गया : पिंडदानियों ने तीर्थ पुरोहितों के पांव पूजन के साथ शुरू किया 17 दिनी कर्मकांड

शुक्रवार को देश-विदेश से आए पिंडदानियों ने तीर्थ पुरोहितों के पांव पूजन कर 17 दिनी कर्मकांड को शुरू किया। हजारों की संख्या में पिंडदानियों ने विष्णुपद, देवघाट, गजाधर घाट व फल्गु तट पर पिंडदान किया। वहीं प्रशासन की ओर से घाटों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए है। इधर, शुक्रवार को पिंडदान के बाद पिंड को मोक्षदायिनी फल्गु में विसर्जित किया और पितरों की मुक्ति की कामना की। इसके बाद विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में आकर भगवान विष्णु के चरण के दर्शन-पूजन किए। इस दौरान फल्गु तट पर भारत की संस्कृति दिखी। इधर, आचार्य नवीन चंद्र मिश्र वैदिक ने बताया कि गया श्राद्ध करने से सात गोत्र व 101 कुल का उद्धार होता है। आश्विन कृष्ण पक्ष से लेकर अमावस्या तक सारी तिथियां सम्मिलित है। पर पूर्णिमा तिथि का अभाव है। पूर्णिमा तिथि को दिवंगत हुए पितरों के लिए भाद्रपद पूर्णिमा से श्राद्ध या तर्पण का विधान है।

शुक्रवार को फल्गु तट पर भारत की संस्कृति देखने को मिली। अलग-अलग राज्यों से आए पिंडदानियों ने तीर्थ पुरोहितों के पांव पूजन कर 17 दिनी कर्मकांड को शुरू किया। विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति की माने तो गया श्राद्ध के प्रथम दिन करीब 20 हजार पिंडदानी गया पहुंचे, जिन्होंने विष्णुपद, देवघाट, गजाधर घाट व फल्गु तट पर पिंडदान किया। पिंडदान के बाद पिंड को मोक्षदायिनी फल्गु में विसर्जित किया और पितरों की मुक्ति की कामना की। इसके बाद विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में आकर भगवान विष्णु के चरण का दर्शन-पूजन किया। समिति की माने तो इस बार पिंडदानियों की संख्या उम्मीद से काफी कम है। बाढ़, सुखाड़ के कारण पिंडदानी गयाजी में कम आए हैं। आने वाले दिनों में अच्छी भीड़ की संभावना भी व्यक्त की। बता दें कि फल्गु तीर्थ के पवित्र जल में स्नान मार्जन करने से पितरों को विष्णुलोक प्राप्त होता है। इस पवित्र जल के स्पर्श मात्र से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।


गया श्राद्ध के दूसरे दिन शनिवार को शहर के पश्चिमोत्तर कोण पर स्थित प्रेतशिला के मूल भाग ब्रह्म कुण्ड में स्नान-तर्पण के बाद श्राद्ध का विधान है। आचार्य नवीन चंद्र मिश्र वैदिक ने बताया कि श्राद्ध के बाद पिण्ड को ब्रह्म कुण्ड में स्थान देकर प्रेत पर्वत पर जाए, जिसकी ऊंचाई लगभग 975 फीट है और 772 सीढ़ी तय कर इस स्थल पर पहुंचा जाता है। यहां श्राद्ध से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है।

 

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