बिहार के सहरसा में एक दिन पहले मनाया जाता है ‘घुमौर होली’, देश-विदेश से देखने आते हैं लोग

संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं द्वारा 18वीं सदी के शुरू में प्रारम्भ होली आज भी सा/म्प्रदायिक एकता का प्रतीक है। बनगांव में आज भी लोग यहां पारम्परिक होली को बाबाजी का प्रारूप मान उत्सवी व निष्ठा पूर्वक मनाते हैं। रंग-गुलाल का पर्व होली को लेकर गांव में उत्सवी माहौल है।

सहरसा जिला मुख्यालय से 8 किमी पश्चिम कहरा प्रखंड के बनगाँव में होली मनाये जाने वाले पर्वों में होली का स्थान सबसे ऊपर है। बनगांव में मनाई जाने वाली ‘घुमौर होली’ की अपनी अलग पहचान है। इसमें लोग एक-दूसरे के कंधे पर सवार होकर, उ/ठा-प/टक करके होली मनाते हैं। मान्‍यता है कि इसकी परंपरा भगवान श्रीकृष्‍ण के काल से ही चली आ रही है। बनगांव में मनाई जाने वाली ‘घुमौर होली’ की अपनी अलग पहचान है। इसमें लोग एक-दूसरे के कंधे पर सवार होकर, जो/र-आ/जमाइश करके होली मनाते हैं।

घुमौर होली के त्‍योहार को फगुआ भी कहा जाता है। यहां होली फाल्गुन माह के अंतिम दिन मनाये जाने की परंपरा आज भी कायम है. गुरुवार को बनगांव में सुबह से ही होली का जश्न मनाया जा रहा है। संत लक्ष्मीनाथ गोसाई द्वारा शुरू की गयी बनगांव की होली ब्रज की ‘ल/ट्ठमा/र होली’ की ही तरह ही प्रसिद्ध है।

बिहार की सबसे बड़ी आबादी वाले व तीन पंचायत के अधीन बसे बनगांव की होली की देश में एक अलग ही सांस्‍कृतिक पहचान है। यहां की ‘घुमौर होली’ इसी की एक कड़ी है। मान्‍यता है कि इसकी परंपरा भगवान श्रीकृष्‍ण के काल से ही चली आ रही है। वर्तमान में खेले जाने वाले होली का स्वरूप 18वीं सदी में यहां के प्रसिद्ध संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं (बाबाजी) ने तय किया था।

गांव के निवासी प्रो० अरुण कुमार खां ने बताया कि इस होली का दृश्य अद्भुत होता है। गाँव के युवा दो भागों में बंटकर खुले बदन गांव में घूमकर होली खेलते हैं। गांव के निर्धारित पांचों स्‍थलों (बंगलों) पर होली खेलने के बाद वे जैर (रैला) की शक्ल में भगवती स्थान पहुंचे वहां वे गांव की सबसे ऊंची मानव शृंखला बनायी गयी है। होली के दौरान गांव के ललित झा बंगला व भगवती स्थान में सबसे अधिक लोगों की भीड़ देखी गयी।

इस दौरान लोग संत लक्ष्मीपति रचित भजनों को गाते रहे। होरी नहीं बलजोरी रे रसिया भगवती स्‍थान के पास इमारतों पर रंग-बिरंगे पानी के फव्वारे लगाए जाते हैं। इनके नीचे लोग एक-दूसरे के कंधों पर चढ़कर मानव शृंखला बना अपने ताकत की आजमाइस भी कर लेते हैं। लोगों ने बताया कि होरी बनगांव में बलजोरी का प्रतिक है।

इस बीच जगह-जगह गांव के घरों के झरोखों से महिलाएं भी रंग उड़ेलती है और बच्चें आनंद लेते हैं। गांव में होली के रैला को देखने जिले के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का पहुंचना जारी रहता है। होली का असली हुड़दंग दोपहर बाद टोलियों में जमा भीड़ माता भगवती के मंदिर पर जमा होने के बाद होली खेलने में लग जाते हैं। मानव शृंखला बनाकर होली खेलने तथा श/क्ति प्रदर्शन के बाद बाबा जी कुटी में होली अब समाप्त हो गयी है।

ग्रामीण सुमन समाज ने बताया कि बनगांव की होली में हि/न्दू-मु/स्लिम का भेद नहीं रहता है। ऐसे में होली के दिन कोई छोटा और बड़ा नजर नहीं आ रहा है। बनगांव की होली को खेलने वालों के अलावा देखने वालों की संख्‍या भी हजारों में रहती है। सांसद, विधायक या पूर्व विधायक ही नहीं कई आइएएस व बड़े व्यवसायी भी बनगांव की होली में शामिल होते हैं। होली के पर्व पर गांव वालों मे बहुत उत्साह देखने को मिलता है। गाँव से दूर रहने वाले लोग इस मौके पर गाँव आने की पूरी कोशिश करते है।

गाँव के लोगो में ये कहावत काफी प्रचलित है “जे जीबा से खेला फौग” जिसका हिंदी मे शाब्दिक अर्थ है की जो भी जिन्दा हैं वो होली के दिन जरूर खेलें। घर घर मे मालपूआ पकाया जाते है और लोग रंग या गुलाल के साथ एक दूसरे से होली खेलते है। होली यहाँ कई बार दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले धुरखेल खेला जाता है जिसमे लोग धूल गर्दे, मिटटी और कीचड के साथ एक दूसरे के साथ होली खेलते हैं। दूसरे दिन रंग और गुलाल के साथ होली खेली जाती है। कई बार धुरखेल और रंग दोनों एक ही दिन खेले जाते हैं।

होली की एक और खास बात यह है की यहाँ होली पूरे देश से एक दिन पहले मनाया जाता है। होली के दिन दिन बड़े बुजुर्गो के बीच भांग पीना आम बात है। कई युवा इस दिन मद्यपान किया करते है। भांग पीना पिलाना आम बात है। इस इलाके के भूमि पर भांग अपने आप उपजता है। भांग की रसायनिक संरचना के मुताबिक़ पश्चिमी देशों मे वर्जित मारिजुआना के काफी सामान है और दोनों ही वनस्पति शास्त्र के मुताबिक़ मादा कैन्नाबिस सताइवा प्रजाति मे हैं।

दोनों टेट्राहांइड्रोकार्बिनोल रासायनिक प्रजाति मे आते है। इसके पान के बाद आये मद का अपना अलग मज़ा है। होली के दिन कई लोग भांग पीते है और कई परिवारों मे होली के दिन भांग पीना बुरा नहीं समझा जाता है। भारतीय समाज मे नशापान सामाजिक रूप से तिरस्कार की नजर से देखा जाता है। भांग वितरण का एक ऐसा अड्डा मयूरी खां के आढ़ हैं। वहाँ बड़े बुजुर्गो को आदर के साथ बुलाकर भांग पिलाया जाया है।

होली का दिन “जोगीरा सारा रा रा” से गुंजायमान रहता है। होली के बाद सांकृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन होता है। इस कार्यक्रम मे शास्त्रीय संगीत मे पारंगत कलाकारों को बुलाया जाता है। इस कार्यक्रम मे पूर्व के वर्षों मे पंडित राजन मिश्र और साजन मिश्र जैसे कलाकार आ चुके हैं। इस कार्यक्रम का आयोजन पूरे ग्रामीण सहयोग से होता है।

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