा सकती है। ये राज्य समान नागरिक संहिता के लिए पहले ही हामी भर चुके हैं। यहां तक कहा है कि समीक्षा की जा रही है और जल्द फैसला लिया जाएगा। कमेटी के संदर्भ बिन्दु केंद्र ने दिए हैं।

एक देश के रूप में आगे बढ़ना ही होगा: अधिकारियों से जब यह पूछा गया कि आदिवासियों के लिए इस कानून को कैसे लागू किया जाएगा, क्योंकि उनके कानून उनकी रीतियों के अनुसार होते हैं। देश में 10 से 12 करोड़ आदिवासी रहते हैं जिनमें से 12 फीसदी के आसपास अकेले पूर्वोत्तर में रहते हैं। वहीं, कानून के आने से संयुक्त हिन्दु परिवार को आयकर में मिलने वाली छूट समाप्त हो जाएगी। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि हमें एक देश के रूप में आगे बढ़ना है तो थोड़ा तो साथ देना होगा।

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