जुमलेबाज मोदी राज में हर चौथा व्यक्ति मनोरोगी, मुश्किल है केंद्र में भाजपा सरकार की वापसी

जुमलेबाजी कर पांच साल सत्ता में काबिज रहने के बाद एक बार फिर सत्त हासिल करने को बेताब मोदी सरकार और उसकी पार्टी राष्ट्रवाद का नारा उछाल कर देश भर में प्रचार सभाएं करने में जुटी हुई है। सातवें चरण के मतदान में भी रोड शो और सभाओं का सिलसिला जारी रखा गया है। भूलवश भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी के अन्य नेतागण 2014 के चुनाव पूर्व किये गये वादों की चर्चा नहीं करते।

जुमलेबाज सरकार के गुनाहों की सजा आम लोग भुगतने को विवश हैं। वादे के मुताबिक रोजगार की तो कोई व्यवस्था ही नहीं की गई। बढ़ती बेरोजगारी, भीषण महंगाई, नोटबंदी और जीएसटी की वजह से देश का आम आदमी तबाह और बर्बाद है तथा डिप्रेशन का शिकार हो चुका है। अवसाद से ग्रस्त किसान लगातार आत्महत्या किये जा रहे हैं। जो लोग नौकरी कर रहे थे नोटबंदी व जीएसटी में की वजह से लाखों ने नौकरी गंवाई। 2014 के चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि अच्छे दिन आएंगे मगर पांच साल में हुआ यही कि देशवासी मनोरोगी बन गये। सरकार अपनी तथाकथित उपलब्धियों का कितना भी ढोल क्यूं न पीटती रहे हकीकत तो यही है कि मोदी राज में भारत का हर चौथा व्यक्ति मनोरोगी बन चुका है। यह हम नहीं कह रहे विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 125 करोड़ लोगों में 6.5 फीसदी लोग गंभीर मनोरोग के शिकार है। प्रति लाख में 10.9 प्रतिशत रोगी आत्महत्या कर लेते हैं।

मोदी सरकार नित नये जुमले उछालती है मगर उसे जरा भी अहसास नहीं है कि इसका आम लोगों खास कर युवाओर् पर क्या असर पड़ता है। देश भर में जो युवा आत्महत्या करते हैं उसकी वजह मनोरोग ही है। केंद्र की मोदी सरकार तेजी से भारत की आर्थिक तरक्की की बात तो करती है मगर यह भूल गई है कि भारत युवाओं का देश कहलाता है। युवावस्था में हमारे देश के युवाओं पर पढ़ाई, कैरियर, रोजी-रोटी जैसे कई महत्वपूर्ण मसले होने और उन मोर्चों पर सफल होने का दबाव भी रहता है। हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा कर मोदी सरकार चुनाव जीत गई मगर अपना वादा भूल गई। सरकार की जुमलेबाजी के शिकार युवा मानसिक अवसाद का शिकार हो आत्महत्या तक कर रहे हैं।

वाकई, यदि पढ़े-लिखे युवाओं को नौकरी न मिले तो वे अवसाद ग्रस्त होंगे ही और ऐसे में कोई आत्मघाती कदम भी उठा सकते हैं। किसान यदि आत्महत्या करते हैं तो उसे मोदी सरकार बड़ी सहजता से लेती है। केद्रीय कृषि मंत्री इत्मीनान से फरमा देते हैं कि सेक्स में विफलता की वजह से किसान आत्महत्या करते हैं जबकि इसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेवार है। सवाल यह है कि ऐसी जुमलेबाज सरकार को क्या देश की जनता फिर से सत्ता में आने का मौका देगी?

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