बिहार में मिथिला, भोजपुर एवं मगध प्रदेश में होली के ये है अलग-अलग अंदाज

Patna: फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रंगों का त्योहार होली आपसी प्रेम और भाईचारे का भी प्रतीक है. बिहार में भी मिथिला, भोजपुर एवं मगध प्रदेश में होली के अलग-अलग अंदाज हैं. पटना में कुर्ताफाड़ होली तो मगध क्षेत्र में बुढ़वा मंगल होली, वहीं समस्तीपुर में छाता पटोरी होली मनाने का प्रचलन है. पटना में दूसरे राज्‍यों से आए लोगों के साथ वहां की होली भी आई है. गुजरात में होलिका का दर्शन करने के साथ फूलों और गुलाल से होली मनाने की परंपरा है. बिहार में होली का यह रूप भी दिख जाता है. आइए डालते हैं नजर.

पटना में होली के विविध रूप एक साथ देखने को मिलते हैं. दूसरे शहरों से पटना में आकर बसने वाले लोग यहां भी अपनी परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. इसका नतीजा है कि पटना में ही मिथिला, भोजपुर, मगध और अंग प्रदेश के साथ ही गुजराती, राजस्थानी और बंगाली शैली की होली देखने को मिलती है. पटना में रहने वाले मराठी, गुजराती और बंगाली परिवार स्थानीय परंपराओं के साथ ही अपने शहर की पारंपरिक होली को भी मनाते हैं. मराठी परिवार से जुड़े लोग पूरन होली तो गुजराती परिवार फूलों की होली खेलते हैं. मारवाड़ी लोग ठंडी होली मनाते हैं. मिथिला, भोजपुरी और मगध से जुड़े लोग भी पटना में ढोलक की धुन पर नृत्य करते हुए एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली की बधाई देते हैं.

वर्षों से पटना में रह रहे महाराष्ट्र निवासी संजय भोंसले की मानें तो महाराष्ट्र में मराठी लोग भी खूब आनंद से होली मनाते हैं. महाराष्ट्र, गोवा आदि जगहों पर लोग होली को फाल्गुन पूर्णिमा अर्थात रंग पंचमी के रूप में जानते हैं. इस दौरान आसपास के घरों से लकड़ी, गोबर से बने उपले के साथ चना की बाली इकट्ठा कर नारियल डालकर होलिका का पूजन करने के बाद उसे जलाया जाता है. इसमें पुरुषों के साथ महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते हैं. दूसरे दिन मिट्टी और रंग खेलने के बाद नये कपड़े पहनकर बुजुर्गों के पैर पर गुलाल रखकर उनसे आशीष प्राप्त कर अलग-अलग पकवान का आनंद लेते हैं.

मां जानकी की धरती मिथिला में होली मनाने की अलग परंपरा रही है. पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान बताती हैं कि यहां पर लोग दूसरे को रंग-गुलाल लगा कर फाग गाना आरंभ कर देते हैं. महिलाएं होलिका के लिए पूजन सामग्री तैयार करतीं और गीत गाती हैं. होली के दिन कुलदेवी की पूजा और उन्हें गुलाल लगाकर होली मनाई जाती है. शिव कुमार मिश्र बताते हैं कि होली के दिन से ही सप्तडोरा पर्व आरंभ होता है. बुजुर्ग महिलाएं अपनी बांह में कच्चा धाग बांधने के बाद ‘सप्ता-विपता’ की कहानी गीतों के जरिए सुनाती हैं.

शहर में वर्षों से रह रहीं पारूल कोठारी बताती हैं कि गुजरात में होलिका का दर्शन करने के साथ फूलों और गुलाल से होली मनाने की परंपरा है. इसे गोविंदा होली के रूप में भी याद किया जाता है. होली के एक दिन पहले पूरे परिवार के लोग महिलाएं, बच्चे एवं पुरुष शामिल होकर होलिका की पूजा करते हैं. अगले दिन फूल और गुलाल से होली मनाई जाती है. नये कपड़े पहनकर लोग बड़ों के पैर पर गुलाल रख आशीष लेेकर लंबी उम्र की दुआ मांगते हैं. वही इस दिन गुजराती पकवान का आनंद लोग उठाते हैं.

शहर में रहे जैन धर्म से जुड़े एमपी जैन बताते हैं कि होली के दिन हम लोगों के यहां रंग-गुलाल लगाने का प्रचलन नहीं है. इस दिन लोग जैन मंदिरों में पूजा-अर्चना और प्रार्थना करते हैं. वही कुछ लोग दूसरे स्थानों पर जाकर मंदिरों में पूजा करते हैं.

मारवाड़ी परिवार के कृष्णा पोद्दार बताते हैं कि होली के सात दिन पहले होलाष्टक मनाया जाता है. इसके दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होता. होलिका दहन के दिन शाम में महिलाएं पारंपरिक वस्त्र पहनने के साथ ओढऩी ओढ़ ठंडी होलिका की पूजा कर पति और परिवार की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं. वही रात में होलिका जलाने के बाद उसकी भस्म को घर पर लाकर सभी लोग लगाते हैं. वही इस दिन से ही नवविवाहित महिलाएं गणगौर की पूजा करती हैं, जो 16 दिनों तक चलती है. होली के दिन लोग बड़ों को गुलाल लगाकर उनसे आशीष प्राप्त कर कई प्रकार के व्यंजनों का आनंद उठाते हैं. साथ ही पारंपरिक गीत ‘नंदलाल भयो गोपाल वंशी जोर से बजाई रे… गीतों को गाकर होली का आनंद उठाते हैं.

बंगाली परिवार से जुड़े रंगकर्मी आलोक गुप्ता की मानें तो बंगाली परिवार के लोग होलिका के दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा करते हैं. इसके बाद होलिका जलाने में महिला-पुरुष बच्चे सभी भाग लेते हैं. होली के दिन गुलाल-अबीर से होली मनाते हैं. घर में कई प्रकार के मिष्ठान बनते हैं. सोमा चक्रवर्ती बताती हैं कि बंगाली समाज में सूखे रंग खेलने का प्रचलन है. होली के दिन एक-दूसरे के घर जाकर गुलाल लगाकर बड़ों का आशीष प्राप्त करते हैं.

भोजपुर के लोकगायक ब्रजकिशोर दुबे बताते हैं कि भोजपुर होली की एक अलग मिठास है. होलिका दहन के दिन कुल देवता को बारा-पुआ चढ़ाने के साथ पूजा की जाती है. इसके बाद होलिका दहन होता है. उस दिन लोग होलिका जल जाने के बाद होली का गीत गाने के साथ उसकी चारों ओर परिक्रमा करते हैं. होली की सुबह गांव के लोग होलिका दहन की राख एक-दूसरे को लगाकर हवा में उड़ाते हैं. पुरुष एक-दूसरे के घर जाकर उनके दरवाजे पर होली के गीत गाकर शुभकामना देते हैं. दरवाजे पर होली गीत गाने का समापन करने के बाद देवी स्थान जाकर होली गीतों को विराम देने के साथ चैती गीत गाने का आरंभ करते हैं.

मगध की धरती पर होली के अगले दिन बुढ़वा मंगल मनाने का रिवाज है. उसी दिन झुमटा निकालने का भी रिवाज है. झुमटा निकालने वाले लोग होली के गीतों को गाते हुए अपने खुशी का इजहार करते हैं. मगध की होली में कीचड़-गोबर और मिट्टी का भी महत्व होता है. होली के दिन सुबह में लोग मिट्टी-कीचड़ आदि लगा कर होली का आरंभ करते हैं. इसके बाद दोपहर में रंग और फिर शाम में गुलाल लगाने की परंपरा है. मगध क्षेत्र के नवादा, गया, औरंगाबाद, अरवल और जहानाबाद आदि जगहों में बुढ़वा होली मनाई जाती है.

समस्तीपुर जिले के भिरहा और पटोरी गांव में पारंपरिक रूप से होली मनाई जाती है. वही होली के दिन छाता-पटोरी का भी प्रचलन है. लोग होलिका जलाने के बाद अगले दिन होली मनाते हैं. रंगों से बचने के लिए लोग छाते का प्रयोग करते हुए होली के गीत गाते हैं. पटना में पारंपरिक तरीके से होली मनाने का रिवाज है. यहां पर कुर्ता-फाड़ होली का प्रचलन है. होलिका दहन के अगले दिन लोग एक-दूसरे को रंग लगाने के साथ कुर्ता-फाड़ होली मनाते हैं, वही शाम में गुलाल लगाकर बड़ों का आशीष प्राप्त करने के साथ एक-दूसरे को बधाई देते हैं.

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