हिंदी पर बड़ा प्रहार: संसद में हिंदी थोपे जाने की वजह से गिर रहा बहस का स्तर !

तमिलनाडु में एमडीएमके के जनरल सेक्रेटरी और राज्यसभा सांसद वायको के एक बयान से बवाल खड़ा हो गया है। एक अंग्रेजी अखबर को दिए इंटरव्यू में वाइको ने कहा कि संसद में हिंदी में दिए जाने वाले भाषणों की वजह से सदन में बहस का स्तर गिर गया है। साथ ही वाइको ने दावा किया है कि हिंदी जड़हीन भाषा है, वहीं संस्कृत भाषा मृत हो चुकी है।

एक अंग्रेजी अखबर को दिए इंटरव्यू में वायको ने हिंदी पर बातचीत करते हुए कहा कि हिंदी में क्या साहित्य है। हिंदी की कोई जड़ नहीं है, और संस्कृत एक मृत भाषा है। हिंदी में चिल्लाने से कोई नहीं सुन सकता, भले ही (संसद में) कान में इयरफोन लगा हो। संसद में हो रही बहस का स्तर गिरा है। इसका मुख्य कारण हिंदी को थोपा जाना है।’ उन्होंने कहा कि उनके इस बयान की वजह से लोग आलोचना करेंगे और उन पर गुस्सा करेंगे लेकिन यही सच है। हिंदी के इस्तेमाल की वजह से सदन में बहस का स्तर लगातार गिर रहा है।

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वाइको ने  उदाहरण पेश करते हुए कहा कि 8वीं अनुसूची में सभी भारतीय भाषाओं को आधिकारिक भाषा बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर सभीभाषाओं को आधिकारिक भाषा बनाया जा सकता है तो अंग्रेजी को भी जगह दी जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंगेजी तो सभी के लिए सामान्य होनी चाहिए। इसके अलावा उन्होंने और कई मुद्दों पर अपनी बात रखी।

बता दें वायको तमिलनाडु के दिग्गज नेताओं में शामिल हैं। तमिल में होने वाले हिंदी विरोध में भी उनका बड़ा हाथ माना जाता है। उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा भी चल चुका है। तमिलनाडु के स्थानीय कोर्ट ने उन्हें देशद्रोह का दोषी पाते हुए फैसला सुनाया था। हाल ही में उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट में इस निर्णय के खिलाफ अपील दाखिल की थी। स्थानीय अदालत ने वायकू को 2009 के एक मामले में दोषी मानते हुए एक साल के लिए साधारण कारावास की सजा सुनाई थी।

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