हमने तो CM को भागते हुए देखा है, MLC क्या चीज़ है, लालूवादी ना थकें हैं,ना झुकें हैं : तेजप्रताप

राजद के पांच एमएलसी जदयू का दामन थाम चुके हैं। पार्टी टूटने पर लालू के बड़े बटे तेजप्रताप ने सीएम नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा है कि हमने तो मुख्यमंत्री को भागते हुए देखा है, एमएलसी क्या चीज है। लालूवादी ना कभी थकें हैं,ना कभी झुकें हैं। उल्लेखनीय है कि नीतीश महागठबंधन को छोड़कर रातों रात बीजेपी के साथ चले गए थे

सामने विधानसभा चुनाव है। मैदान की ओर प्रस्थान की तैयारी है, लेकिन राजद के पांच विधान पार्षदों ने दल बदलकर लालू प्रसाद के नए नेतृत्व को तगड़ी चोट पहुंचाई है। सबसे ज्यादा जख्म तो दशकों से भरोसेमंदों की सूची में नंबर एक पर शामिल रघुवंश प्रसाद सिंह के तेवर ने दिया है। चुनाव से पहले लगातार लगे कई झटकों से संभलना नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के लिए आसान नहीं होगा। पार्टी में भगदड़ के हालात से कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर पड़ सकता है। लालू पटना से दूर रांची में हैं और तेजस्वी को कई मोर्चों पर अपने दम से ही मुकाबला करना है।

फिलहाल राजद के पांच विधान पार्षदों के पाला बदलने के कारणों और उसके असर की समीक्षा का दौर चल रहा है। वजहें तलाशी जा रही हैं कि संजय प्रसाद के अतिरिक्त कमर आलम, राधा चरण सेठ, रणविजय सिंह और दिलीप राय ने पाला क्यों बदला? संजय का जाना तो पहले से ही तय था।लोकसभा चुनाव के वक्त ही वे जदयू प्रत्याशी राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के साथ खड़े हो गए थे। बाकी चार के जाने के समाचार ने राजद को गहरा सदमा पहुंचाया है। सबसे बड़ा झटका कमर आलम के रूप में लगा है, जिन्हें लालू ने दो बार से राजद का राष्ट्रीय प्रधान महासचिव बना रखा था।

तो कमर आलम की ये थी नाराजगी…पार्टी सूत्रों का कहना है कि कमर आलम की नाराजगी उसी दिन से शुरू हो गई थी, जब विधान परिषद में उनकी वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए सुबोध राय को चीफ व्हीप बना दिया गया था। आलम की तुलना में सुबोध की राजनीति बिल्कुल नई है। संगठन में भी उनका स्थान बहुत ऊपर था। वह सदन में राबड़ी देवी के बाद दूसरे नंबर का दर्जा चाहते थे। संसदीय बोर्ड की बैठकों में भी उन्हें वह स्थान नहीं मिलता था, जिसके वह हकदार थे।

रणविजय इस वजह से हुए नाराज…हाल के दिनों में लालू के बेहद करीबियों में शामिल रणविजय सिंह की कहानी थोड़ी अलग है। वह पहली बार राजनीति में आए और लालू परिवार से जुड़कर पार्टी में छा गए। यहां तक कि उन्होंने कभी बेहद करीबी रहे भोला यादव की जगह ले ली और रांची जेल अस्पताल में इलाजरत राजद प्रमुख के कर्ताधर्ता बन गए। रांची में रहकर रणविजय ने महीनों तक लालू की जरूरतों की परवाह की, जिससे परिवार के लोगों को कई तरह की आशंका होने लगी। लिहाजा धीरे-धीरे रणविजय भी दूर होते गए।

राधाचरण सेठ को राजद की राजनीति बहुत रास नहीं आ रही थी। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भाजपा से जुड़ी है। उनके भाई हाकिम प्रसाद के भाजपा से पुराने ताल्लुकात हैं और कहा जा रहा है कि वह भाजपा से ही विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी भी कर रहे हैं।

पैसे लेकर टिकट बेचना बर्दाश्त नहीं : रामा सिंह के राजद में आने की चर्चा मात्र से बुरी तरह खफा पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा तो दिया ही, साथ ही पहली बार लालू परिवार के खिलाफ कड़ी टिप्पणी भी की। राजद में टूट की खबर सुनने के बाद उनका आक्रोश फूट पड़ा।

उन्होंने कहा कि पार्टी को नरक बना दिया है। मैंने हर संकट में लालू प्रसाद का साथ दिया। किंतु पैसे लेकर टिकट बेचना बर्दाश्त नहीं। पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा सहन नहीं हो रही है। पटना एम्स में कोरोना का इलाज करा रहे रघुवंश ने कहा कि कहने को तो बहुत कुछ है। किंतु स्वस्थ होने दीजिए फिर बात करते हैं।

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