गठबंधनों के टूटने से रोचक हुआ इस बार का चुनाव

गठबंधनों में पड़ी दरार ने इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव को रोचक बना दिया है। इस चुनाव में हो रहे अभिनव प्रयोग से सभी दलों को अपने जनाधार का आकलन हो जाएगा। साथ ही, विरोधियों की ताकत का भी अहसास होगा। पिछले चुनाव में सफल हुए महागठबंधन को पता चलेगा कि जदयू के अलग होने और वाम दलो के जुड़ने से क्या लाभ-हानि है। उसी तरह लोकसभा चुनाव में सफलता से उत्साहित एनडीए भी विधानसभा चुनाव में लोजपा के अलग होने से लाभ-हानि का अंदाजा लगा सकेगा। रालोसपा की परीक्षा दो लोकसभा चुनावों में हो चुकी है।
  
बिहार विधानसभा के लिए 2015 में हुए चुनाव में भाजपा से जदयू अलग हुआ तो महागठबंधन सफल हो गया। लेकिन पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में जदयू ने फिर भाजपा का साथ दिया तो महागठबंधन के साथी चारों खाने चित्त हो गये। हाल के चुनावों पर एक नजर डालें तो यह साफ है कि भाजपा, राजद और जदयू ही तीन बड़े दल हैं। इन तीनों दलों में दो जहां भी रहे सत्ता उनके हाथ लगी। कांग्रेस भी इन्हीं दलों के सहारे कुछ कम या अधिक सीटें पाती रही। इससे इतर साथ जाने वाले छोटे दलों की भूमिका का अंदाजा नहीं लग सका है। यह चुनाव ऐसे ही दलों को उनकी ताकत का अहसास करायेगा। कांग्रेस को भी अंदाजा होगा कि जनता राजद से उसकी दोस्ती पसंद करती है या जदयू से। 

विधानसभा में कुछ अलग यह है कि लोकसभा चुनाव के साथी लोजपा ने एनडीए से अलग राह पकड़ ली है। वह जदयू के उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान में उतर गई है तो कुछ सीटों पर भाजपा से भी दो-दो हाथ कर रही है। वर्ष 2005 के बाद लोजपा अपनी ताकत का अंदाजा नहीं लगा सकी है। उस समय फरवरी में हुए चुनाव में लोजपा को 29 सीटें मिल गई। पार्टी ने इससे अपने जानाधार का आकलन किया, लेकिन उसी साल अक्टूबर में चुनाव हुआ तो यह पार्टी 10 सीटों पर सिमट गई। अब इस चुनाव में वह अपने नये जनाधार का एक बार फिर आकलन कर पाएगी। 
 
रालोसपा भी उसी श्रेणी में है। एनडीए में रहकर लोकसभा की सभी तीन सीट 2014 में जीतने वाली रालोसपा महागठबंधन में गई तो अपने प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा को भी नहीं जीता सकी। इस बार उसने भी एक अभिनव प्रयोग किया है। दोनों गठबंधनों से अलग उसने छोटे दलों का एक नया गठबंधन बनाया है। ऐसे में उसके पुराने गठबंधन एनडीए को तो नफा-नुकसान का अंदाजा लगेगा ही, ये दोनों दल खुद भी अंदाज लगा सकेंगे कि अभी वह बिना सहारे चलने लायक है या नहीं। मतलब साफ है बड़े राजनीतिक दल सत्ता पाने और खोने का खेल, खेल रहे हैं तो छोटे दल अपनी जमीन तलाश कर भविष्य के लिए प्रयोग कर रहे हैं।  कौन कितनी जगह, किसके सामने  
25 सीटों पर जदयू के सामने है कांग्रेस 
71 सीटों पर जदयू के सामने है राजद  
40 सीटों पर जदयू को भिड़ना है लोजपा से भी 
(लोजपा की अभी तीसरे चरण की घोषणा बाकी है) 
37 सीटों पर भाजपा के सामने कांग्रेस 
4 सीटों पर कांग्रेस हम से लड़ेगी तो दो सीटों पर वीआईपी से 

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