जीडीपी के आंकड़े ‘माइनस 23’ नीचे चले गए है, न घबराइये…अच्छे दिन आने वाले है

मरे हुए इंसान को छह फीट नीचे गाड़ा जाता है। अर्थव्यवस्था चौबीस फीट नीचे गाड़ी जा चुकी है। मगर इसका पैनिक लेने की जरूरत नहीं। हमारी जड़ें और गहरी जो पहुंचा दी गयी हैं। हिदुस्तान की जिजीविषा बड़ी तगड़ी है। “सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहां हमारा” मगर हम उठ उठ खड़े होते है। इसकी बड़ी ताकत वो गरीब है, जिसे हम बोझ समझते हैं। खिल्ली उड़ाते है, मुफतखोर और हिंदुस्तान को पीछे खींचने वाला तबका मानते है।

ये गांव मे रहने वाले लोग है, इन्हे बड़े घरो, कारो, व्हाइट गुड्स, देशाटन और उंची शिक्षा की जरूरत नहीं। नतीजतन खर्चे कम हैं, कर्ज कम है। वाट लग चुकी “फार्मल इकानमी” से कनेक्शन कम है। इस माइनस 23 के आकड़े मे कहीं कुछ पाजिटिव है तो वह खेती का सेक्टर है। ग्रामीण क्षेत्र, मड़ई मे रहेगा, दाल चावल उगायेगा। नमक के साथ खाकर ये दौर गुजार लेगा। प्रिमिटिव किस्म की लाइफ का यही फायदा है। वह गुनगुना सकता है – “मै जमी पर गिरा सितारा हूं, क्या बिगाड़ेगी अंजुमन मेरा ….”

डर है मध्यवर्ग और सैलरी क्लास को। वही जो शिक्षित है , जागरूक है, विकास का आनंद लिया हैा वही जो शिक्षा, विकास, भाईचारे और शांति से ऊब चूका है। जिसे कुछ तूफानी चाहिये था। डरिये, जीएसटी के फेलियर से। यह पूरी तरह फेल हो चुका है। “एक देश- एक टैक्स” के नारे की आड़ मे “सबका मालिक एक” का फलसफा लागू कर दिया गया। राज्यों के हिस्से की कमाई छीन कर, केन्द्र ने अपने हाथ मे ले ली। कहा था कि आपका खर्च हम देंगे।

और फिर ठेंगा दिखा दिया। भारत के इतिहास मे ऐसा पहली बार हुआ है जब केंद्र जेबे झाड़कर मुकर गया हो। साहब कहते है कि कर्ज ले लो, सस्ता दिला देंगे। अब ये किसी को पता नही, कि कर्ज पटाया कैसे जाएगा, आखिर राज्य के सारे स्रोत तो आपने कानूनन हथिया लिए है। कलेक्शन तो आप करके, मनमर्जीयो मे लुटा लेते है।
यह कुछ ऐसा है कि, पत्नी घर के राशन के पैसे मांगे तो पति कहे कि चल कर्ज दिलवा देता हूं। जबकि परिवार की कमाई खुद उठाकर अय्याशी मे उड़ा देता हो। हार्डवर्क युनिवर्सिटी द्वारा इकानमी के साथ ये अनूठा प्रयोग होता, मगर राज्यो मे इंकार कर दिया है।

फिलहाल स्टैण्डस्टिल है, पैसा कहीं से आता नही दिख रहा। राज्यो की सरकारें दीवालिया होने के कगार पर है। नतीजा, माह दो माह मे वेतन बन्द, पेंशन बन्द, राशन बन्द…
राज्य सरकारों के करोड़ो कर्मचारी और पेन्शनभोगी भी जमीं पर टूटे हुए सितारें होने का आनन्द लेेंगे। तनख्वाह के साथ साथ घूस भी वैसी ही गिरावट होगी। एक्ट आफ गाड माना जाएगा। राज्य सरकार के खिलाफ अंसतोष उपजेगा। हड़तालें होंगी। स्वास्थ्य, शिक्षा, रोड पानी सड़क .. सब प्रभावित होंगी।

प्राईवेट सेक्टर बैठने के बाद बाजार की सांस, सरकारी कर्मचारियों के बूते चल रही है। अब उनकी भी आय रूकेगी। सैलरी, अब दारू और पेट्रोल की कृपा से महीने दो महीने मे, किस्तों मे कभी कभी मिल जाया मिलेगी। हर घर मे राशन-पानी-बिजली-फीस-दारू के अलावे हर खर्च रोका जाएगा। याने आक्सीजन पर चल रहे बाजार का सिलेंडर भी खत्म … छोटे मोटे शहरों में धंधे पानी कर रहे रहे दुकानदारों, शो रूम वालों, मध्यम दर्जे के ठेकेदार जिन्हे भ्रस्टाचार और हिन्दू हित की विशेष फ़िक्र रहती है, झूमकर देश भक्ति का रसास्वादन करेंगे।

तो बस दो तीन माह का इंतजार है। भूखे बैठे कारोबारी मजदूर, लूटमार और डकैती डालेगें। रोटियां चुराई जाऐंगी। अट्टालिकाओ मे सेंध लगेगी। कहीं कहीं दंगे फसाद निकल आऐं। तब संभव है सीमाओं पर तनाव बढ़ जाए। ऐसे में व्हाटसप पर नए नए फारवर्ड आऐंगे। त्याग तपस्या समर्पण की जोश जन्माया जाएगा। आपमे जन्मेगा भी।
तो डरिये मत। दम साधकर, सीट बेल्ट बांधकर बैठिये। ईश्वर आपको हिम्मत दे अच्छे दिन आने वाले है

-Manish singh

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