मु’सलमान मनाते हैं धूमधाम से जन्माष्टमी…नवविवाहित जोड़े मांगते हैं मन्नत

जन्‍माष्‍टमी (Janmashtami) हिन्‍दुओं का प्रमुख त्‍योहार है. हिन्‍दू मान्‍यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु के आठवें अवतार नटखट नंदलाल यानी कि श्रीकृष्‍ण के जन्‍मदिन को श्रीकृष्‍ण जयंती (Shri Krishna Jayanti) या जन्‍माष्‍टमी के रूप में मनाया जाता है. हालांकि इस बार कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी (Krishna Janmashtami) की तारीख को लेकर लोगों में काफी असमंजस में हैं. लोग उलझन में हैं कि जन्‍माष्‍टमी 23 अगस्‍त या फिर 24 अगस्‍त को मनाई जाए.

भारत एक ऐसा देश है जहां हिदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई एक साथ मिलजुल कर रहते हैं. दिवाली हो ईद, होली हो या रमज़ान, फिर चाहे हो क्रिसमस, लोहड़ी या फिर कोई और त्यौहार सब साथ मिलकर मनाते हैं. हमारे देश में कई ऐसी जगहें हैं, जहां कुछ लोग धर्म व क’ट्टरवाद से ऊंचा उठकर आपसी खुशी को अहमियत देते हैं और हिंदू-मुस्लिम की एकता की मिसाल बने हुए हैं. ऐसी ही मिसाल देखने को मिलती हैं राजस्थान की राजधानी जयपुर से 200 किलोमीटर दूर झुंझुनू जिले के चिड़ावा में स्थित नरहड़ दरगाह में.

शरीफ हजरत हाजिब शकरबार दरगाह पर आप देख सकते हैं कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी एक जगह जन्माष्टमी पर्व धूमधाम से मनाते हैं. यहां मुस्लिम समुदाय के लोग दरगाह में जन्माष्टमी का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन बेहद कम लोगों को ही इसकी जानकारी होगी. इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे जन्माष्टमी का पर्व बड़ी शृद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है.

नरहर दरगाह में जन्माष्टमी के अवसर पर तीन दिनों का उत्सव आयोजित किया जाता है.सूत्रों के मुताबिक, इस दरगाह में यह जन्माष्टमी के दिन का उत्सव पिछले 300-400 वर्षों से मनाया जा रहा है. इस उत्सव में हर समुदाय के लोग आते हैं. इस समारोह का मुख्य उद्देश्य हिंदुओं और मुस्लिमों में भाई-चारे को बढ़ावा देना है.

हालांकि स्थानीय लोगों को भी इस बात की जानकारी नहीं है कि यहां इस त्योहार को मनाने की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, लेकिन इतना जरूर है कि दरगाह में भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव को उल्लास और धूमधाम से मनाया जाना एकता की सच्ची तस्वीर पेश करता है. इस त्योहार को यहां हिंदू, मुस्लिम और सिख साथ मिलकर मनाते हैं. यहां पर आयोजित जन्माष्टमी उत्सव देखने लायक होता है. त्योहार से कुछ दिन पहले से ही दरगाह के आस-पास की 400 से ज्यादा दुकानों को सजाया जाता है. सिर्फ़ इतना ही नहीं, जन्माष्टमी की रात यहां अलग-अलग तरह के उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं.

मान्यता है कि पहले यहां दरगाह की गुम्बद से शक्कर बरसती थी. इसी कारण यह दरगाह शक्करबार बाबा के नाम से भी जानी जाती है. शक्करबार शाह अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुदीन चिश्ती के समकालीन थे तथा उन्हीं की तरह सिद्ध पुरुष थे. शक्करबार शाह ने ख्वाजा साहब के 57 वर्ष बाद देहत्याग किया था.

इतना ही नहीं इस दिन खास तौर पर नवविवाहित जोड़े खुशहाल और लंबे वैवाहिक जीवन की मन्नतें मांगने यहां आते हैं. तो वहीं स्थानीय लोगों की मानें तो उनको यहां आकर अध्यात्मिक और मानसिक शांति की प्राप्त होती है.

जन्माष्टमी के त्योहार के दौरान यहां बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों के लोग आते हैं. कहा जाता है यहां हजारों हिंदू आते हैं और दरगाह में फूल, चादर, नारियल और मिठाइयां चढ़ाते हैं. त्योहार के दौरान दरगाह के आसपास 400 से ज्यादा दुकानें सज जाती हैं. जन्माष्टमी की रात यहां मंदिरों की तरह ही कव्वाली, नृत्य और नाटकों का आयोजन होता है.

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