BJP समर्थक का भावुक FB पोस्ट, कहा- अब लगता है कांग्रेस ही अच्छी थी यार !

अब लगता है कांग्रेस को हटाकर हमने अपना भविष्य और बुरा कर लिया ! 95 से वोट देना शुरू किया है, तबसे एक बार छोड़ लगातार बीजेपी को वोट किया ! वाजपेयी जी का जादू था मन पर ! कॉलेज जीवन में सबसे ज्यादा वाजपेयी जी ने ही प्रभावित किया था, हालांकि तब राजनीति की समझ नहीं थी. गाँव – घर में कांग्रेस का माहौल था, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे कांग्रेस पसंद नहीं थी. आज जब विचार करता हूँ ऐसा क्यों था, तो लगता है कि किसान परिवार से आने और किसानों की दयनीय हालत को घर में ही देखते रहने की वजह से ऐसा हुआ होगा. पिताजी गाँव के अच्छे किसान थे, लेकिन वह हमेशा यही चाहते और कहा करते थे कि खेती में कुछ नहीं रखा है, मन लगाकर पढाई करो और कोई अच्छी सी नौकरी करो.

दूसरे, जब मैं बड़ा हो रहा था, तब इ’मरजेंसी का दौर था. न’सबंदी का बड़ा भय था. लोग ज़’बरदस्ती न’सबंदी कर दिए जाने की कहानियां सुनाते थे, और मुझे ज़बरदस्ती शब्द पर बड़ा गुस्सा आता था. आज भी ज़बरदस्ती शब्द मुझे बहुत बुरा लगता है. मुझे अब समझ में आता है ये ‘ज़बरदस्ती’ शब्द ने भी मेरे किशोर मन मस्तिष्क को कांग्रेस के खिलाफ करने में भूमिका निभाई थी.

इ’मरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार दिल्ली में बनी थी. जनता पार्टी की सरकार के नेताओं में अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण के अंश रेडियो पर सुने थे, बढ़िया हिन्दी में बोलते थे. संयुक्त राष्ट्र संघ में भी हिन्दी में बोल आये थे. हालांकि तब मेरी हिन्दी अच्छी नहीं थी. मगही का ज़बरदस्त प्रभाव था. फिर कॉलेज की पढाई के लिए पटना आया तो एक या दो बार पटना के गांधी मैदान में उनको सुनने का अवसर मिला. सामने देख उनका प्रभाव मेरे दिलो दिमाग पर और चढ़ गया.

लेकिन जब वाजपेयी सरकार आयी और कुछ राजनीतिक समझ भी आयी तो लगा कि वाजपेयी जी के भाषणों में जितना जोश, जितनी सच्चाई थी, वाजपेयी सरकार में वो बात नहीं है. उनकी सरकार भी आम सरकारों जैसी ही लगी. हालांकि जब एक वोट से जब उनकी सरकार गिरी थी, तब बड़ा दुःख हुआ था, जयललिता वैम्प लगी थी. लेकिन आज जब मोदी सरकार सीने पर मूंग दल रही है, तब लग रहा है कि राजनीति की सही समझ युवाओं में कितना ज़रूरी है !

वाजपेयी सरकार का कार्यकाल भी बहुत अलग नहीं रहा. फिर मनमोहन सिंह आये…. मनमोहन जी ने बहुत सारे सुधार किये और नए अधिनियम भी बनाए. पुश्तैनी और पिता की संपत्ति में बेटियों को हक़ देने संबधी हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम से लेकर किसानों को मजबूती देने वाला भूमि अधिग्रहण अधिनियम बनाया. पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत किया और गाँवों के सशक्तिकरण के लिए महती प्रयास किये. पंचायत, मुखिया से लेकर मनरेगा मज़दूर तक दिल्ली से सीधा उनके अकाउंट में पैसा भेजा. ये अलग बात रही कि भ्रष्टाचार का घुन लगी लचर प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था की वजह से गाँवों और मज़दूरों-गरीबों से ज्यादा मुखिया से लेकर प्रखंड और जिला अधिकारी अमीर हुए. लेकिन किसान के लिए भूमि अधिग्रहण क़ानून से अधिक मनमोहन सरकार ने भी नहीं सोचा. हालांकि जब भूमि अधिग्रहण क़ानून और पंचायती राज को मजबूती देने वाले क़ानून बने तो मुझे लगा था कि अब सरकार का उस भारत की तरफ ध्यान गया, जिस भारत के विकास की कल्पना गांधी के मन मस्तिष्क में थी. अब गाँव और किसान मज़बूत होंगे और भारत बदलेगा. लेकिन मनमोहन सरकार अधिनियम बनाकर रुक गयी. किसानों की आमदनी बढे, उनके साथ न्याय हो, बाज़ार में उनकी भी मज़बूत हिस्सेदारी हो, इसके लिए मनमोहन सरकार ने कुछ नहीं किया.

हालांकि मनमोहन सिंह दुनिया के माने हुए अर्थशास्त्री थे, चाहते तो किसानों को उसका वो हक उसे दिला सकते थे, जो आज़ादी के बाद ही उसे मिल जाना चाहिए था. बाज़ार के मुनाफे में किसान का हिस्सा. लेकिन वैसा नहीं हो पाया. इसलिए मेरे मन में एक बार फिर कांग्रेस के प्रति गुस्सा भर गया. नेहरू-इंदिरा ने ज़मींदारी प्रथा का अंत कर बेशक किसानों को ज़ुल्म से राहत दिलाई, लेकिन किसान देश का मज़बूत नागरिक बन सके, इसके लिए कुछ ख़ास नहीं किया. उद्योग धंधों और उद्योगपतियों के लिए नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक ने सोचा और इतना सोचा कि आज सारे बैंक कंगाली के कगार पर हैं, लेकिन किसानों के लिए इतना भी नहीं सोचा कि वह अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ा सके. इसलिए मनमोहन सरकार से भी मुझे चिढ थी. फिर लगातार उभर रहे घोटालों ने भी समझा दिया कि कांग्रेस को जाना चाहिए.

शायद वाजपेयी जी का ही प्रभाव था कि मुझे लगता था गाय, गाँव और भारतीय संस्कृति की बात करने वाली बीजेपी गाँवों और किसानों के लिए कुछ बेहतर करेगी. लेकिन आते ही जब मनमोहन सरकार द्वारा बनाए गए भूमि अधिग्रहण क़ानून को कमजोर करने की कोशिश की और उसे निष्प्रभावी बनाने के लिए दो बार अध्यादेश लाये, तो अच्छे से समझ आ गया कि ये वो बीजेपी नहीं है, जो गाय, गाँव और भारतीयता की बात भाषणों में किया करती थी. ये मनमोहन सरकार से भी कहीं अधिक उद्योगपतियों की सरकार है. और सच बिल्कुल यही हुआ. प्रधानमंत्री ने जब प्रत्येक सांसदों को एक-एक गाँव गोद लेने को कहा था, तब लगा था कि मोदी के दिमाग में गाँवों को लेकर कुछ बेहतर तस्वीर है, लेकिन बाद में पता चला चला ये सब पाखण्ड था भूमि अधिग्रहण क़ानून को निष्प्रभावी बनाने को लेकर किसानों का गुस्सा कम करने के लिए. गाय को बचाने का पाखण्ड सिर्फ मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत उभारने तक सीमित रहा. अगर वाकई इन्हें गायों से प्यार होता, तो गाँव और किसान को बचाने और विश्व बाज़ार में हिस्सा दिलाने की बात सोचते. बिना किसानों के मज़बूत हुए, न गाँव मज़बूत हो सकता है, न गाय बच सकती है और ना ही भारतीयता. सिर्फ नारे लगाने लगवाने से देश का भला नहीं हो सकता.

फिर नोटबंदी और जीएसटी भी आम लोगों और छोटे उद्यमियों को काबू में करने करने का प्रयास साबित हुआ. जबरन जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्ज़ा ख़त्म करना भी इस बात की तस्दीक करती है कि ये ज़बरदस्ती थोपने वाली तानाशाही सरकार है. प्रधानमंत्री अमेरिका जाकर चीखते हैं देश में अब तीन दिन में रेप करने वालों को फांसी की सज़ा हो रही है जबकि यहाँ पूर्व गृह राज्यमंत्री पर रेप का आरोप लगता है, वीडियो वायरल होता है, लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगता. लडकी के महीनों संघर्ष के बाद केस दर्ज भी होता है, तो उससे पहले उसी लडकी और उसके परिवार वालों को बनाए गए मुकदमे में गिरफ्तार कर लिया जाता है. आज की हालत ये है कि रेपिस्ट अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ ले रहा है और रेप का शिकार लडकी जेल में तंत्र का ज़ुल्म सह रही है.

हर तरफ हाहाकार है. आतंकवादियों को कंट्रोल करने के नाम पर, भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने और भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के नाम पर, ट्रैफिक नियमों के पालन के नाम पर इन्स्पेक्टर राज चलाया जा रहा है. मीडिया को खरीद लिया गया है, जो खरीदे नहीं जा सके, उनको धमकाया जा रहा है. गंवारों और गुंडों की पूरी फ़ौज सड़क पर उतरी हुई है, पता नहीं कब किसके साथ क्या हो जाय !

ऐसे में लगता है कांग्रेस ही अच्छी थी यार.

-Dhananjay Kumar

One thought on “BJP समर्थक का भावुक FB पोस्ट, कहा- अब लगता है कांग्रेस ही अच्छी थी यार !

  • अक्टूबर 1, 2019 at 5:22 अपराह्न
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    Every step of Modi government is to give facilities to the capitalists . You never expect any movement of this government for farmer or the ordinary people . Jaihind

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