छात्रों को पढाना अगर टैक्स का पैसा लुटाना है तो देश का पाई-पाई इस काम के लिए लुटा देना चाहिए

Jey Sushil

जेएनयू का समर्थन मत कीजिए. अपने बच्चों के भविष्य का समर्थन कीजिए. आज जेएनयू में फीस बढ़ रही है. कल डीयू में बढ़ेगी परसों हर जगह लाखों में फीस देनी होगी. आप तैयार हैं देने के लिए तो मौज कीजिए. इस पोस्ट पर कमेंट करने की ज़रूरत भी मत समझिए.

बाद बाकी जेएनयू ने पूरी दुनिया का ठेका नहीं लिया है. वो अपने लिए लड़ रहा है. मर रहा है. जिन लोगों को लगता है कि जेएनयू वालों को पूरी शिक्षा व्यवस्था के लिए लड़ना चाहिए वो ज़रा कभी अपने लिए लड़ के दिखाएं जीवन में. फिर जेएनयू के लोगों को कहिएगा कि वो दूसरों के लिए लड़ें. मुझे जेएनयू की आलोचना करने में भी दिक्कत नहीं है. यकीन मानिए मैंने पहले भी जेएनयू की आलोचना की है और आगे भी ज़रूरत पड़ने पर करूंगा और आपसे बेहतर करूंगा क्योंकि मैं कैंपस को आपसे बेहतर जानता और समझता हूं.

फेसबुक पर बैठकर कंडोम कन्हैया सिगरेट और ज्यादा गंभीर होने की कोशिश में ये कह कर मत बरगलाइए किसी को कि जेएनयू को सबके लिए लड़ना चाहिए. आईआईएमसी के लिए लड़ना चाहिए. आईआईटी के लिए लड़ना चाहिए. सबको अपने लिए लड़ना चाहिए. मैं तो अपने दफ्तरों में भी लड़ा हूं अपने कूढ़मगज मैनेजरों से. परेशान किया गया हूं. चेतावनी भरी चिट्ठियां ली हैं मैंने लेकिन आवाज उठाई है जहां लगा कि कुछ गलत हो रहा है और इसका असर दफ्तर में भी देखा है मैंने.

कल से देख रहा हूं ढेर सारी बकवास. दस रूपए का रूम तीन सौ हो गया तो क्या आफत है टाइप का. हॉस्टल मैनुअल जाकर देखिए नया प्रस्तावित. दुनिया की किस अच्छी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी ग्यारह बजे बंद होती है. लड़का लड़की न मिलें. ग्यारह बजे के बाद कोई हॉस्टल से बाहर न जाए. इक्कीसवीं सदी है या सोलहवीं सदी समझ में नहीं आ रहा है. इधर इतने गंभीर मसले पर बच्चे लड़ रहे हैं और आपको पड़ी है कि आपके कॉलेज के लिए आपके स्कूल के लिए जेएनयू आवाज़ क्यों नहीं उठा रहा है.

और हां बात बात में कन्हैया कन्हैया जपने वालों.. जेएनयू में कन्हैया जैसे आते जाते रहते हैं…एक कन्हैया से न तो जेएनयू बनता है और न ही उसकी पहचान. मेरा अंदाज़ा है करीब करीब कि जितने भी लोग जेएनयू से चिढ़ते हैं उनमें से बहुत कम ने किसी अच्छी यूनवर्सिटी में ग्रैजुएएशन से आगे की पढ़ाई की है. और जब आपने शोध किया नहीं है तो एक शोधपरक यूनिवर्सिटी के बारे में वहां के बारे में आप किस आधार पर बकवास करते हैं. मुझे समझ नहीं आता है.

दुनिया की हर यूनवर्सिटी में पीएचडी में चार से छह साल का समय लगता है. अमरीका में छह साल. यूरोप में चार साल कम से कम पीएचडी में. जेएनयू में एमफिल और पीएचडी मिलाकर पांच साल का समय है. इतना ही समय आईआईटी में भी पीएचडी में लगता है. आप चाहते हैं कि कोई पीएचडी करे ही नहीं. क्योंकि आप नहीं कर पाए. दुनिया की अच्छी यूनिवर्सिटियो में पीएचडी में न केवल स्कालरशिप मिलती है बल्कि हफ्ते में बीस घंटे काम करने की छूट होती है.

जब आलोचना का समय आएगा तब जेएनयू के पीएचडी के स्तर पर बात करूंगा….और इस विषय पर जेएनयू के आलोचकों के पास कोई काम की बात नहीं होगी. वो भी मैं ही खोज कर दूंगा आपको कि ये बिंदु है आलोचना का.

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